Friday, 3 April 2015

मंदिर, जहां फिल्मी स्टाइल में असली डकैत आकर करते हैं साधना

चंबल के बीहड़ों के डकैतों के किस्से अब तक आपने फिल्मी पर्दे पर ही देखे होंगे। लेकिन राजस्थान में करौली में मां काली का एक मंदिर ऐसा भी है, जहां हर साल डकैतों का मेला भरता है। फिल्मों में जो कहानियां केवल काल्पनिक होती हैं, वह यहां सच होती हैं। यह सिलसिला सदियों से चला आ रहा है।
यह है राजस्थान का कैलादेवी मंदिर। डकैतों के लिए प्रसिद्ध। जहां फिल्मी स्टाइल में वेश बदलकर डकैत आते हैं और मां कैलादेवी की आराधना करते हैं। वे अपने लक्ष्य की साधना के लिए मां से मन्नत मांगते हैं। मन्नत पूरा होने पर फिर आते हैं और मां को आभार की भी आराधना करते हैं। मां की कई घंटों साधना कर विजय घंट चढ़ाते हैं और निकल जाते हैं।
पुलिस के पहरे के बावजूद नहीं रुकते डकैत
करौली में कैलादेवी मंदिर के बाहर और अंदर पुलिस का कड़ा पहरा रहता है। पुलिस को भनक भी लग जाती है कि डकैत आने वाले हैं, लेकिन बावजूद इसके डकैत आते हैं और पूजा कर निकल जाते हैं। भरपूर कोशिश के बावजूद डकैतों को रोक पाना पुलिस के बस में नहीं रहता। जैसे फिल्मों में पुलिस और डकैतों के बीच चोर-सिपाही का खेल प्रतिष्ठा का सवाल होता है, वैसे ही यहां की भी स्थिति रहती रही है।
जगन गूजर, औतारी जैसे डकैत भी करते रहे पूजा
मंदिर के बाहर प्रसाद की दुकान लगाने वालों ने बताया कि अब डकैत कम हो गए, या सरेंडर कर चुके हैं, लेकिन क्षेत्र के कुख्यात डकैत भी यहां आते रहे हैं। इनमें करौली का रामसिंह डकैत, जगन गूजर, धौलपुर के बीहड़ों में अड्डा बनाने वाला औतारी और करौली के जंगलों का सूरज माली डकैत नियमित रूप से कैलोदेवी के आते रहे हैं। पुलिस भी उन्हें पकड़ने की हिम्मत कभी नहीं जुटा पाई। हालांकि साधना के समय आने वाले डकैतों ने श्रद्धालुओं को कभी हानि नहीं पहुंचाई।
इस थीम पर बन चुकी हैं कई फिल्में भी
बॉलीवुड में डकैतों की मां काली की आराधना की थीम पर कई फिल्में बनी हैं। हालांकि इनमें डकैत अपने बीहड के ठिकानों पर ही मां की आराधना करते हैं, लेकिन यहां डकैत खुद मंदिर में जाकर ही पूजा-अर्चना करते हैं। बॉलिवुड में पान सिंह तोमर, डाकू धरमा, बेंडिट क्वीन, गंगा-जमना, मेरा गांव मेरा देश, डकैत जैसी फिल्में काफी प्रसिद्ध हुई हैं।
क्या है मंदिर की मान्यताएं
कैला देवी मंदिर काली सिल नदी के किनारे त्रिकूट पर्वत पर स्थापित है, जिसमें अन्दर मुख्य भवन की कोठरी में चांदी की चौकी पर स्वर्ण छतरियों के नीचे दो प्रतिमाएं हैं। इनमें एक बाईं ओर उसका मुंह कुछ टेढ़ा है, वो ही कैला मईया है। दाहिनी ओर दूसरि माता चामुंडा देवी की प्रतिमा है। कैलादेवी की आठ भुजाएं हैं। मंदिर उत्तर भारत के प्रमुख शक्तिपीठ के रूप में ख्याति प्राप्त है। माना जाता है कि मंदिर में स्थापित मूर्ति पूर्व में नगरकोट में स्थापित थी। विधर्मी शासकों के मूर्ति तोड़ो अभियान से आशंकित उस मंदिर के पुजारी योगिराज मूर्ति को मुकुंददास खींची के यहां में ले आए। केदार गिरि बाबा की गुफा के निकट रात्रि हो जाने से उन्होंने मूर्ति बैलगाड़ी से उतारकर नीचे रख दी और बाबा से मिलने चले गए। दूसरे दिन सुबह जब योगिराज ने मूर्ति उठाने की चेष्टा की तो वह उस मूर्ति हिला भी नहीं सकी। इसे माता भगवती की इच्छा समझ योगिराज ने मूर्ति को उसी स्थान पर स्थापित कर दिया और मूर्ति की सेवा करने की जिम्मेदारी बाबा केदारगिरी को सौंप कर वापस नगरकोट चले गए। माता कैलादेवी का एक भक्त दर्शन करने के बाद यह बोलते हुए मन्दिर से बाहर गया था कि जल्दी ही लौटकर फिर वापिस आउंगा। कहा जाता है कि वह आज तक नहीं आया है। ऐसे में उसके इंतजार में माता आज भी उधर की ही ओर देख रहीं है जिधर वो गया।

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