Saturday, 18 April 2015

क्या है NET NEUTRALITY जिसे लेकर 6 लाख लाेगों ने किए TRAI को ईमेल?

नेट न्यूट्रैलिटी, एयरटेल ज़ीरो, फ्लिपकार्ट और सेव द इंटरनेट। ये चंद नाम सुर्खियों में हैं। दरअसल पिछले दिनों एयरटेल ने ई-रिटेलर फ्लिपकार्ट सहित कुछ कंपनियों के साथ जीरो प्लान के लिए करार किया। इसके तहत कुछ एेप्स एक्सेस करने के लिए यूज़र को कोई चार्ज नहीं देना होता। इसके बजाय एयरटेल कंपनियों से ही सीधे चार्ज लेती। इस प्लान का इंटरनेट कम्युनिटी ने विरोध कर दिया। सोशल मीडिया पर कैम्पेन चलने लगे। विरोध बढ़ने पर फ्लिपकार्ट ने इस प्लान से अपने हाथ ही खींच लिए। नेट न्यूट्रैलिटी के पक्ष में गुरुवार तक 6 लाख लोगों ने टेलीकॉम रेग्युलेटर ट्राई को ईमेल किया है। जानिए, आखिर क्या है नेट न्यूट्रैलिटी का यह मुद्दा?
क्या है नेट न्यूट्रैलिटी?
- Net Neutrality यानी अगर आपके पास इंटरनेट प्लान है तो आप हर वेबसाइट पर हर तरह के कंटेंट को एक जैसी स्पीड के साथ एक्सेस कर सकें।
- Neutrality के मायने ये भी हैं कि चाहे आपका टेलीकॉम सर्विस प्रोवाइडर कोई भी हो, अाप एक जैसी ही स्पीड पर हर तरह का डेटा एक्सेस कर सकें।
- कुल मिलाकर, इंटरनेट पर ऐसी आजादी जिसमें स्पीड या एक्सेस को लेकर किसी तरह की कोई रुकावट न हो।
- Net Neutrality टर्मिनोलॉजी का इस्तेमाल सबसे पहले 2003 में हुआ। तब काेलंबिया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर टिम वू ने कहा था कि इंटरनेट पर जब सरकारें और टेलीकॉम कंपनियां डेटा एक्सेस को लेकर कोई भेदभाव नहीं करेंगी, तब वह Net Neutrality कहलाएगी।
कैसे उठा मामला?
एयरटेल ने अपने यूज़र्स के लिए ‘एयरटेल ज़ीरो’ प्लान का फ्लिपकार्ट जैसी कुछ कंपनियों के साथ करार किया। बताया गया कि यह प्लान लेने से यूज़र्स कुछ ऐप्स का फ्री में इस्तेमाल कर पाएंगे। ऐसे ऐप्स का चार्ज यूज़र से न लेकर उन कंपनियों से लिया जाएगा जिनका एयरटेल से करार होगा। इसका इंटरनेट कम्युनिटी ने विरोध किया। सोशल साइट्स पर #savetheinternet जैसे कैम्पेन शुरू हुए। मामला इतना उठा कि कई लोगों ने फ्लिपकार्ट के ऐप्स ही डिलीट कर दिए।
सोशल मीडिया पर कैसी आई प्रतिक्रिया?
इंटरनेट कम्युनिटी ने तीन मुद्दे उठाए हैं-
1. पहला : आजादी। यानी हर तरह की वेबसाइट या हर तरह का डेटा एक्सेस करने की आजादी हो।
2. दूसरा : इक्वलिटी यानी आप कुछ भी एक्सेस करें, आपको नेट की स्पीड एक जैसी मिले।
3. तीसरा : फ्यूचर, क्योंकि इंटरनेट एक्सेस अब लग्जरी नहीं, बल्कि यूटिलिटी की कैटेगरी में आता है।
> नेट कम्युनिटी के लोगों ने यह मुद्दा उठाया कि चूंकि एयरटेल ने फ्लिपकार्ट के साथ डील की है, इसलिए एयरटेल का प्लान लेने वाले लोग बाकी शॉपिंग साइट्स या उनके ऐप्स को उसी स्पीड से नहीं खोल पाएंगे।
> यानी फ्री इंटरनेट प्लान लेने वाले यूज़र्स सिर्फ फ्लिपकार्ट या किसी एक कंपनी पर ही शॉपिंग करने पर मजबूर हो जाएंगे।
> ऐसा हुआ तो यह बदतर एक्सपीरियंस देगा। क्योंकि No Internet से भी ज्यादा खराब Slow Internet का एक्सपीरियंस होगा।
> यह वैसे ही होगा जैसे Amusement Park की एंट्री फीस चुकाने के बाद भी आपको हर एक Joy Ride के लिए अलग से टिकट लेना पड़े।
कैसे काम करेगा यह मॉडल
- कई कंपनियां टेलिकॉम ऑपरेटर्स के साथ डील करेंगी। वे उन्हें पेमेंट करेंगी ताकि नेट पैक लेने वाले उनकी साइट्स या ऐप्स पर फ्री एक्सेस कर सकें। फेसबुक और रिलायंस का इंटरनेट डॉट ओआरजी भी ऐसा ही प्लान है।
- नेट कम्युनिटी का दावा है कि अगर कंपनियों ने ये मॉडल अपनाया तो या तो उन यूज़र्स को हर एक्स्ट्रा साइट या ऐप के लिए अलग चार्ज देना होगा या उन्हें नेट की स्पीड काफी कम मिलेगी।
विरोध के बाद पीछे हटी कंपनियां
- सोशल मीडिया पर विरोध के बाद फ्लिपकार्ट ने ज़ीरो प्लान से हाथ खींच लिए।
