सुखी और श्रेष्ठ जीवन के लिए शास्त्रों में कई नीतियां बताई गई हैं।
यहां जानिए कुछ ऐसी ही नीतियां, जिनमें श्रेष्ठ जीवन के रहस्य छिपे हुए
हैं।
पहली नीति
अालसस्य कुतो विद्या अविद्यस्य कुतो धनम्।
अधनस्य कुतो मित्रम् अमित्रस्य कुतो सुखम्।।
अधनस्य कुतो मित्रम् अमित्रस्य कुतो सुखम्।।
अर्थात्- जो लोग आलसी हैं, उन्हें ज्ञान कैसे प्राप्त होगा? यदि ज्ञान
नहीं होगा तो धन कैसे मिलेगा? यदि धन नहीं होगा तो कोई मित्रता क्यों
करेगा? और मित्र नहीं होंगे तो सुख का अनुभव कैसे होगा? अत: आलस्य छोड़ देना
चाहिए।
दूसरी नीति
एकवर्णं यथा दुग्धं भिन्नवर्णासु धेनुषु।
तथैव धर्मवैचित्र्यं तत्त्वमेकं परं स्मृतम्।।
तथैव धर्मवैचित्र्यं तत्त्वमेकं परं स्मृतम्।।
अर्थात्- जिस प्रकार गायें अलग-अलग रंग की होती हैं, लेकिन सभी गायें
दूध एक ही रंग (सफेद रंग) का देती है, ठीक उसी प्रकार अलग-अलग धर्मों में
एक ही परम तत्त्व का उपदेश दिया गया है।
तीसरी नीति
सर्वं परवशं दु:खं सर्वम् आत्मवशं सुखम्।
एतद् विद्यात् समासेन लक्षणं सुखदु:खयो:।।
एतद् विद्यात् समासेन लक्षणं सुखदु:खयो:।।
अर्थात्- जो चीजें हमारे अधिकार में नहीं हैं, वे सब दुख ही प्रदान
करती हैं, वे दुख ही हैं। जो चीजें हमारे अधिकार में है, वे सब सुख ही हैं।
ये ही सुख और दुख का प्रमुख लक्षण है।
चौथी नीति
आकाशात् पतितं तोयं यथा गच्छति सागरम्।
सर्वदेवनमस्कार: केशवं प्रति गच्छति।।
सर्वदेवनमस्कार: केशवं प्रति गच्छति।।
अर्थात्- जिस प्रकार आकाश से बरसने वाला पानी अलग-अलग नदियों से होता
हुआ, अंतत: समुद्र में ही मिलता है, ठीक उसी प्रकार अलग-अलग देवताओं को
किया हुआ प्रणान एक ही परमेश्वर को प्राप्त होता है।
पांचवीं नीति
नीरक्षीरविवेके हंस आलस्यम् त्वम् एव तनुषे चेत्।विश्वस्मिन् अधुना अन्य: कुलव्रतं पालयिष्यति क:।।
अर्थात्- यदि हंस ही पानी और दूध को अलग करने का काम छोड़ देगा तो ये काम इतनी कुशलता से और कौन कर पाएगा? यदि बुद्धिमान तथा समझदार लोग ही अपना कर्तव्य ठीक से नहीं निभाएंगे तो दूसरा कौन निभाएगा?
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