Friday, 17 April 2015

अर्जुन की प्यास बुझाने कृष्ण ने चलाया था तीर, किले में खुद गया था कुआं

यूनेस्को के विश्व धरोहरों में शामिल जैसलमेर का किला कई विशेषताओं के लिए फेमस है। इस किले में 99 बुर्ज हैं जिन पर दुश्मनों के छक्के छुड़ाने के लिए तोप रखे जाते थे। आज भी ये तोप देखे जा सकते हैं। इसे रेगिस्तान की बालू रेत से मिलते-जुलते गहरे पीले रंग के पत्थरों को बिना चूने की सहायता के आश्चर्यजनक ढंग से जोड़कर बनाया गया है। यह अपने आप में मौलिक और अनूठी विशेषता है। यह किला चारों ओर से रेत (मरुस्थल) से घिरा हुआ है। 858 साल से रेगिस्तान में खड़ा है यह किला, इस किले में 1200 से ज्यादा घर हैं।

इस किले से जुड़ी है महाभारत काल की कहानी। कहते हैं एक बार भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन यहां 80 मीटर ऊंची त्रिकुट पहाड़ी पर आये तब अर्जुन को बहुत तेज की प्यास लगी चारों तरफ पानी का नामोनिशान भी नहीं था तब भगवान श्रीकृष्ण ने तीर का प्रहार कर यहां पाताल तोड़ कुआं खोद दिया जिसके पानी से अर्जुन ने अपनी प्यास बुझाई आज भी यह कृष्ण कुण्ड के नाम से विख्यात है।
क्यों कहते हैं गोल्डन फोर्ट...?
जैसलमेर की शान के रूप में माना जाने वाला यह किला 'सोनार किला' और 'गोल्डन फोर्ट' के नाम से जाना जाता है। यह किला पीले बलुआ पत्थर का किला सूर्यास्त के समय सोने की तरह चमकता है। इसे 1156 ई. में एक भाटी राजपूत शासक जैसल द्वारा त्रिकुट पहाड़ी के शीर्ष पर निर्मित किया गया था।
दुश्मन को नहीं दिखता था इस किले का द्वार
ढाई सौ फीट उंचे और विशाल रेगिस्तान के बीच 30 फीट उंची दीवारों से घिरा है यह किला। इसके मुख्य द्वार की बनावट ऐसी है कि दुश्मन चाहे कहीं से भी देख ले उसे किले का मुख्य द्वार नहीं दिखाई देता। यही कारण है कि यहां चढ़ाई करने के लिए आने वाले दुश्मन अकसर चकमा खा जाते थे। वो जितने देर में इस किले का द्वारा देखते उतने में उनपर हमला हो जाता था।
बॉलीवुड के लिए बना प्राइम लोकेशन
जैसलमेर के पर्यटन स्थल और यहां की विरासत बॉलीवुड के लिए प्राइम लोकेशन है। अब तक जैसलमेर में कई बॉलीवुड फिल्मों, एड, रीजनल फिल्मों की शूटिंग हो चुकी है। अभी तक यहां मुख्य रूप से कच्चे धागे, कृष्णा, सरफरोश, टशन, रुदाली और कोका कोला, बोरो प्लस, पेप्सी व हीरो होंडा जैसी कंपनियों की एड भी यहां शूट हो चुके हैं। उदयपुर स्थित लीला पैलेस यहां के सबसे बेहतरीन होटलों में शुमार होता है।
अकाल के समय चरणों में रख दी थी तलवार फिर हुई थी बारिश
किले में भगवान श्रीकृष्ण का एक मंदिर भी बना हुआ है जिनमें भगवान लक्ष्मीनाथ जी विराजे हुए हैं। संगमरमर की मूर्ति इतनी मोहक है कि दर्शन को आने वाले सैलानी भी एक बार टकटकी लगाये देखते रह जाते हैं। शांति समृद्धि के लिए भगवान को यहां एक विषेष प्रकार का पेड़ा प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है। कहते हैं जैसलमेर में जब भीषण अकाल पड़ा और जीवन त्रस्त हो गया तब यहां के महाराजा ने अपनी तलवार भगवान लक्ष्मीनाथ जी के चरणों में रख दी थी और यह प्रण लिया था कि जब तक बारिश नहीं होगी तब तक वे तलवार नहीं उठायेंगे। भगवान ने उनकी सुन ली और उस साल बारिश हुई।
आज भी मिलता है राजसी ठाठ का आनंद
यह किला धार्मिक महत्व भी रखता है। किले में प्राचीन काल के जैन मंदिर भी बने हुए हैं जो अपनी स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना पेष करते हैं। पत्थर के बाद पर्यटन ही यहां का मुख्य व्यवसाय है। कई लोगों ने अपने पुराने हवेलीनुमा घरों को भले ही पर्यटन के लिए खोल दिया हो लेकिन उन्होंने उसके मूल स्वरूप को नहीं बदला है। यहां आज भी पर्यटक राजसी अहसास का आनंद ले सकते हैं।
शहर की आबादी का एक चौथाई हिस्सा रहता है यहां
इस किले में कई खूबसूरत हवेलियां या मकान, मंदिर और सैनिकों तथा व्यापारियों के आवासीय परिसर हैं। वर्तमान में, यह शहर की आबादी के एक चौथाई के लिए एक आवासीय स्थान है। इस किले में 1200 से ज्यादा घर हैं। कभी अकाल झेल चुके इस किले में आज कई कुएं हैं जो यहां के लोगों के लिए पानी का स्रोत बने हुए हैं।
यहां के पत्थर हैं 'अनमोल'
यहां पीले रंग का एक बेहद बेषकीमती पत्थर पाया जाता है जो यहां का मुख्य व्यवसास भी है। इस पत्थर से जुड़ा रोचक तथ्य यह है कि इसका पीला रंग सूर्य के प्रकाष में दोगुना हो जाता है। इससे यह सोने के रंग सा अहसास कराता है और कारीगरी के लिए यह पत्थर बेहद अच्छा है। कई हवेलियों और किले की स्थापत्य कला अपने आप में अनूठी बन पड़ी है। यह यहां की जालीदार नक्काषी, झरोखों के लिए भी जाना जाता है।

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