क्या
देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की सरकार ने नेताजी सुभाष चंद्र
बोस के परिवार की जासूसी करवाई थी? इंटेलीजेंस ब्यूरो के कुछ दस्तावेजों से
खुलासा हुआ है कि पहले नेहरू और उनके बाद कांग्रेस की दूसरी सरकारों ने
बोस के परिवार की जासूसी कराई थी। यह जासूसी 1948 से 1968 के बीच हुई यानी
बीस साल। खास बात यह है कि इन 20 में से 16 साल तक जवाहरलाल नेहरू देश के
प्रधानमंत्री थे और आईबी सीधे उन्हें रिपोर्ट करती थी क्योंकि वह पीएम ऑफिस
के अंडर में थी। जासूसी का खुलासा करने वाली यह फाइलें तब से ही नेशनल
आर्काइव्स में सुरक्षित हैं।
फाइलों में जिक्र है कि आईबी ने ब्रिटिश शासनकाल के तौर तरीके जारी रखे और नेताजी की मौत के बाद कोलकाता
स्थित उनके दो मकानों में रहने वाले उनके परिवारवालों पर नजर रखी। इस
दौरान बोस परिवार के पास आने वाले या उनके द्वारा लिखे जाने वाले पत्रों की
कॉपी की जाती थी और उनकी देश-विदेश की यात्राओं पर भी नजर रखी जाती थी।
आईबी का मुख्य तौर पर फोकस इस बात को जानने पर था कि नेताजी का परिवार किन
लोगों से मिलता है और क्या बातचीत होती है। आईबी के एजेंट अपनी रिपोर्ट फोन
या छोटे-छोटे नोट्स के जरिए हेडक्वॉर्टर भेजते थे।
जासूसी से परिवार हैरान
हालांकि यह साफ तौर पर नहीं कहा जा सकता कि आईबी नेताजी के दोनों
भतीजों (शिशिर कुमार बोस और अमिय नाथ बोस) पर नजर क्यों रखती थी। शिशिर और
अमिय नाथ सरत चंद्र बोस के बेटे थे, जो कांग्रेस कार्यकर्ता के तौर पर
नेताजी के कार्यकाल में उनके सबसे ज्यादा करीब थे। इन दोनों ने कई लेटर
नेताजी की पत्नी और अपनी चाची एमिली को लिखे थे, जो ऑस्ट्रिया में रहती
थीं।
नेताजी के परपोते जो अब कोलकाता में बिजनेसमैन हैं, इस ताजा खुलासे से
हैरान हैं। उनका कहना है कि सुभाष ने देश की स्वतंत्रता के लिए अंग्रेजों
से जंग लड़ी फिर उनके परिवार की जासूसी क्यों कराई गई। जासूसी तो उन लोगों
की कराई जाती है जो अपराधी हैं या फिर जिनके आंतकवादियों से कनेक्शंस होते
हैं।
बेटी भी नाराज
जर्मनी में इकोनॉमिस्ट और नेताजी की इकलौती बेटी अनीता बोस ने भी इस
मुद्दे पर नाराजगी जताई है। अनीता ने कहा, ‘सरत चंद्र यानी मेरे चाचा 1950
तक कांग्रेस के सक्रिय कार्यकर्ता थे, हालांकि वे कांग्रेस लीडरशिप से सहमत
नहीं थे। लेकिन मुझे हैरानी इस बात की है कि मेरे कजिंस की जासूसी क्यों
कराई गई, उनसे तो किसी को कोई खतरा नहीं था।’ सुप्रीम कोर्ट के जज रहे अशोक
कुमार गांगुली का कहना है, ‘सरकार नेताजी और उनके परिवार को लेकर क्यों
पक्षपात करती रही, यह समझ में नहीं आता क्योंकि नेताजी ने अपना पूरा जीवन
इस देश के लिए कुर्बान कर दिया।’
नेताजी की वापसी से डरती थी कांग्रेस
लेखक और बीजेपी के प्रवक्ता एम.जे. अकबर का कहना है कि नेताजी के
परिवार की इतने लंबे समय तक जासूसी का केवल एक ही मतलब है कि वह नेताजी की
वापसी की संभावना से डरती थी। अकबर के मुताबिक, ‘कांग्रेस सरकार को इस बात
का यकीन नहीं था कि नेताजी की वास्तव में मौत हो गई है। उसको लगता था कि
अगर वह जिंदा हैं तो किसी न किसी तरह से अपने परिवार के संपर्क में जरूर
रहेंगे, इसीलिए नेताजी के परिवार की जासूसी कराई गई। दूसरी बात यह है कि
नेताजी ही वह करिश्माई नेता थे, जो कांग्रेस के खिलाफ विपक्ष को आसानी से
एकजुट कर उसे सत्ता से भी बाहर कर सकते थे। 1977 के चुनाव में कांग्रेस को
करारी हार का सामना करना पड़ा था और अगर नेताजी जिंदा होते तो यह काम 1957
में ही हो गया होता।’
नेताजी ने छोड़ दिया था कांग्रेस अध्यक्ष का पद
नेताजी से जुड़ी आईबी की फाइलें की मूल कॉपियां अब भी पश्चिम बंगाल
सरकार के पास हैं। ‘इंडियाज बिगेस्ट कवर-अप’ किताब के लेखक अनुज धर ने इसी
साल जनवरी में पहली बार इन फाइलों की कॉपियां को देखा था। उनका कहना है कि
यह फाइलें धोखे से बाहर आ गईं। नेताजी साल 1933 में कांग्रेस अध्यक्ष बने
थे, लेकिन गांधी और नेहरू से मतभेद के चलते उन्होंने स्वेच्छा से इस्तीफा
दे दिया था। इसके बाद वह देश से बाहर चले गए। बताया जाता है कि वे पहले
जर्मनी और फिर जापान गए। जापान में उन्होंने 1943 में 40 हजार भारतीयों को
इकट्ठा कर आजाद हिंद फौज का गठन किया। इस समय उनकी उम्र 48 साल थी। माना
जाता है कि 18 अगस्त 1945 को नेताजी की मौत ताइवान के करीब एक विमान
दुर्घटना में हुई थी। यह वही दिन था जिस दिन जापान ने दुश्मन फौजों के
सामने सरेंडर किया था। हालांकि उनकी मौत कब और कैसे हुई, इस पर विवाद है।
सरकार नहीं देती जानकारी
नेताजी की मौत पर रहस्य इसलिए भी बरकरार है क्योंकि भारत सरकार के पास
करीब 150 ऐसी फाइलें हैं जो उनकी मौत के कारण पर रोशनी डाल सकती हैं,
लेकिन भारत में आई अब तक की कोई भी सरकार इनका खुलासा नहीं करती। 17
दिसंबर, 2014 को राज्यसभा में एक प्रश्न के जवाब में गृहराज्य मंत्री
हरिभाई प्रतिभाई चौधरी ने कहा था कि इन फाइलें को सार्वजनिक करने से भारत
के अपने मित्र देशों से रिश्ते खराब हो सकते हैं।
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