महाभारत में धृतराष्ट्र अंधे थे, लेकिन वे बहुत शक्तिशाली भी थे।
महाभारत के अनुसार धृतराष्ट्र में दस हजार हाथियों का बल था। युद्ध में जब
पांडवों ने दुर्योधन और पूरी कौरव सेना का अंत कर दिया तो धृतराष्ट्र पुत्र
शोक में बहुत दुखी थे।
भीम को मार डालना चाहते थे धृतराष्ट्र
भीम ने धृतराष्ट्र के प्रिय पुत्र दुर्योधन और दु:शासन को बड़ी
निर्दयता से मार डाला था, इस कारण धृतराष्ट्र भीम को भी मार डालना चाहते
थे। जब युद्ध समाप्त हो गया तो श्रीकृष्ण के साथ युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन,
नकुल और सहदेव महाराज धृतराष्ट्र से मिलने पहुंचे। युधिष्ठिर ने धृतराष्ट्र
को प्रणाम किया और सभी पांडवों ने अपने-अपने नाम लिए, प्रणाम किया।
श्रीकृष्ण महाराज के मन की बात पहले से ही समझ गए थे कि वे भीम का नाश करना
चाहते हैं। धृतराष्ट्र ने भीम को गले लगाने की इच्छा जताई तो श्रीकृष्ण ने
तुरंत ही भीम के स्थान पर भीम की लोहे की मूर्ति आगे बढ़ा दी। धृतराष्ट्र
बहुत शक्तिशाली थे, उन्होंने क्रोध में आकर लोहे से बनी भीम की मूर्ति को
दोनों हाथों से दबोच लिया और मूर्ति को तोड़ डाला।
मूर्ति तोड़ने की वजह से उनके मुंह से भी खून निकलने लगा और वे जमीन
पर गिर गए। कुछ ही देर में उनका क्रोध शांत हुआ तो उन्हें लगा की भीम मर
गया है तो वे रोने लगे। तब श्रीकृष्ण ने महाराज से कहा कि भीम जीवित है,
आपने जिसे तोड़ा है, वह तो भीम के आकार की मूर्ति थी। इस प्रकार श्रीकृष्ण
ने भीम के प्राण बचा लिए।
धृतराष्ट्र थे जन्म से अंधे
महाराज शांतनु और सत्यवती के दो पुत्र हुए विचित्रवीर्य और चित्रांगद।
चित्रांगद कम आयु में ही युद्ध में मारे गए। इसके बाद भीष्म ने
विचित्रवीर्य का विवाह काशी की राजकुमारी अंबिका और अंबालिका से करवाया।
विवाह के कुछ समय बाद ही विचित्रवीर्य की भी बीमारी के कारण मृत्यु हो गई।
अंबिका और अंबालिका संतानहीन ही थीं तो सत्यवती के सामने यह संकट उत्पन्न
हो गया कि कौरव वंश आगे कैसे बढ़ेगा। वंश को आगे बढ़ाने के लिए सत्यवती ने
महर्षि वेदव्यास से उपाय पूछा। तब वेदव्यास से अपनी दिव्य शक्तियों से
अंबिका और अंबालिका से संतानें उत्पन्न की थीं। अंबिका ने महर्षि के भय के
कारण आंखें बद कर ली थी तो इसकी अंधी संतान के रूप में धृतराष्ट्र हुए।
दूसरी राजकुमारी अंबालिका भी महर्षि से डर गई थी और उसका शरीर पीला पड़ गया
था तो इसकी संतान पाण्डु हुई। पाण्डु जन्म से ही कमजोर थे। दोनों
राजकुमारियों के बाद एक दासी पर भी महर्षि वेदव्यास ने शक्तिपात किया था।
उस दासी से संतान के रूप में महात्मा विदुर उत्पन्न हुए।
भीष्म ने किया तीनों पुत्रों का पालन-पोषण
धृतराष्ट्र, पाण्डु और विदुर के पालन-पोषण का भार भीष्म के ऊपर था।
