सिक्खों
के नौवें गुरु तेगबहादुर थे। गुरु तेगबहादुर ने धर्म व मानवता की रक्षा
करते हुए हंसते-हंसते अपने प्राणों की कुर्बानी दी थी। आज (9 अप्रैल,
गुरुवार) गुरु तेगबहादुर की जयंती है। जानिए कैसे गुरु तेगबहादुर ने निर्भय
होकर अपना शीश कटा दिया था-
मुगल बादशाह औरंगजेब के दरबार में एक विद्वान पंडित आकर रोज गीता के
श्लोक पढ़ता और उसका अर्थ सुनाता था, पर वह पंडित गीता में से कुछ श्लोक
छोड़ दिया करता था। एक दिन वह पंडित बीमार हो गया और उसने औरंगजेब को गीता
सुनाने के लिए अपने बेटे को भेज दिया। परन्तु वह उसे यह बताना भूल गया कि
उसे किन-किन श्लोकों का अर्थ राजा को नहीं बताना है। पंडित के बेटे ने जाकर
औरंगजेब को पूरी गीता का अर्थ सुना दिया।
गीता का पूरा अर्थ सुनकर औरंगजेब को यह ज्ञान हो गया कि प्रत्येक धर्म
अपने आप में महान है किन्तु औरंगजेब की हठधर्मिता थी कि उसे अपने धर्म के
अतिरिक्त किसी दूसरे धर्म की प्रशंसा सहन नहीं थी। तब औरंगजेब ने सबको
इस्लाम धर्म अपनाने का आदेश दिया। इस प्रकार की जबरदस्ती शुरू हो जाने से
अन्य धर्म के लोगों का जीवन कठिन हो गया। जुल्म से ग्रस्त लोग गुरु
तेगबहादुर के पास आए और उन्हें बताया कि किस प्रकार उन पर इस्लाम स्वीकार
करने के लिए अत्याचार किया जा रहा है।
उनकी बात सुनकर गुरु तेगबहादुर ने उन लोगों से कहा कि आप जाकर औरंगजेब
से कह दें कि यदि गुरु तेगबहादुर ने इस्लाम धर्म ग्रहण कर लिया तो उनके
बाद हम भी इस्लाम धर्म ग्रहण कर लेंगे। औरंगजेब ने यह स्वीकार कर लिया।
गुरु तेगबहादुर दिल्ली में औरंगजेब के दरबार में स्वयं गए। औरंगजेब ने
उन्हें बहुत से लालच दिए पर गुरु तेगबहादुर नहीं माने। तब औरंगजेब ने उन पर
तरह-तरह के जुल्म किए।
गुरुजी ने औरंगजेब से कहा कि यदि तुम जबरदस्ती लोगों से इस्लाम धर्म
ग्रहण करवाओगे तो तुम सच्चे मुसलमान नहीं हो, क्योंकि इस्लाम धर्म यह
शिक्षा नहीं देता कि किसी पर जुल्म करके मुस्लिम बनाया जाए। औरंगजेब यह
सुनकर आगबबूला हो गया। उसने दिल्ली के चांदनी चौक पर गुरु तेगबहादुर का शीश
काटने का हुक्म दिया और गुरु तेगबहादुर ने हंसते-हंसते अपने प्राणों का
बलिदान दे दिया। गुरु तेगबहादुर की याद में उनके शहीदी स्थल पर गुरुद्वारा
बना है, जिसका नाम गुरुद्वारा शीशगंज साहिब है।
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