तीनों पुत्र बड़े हुए तो उन्हें विद्या अर्जित करने भेजा गया। धृतराष्ट्र
बल विद्या में श्रेष्ठ हुए, पाण्डु धनुर्विद्या में और विदुर धर्म और नीति
में पारंगत हो गए। तीनों पुत्र युवा हुए तो बड़े पुत्र धृतराष्ट्र को नहीं,
बल्कि पाण्डु को राजा बनाया गया, क्योंकि धृतराष्ट्र अंधे थे और विदुर
दासी पुत्र थे। पाण्डु की मृत्यु के बाद धृतराष्ट्र को राजा बनाया गया।
धृतराष्ट्र नहीं चाहते थे कि उनके बाद युधिष्ठिर राजा बने, बल्कि वे चाहते
थे कि उनका पुत्र दुर्योधन राजा बने। इसी कारण वे लगातार पाण्डव पुत्रों की
उपेक्षा करते रहे।
गांधार की राजकुमारी से विवाह
भीष्म ने धृतराष्ट्र का विवाह गांधार की राजकुमारी गांधारी से कराया
था। विवाह से पूर्व गांधारी को ये बात मालूम नहीं थी कि धृतराष्ट्र अंधे
हैं। जब गांधारी को ये बात मालूम हुई तो उसने भी अपनी आंखों पर पट्टी बांध
ली। अब पति और पत्नी दोनों अंधे के समान हो गए थे। धृतराष्ट्र और गांधारी
के सौ पुत्र और एक पुत्री थी। दुर्योधन सबसे बड़ा और सबसे प्रिय पुत्र था।
दुर्योधन के प्रति धृतराष्ट्र को अत्यधिक मोह था। इसी मोह के कारण दुर्योधन
के गलत कार्यों पर भी वे मौन रहे। दुर्योधन की गलत इच्छाओं को पूरा करने
के लिए भी हमेशा तैयार रहते थे। यही मोह पूरे वंश के नाश का कारण बना।
शकुनी क्यों आया हस्तिनापुर
शकुनि गांधारी का भाई था। वह कुरु वंश से घृणा करता था और इस वंश को
समाप्त करने के लिए ही हस्तिनापुर आया था। शकुनि की घृणा का कारण यह था, कि
जब भीष्म धृतराष्ट्र और गांधारी के विवाह का प्रस्ताव लेकर गए थे, तब ये
बात छिपाई थी कि धृतराष्ट्र जन्म से अंधे हैं। विवाह के बाद जब ये बात
शकुनि को मालूम हुई तो उसने विरोध किया, लेकिन गांधारी धृतराष्ट्र को अपना
पति मान चुकी थी। शकुनि ने उस दिन ये प्रण लिया था कि वह समूचे कुरु वंश के
सर्वनाश का कारण बनेगा। शकुनि हस्तिनापुर में ही रहने लगा और दुर्योधन को
जन्म से ही पांडवों के विरूद्ध भड़काने लगा था। दुर्योधन पर शकुनि का पूरा
नियंत्रण था। दुर्योधन वैसा ही करता था, जैसा शकुनि चाहता था। शकुनि से
दुर्योधन से वह सभी काम करवाए, जिससे कुरु वंश का नाश हो गया।
...और धृतराष्ट्र चले गए वन में
युद्ध के बाद धृतराष्ट्र और गांधारी, पांडवों के साथ एक ही महल रहने
लगे थे। भीम अक्सर धृतराष्ट्र से ऐसी बातें करते थे जो कि उन्हें पसंद नहीं
थीं। भीम के ऐसे व्यवहार से धृतराष्ट्र बहुत दुखी रहने लगे थे। वे
धीरे-धीरे दो दिन या चार दिन में एक बार भोजन करने लगे। इस प्रकार पंद्रह
वर्ष निकल गए। फिर एक दिन धृतराष्ट्र के मन में वैराग्य का भाव जाग गया और
वे गांधारी के साथ वन में चले गए।
No comments:
Post a Comment