- 51 हजार लोगों ने फ्लिपकार्ट के ऐप की रेटिंग घटाकर 1 कर दी थी। हजारों लोगों ने ऐप ही डिलीट कर दिया था।
- क्लियरट्रिप कंपनी ने भी इंटरनेट डॉट ओआरजी से खुद को अलग कर लिया।
टेलिकॉम कंपनियां क्या चाहती हैं?
- सेलुलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने ट्राई को यह दलील दी है कि भारत में कोई भी कंपनी तभी इंटरनेट टेलीफोनी सर्विस मुहैया करा सकती है जब उसे इंडियन टेलीग्राफ एक्ट 1885 के सेक्शन-4 के तहत स्पेशल लाइसेंस मिला हो।
- लिहाजा स्काइप, फेसबुक, वॉट्सऐप जैसी कंपनियां तकनीकी तौर पर बिना लाइसेंस के सेवाएं दे रही हैं।
- टेलीकॉम कंपनियों की यह भी दलील है कि वे डेटा यूसेज से पैसा कमाती हैं, लेकिन बैंडविड्थ का उन्हें कोई पैसा नहीं मिलता। सोशल साइट्स और ई-कॉमर्स कंपनियां टेलीकॉम कंपनियों के इन्फ्रास्ट्रक्चर का इस्तेमाल करती हैं, लेकिन अपने रेवेन्यू में उन्हें कोई शेयर नहीं देतीं।
- हालांकि, दावा यह भी है कि बड़ी टेलीकॉम कंपनियां का डेटा सर्विसेस से रेवेन्यू पिछले साल के हर क्वार्टर में बढ़ा है। इसकी वजह यह भी है कि अगले 5 साल में 3जी और 4जी मोबाइल हैंडसेट की बिक्री बढ़ने के साथ ही डेटा यूसेज के सेगमेंट में भी जबर्दस्त उछाल आने वाला है।
TRAI ने क्या किया?
- टेलीकॉम रेग्युलेटर ट्राई ने इस बारे में 27 मार्च को कंसल्टेशन पेपर अपनी साइट पर डाला लेकिन यह 108 पन्नों का है।
- इसमें 20 तरह के सवालों के जवाब लोगों से मांगे गए। कई अवेयरनेस ग्रुप ने इन्हें सिम्प्लीफाई करने के टूल्स भी बना लिए हैं।
- इस पेपर के खिलाफ विचार-शिकायत दर्ज कराने के लिए 24 अप्रैल की डेडलाइन तय की गई थी।
- ट्राई ने अब यह भी कहा है कि पहली नजर में तो एयरटेल ज़ीरो और फेसबुक व रिलायंस का इंटरनेट डॉट ओआरजी जैसे प्लान नेट न्यूट्रैलिटी के खिलाफ हैं।
सबसे पहले यहां
दुनिया में चिली ऐसा पहला देश है, जहां पर नेट न्यूट्रिलिटी को 2010 में लागू किया गया। 2014 में चिली टेलीकम्युनिकेशंस के नियामक सबटेल ने मोबाइल ऑपरेटरों को जीरो रेटिंग करने से प्रतिबंधित कर दिया। ऐसे में इंटरनेट कंपनियों ने मोबाइल टेलीकॉम ऑपरेटरों के साथ मिलकर कंज्यूमर को फ्री इंटरनेट यूज़ करने का करार किया। इसी प्रकार से यूरोप में द नीदरलैंड्स में 2011 में पहली बार नेट न्यूट्रिलिटी का कानून पारित किया गया। बाद में यूरोपियन यूनियन ने इसी कानून को अपनाकर पारित किया। मकसद केवल इतना था कि पूरे यूरोपियन यूनियन में एक समान टेलीकम्युनिकेशंस कानून हो। यहां तक कि इंटरनेट कंपनियों और मोबाइल ऑपरेटरों के बीच जीरो रेटिंग के करार पर भी नए कानून में प्रतिबंध लगा दिया गया। ब्राजील में 2014 में पारित 'इंटरनेट लॉ' में इसे और पैना किया गया। इसमें साफ कहा है कि नेट न्यूट्रिलिटी का अर्थ है सभी डेटा ट्रांसमिशन को नेटवर्क ऑपरेटर समान मानेंगे। उसके कंटेंट या कहां से आया है, या सेवा या एप्लीकेशन के आधार पर भी भेद नहीं किया जाएगा। यहां तक कि अमेरिका में फेडरल कम्युनिकेशंस कमीशन ने इसी साल फरवरी में साफ कहा कि इंटरनेट सेवा प्रदाता एटी एंड टी, वेरीजोन और कॉमसेट किसी भी वैध कंटेंट को रोकेंगे नहीं। न ही ये कंपनियां किसी एप्लीकेशन या सेवा की स्पीड कम कर सकती हैं। साथ ही सेवा देने के एवज में पैसा भी नहीं वसूलेंगी।
हमारे यहां ये हुआ

स्मार्टफोन के दौर में वॉट्सएप, फेसबुक, यू-ट्यूब या कोई एप आप चलाते हैं तो आपको झटका लग सकता है। टेलीकॉम कंपनियों या इंटरनेट सेवा देने वाली कंपनियों की इच्छा इससे पैसा कमाने की है। ये कंपनियां चाहती हैं कि जिस तरह से आप टीवी पर दिखने वाले चैनलों के लिए डेटा पैक लेते हैं, ठीक वैसे ही आप फ्री मिलने वाले एप्स के लिए भी लें। ये कंपनियां चाहती हैं कि अपने हिसाब से रेट लिए जाएं। साथ ही यह भी चाह रही हैं कि वे जो सुविधाएं चाहें, यूजर को वही सुविधाएं लेनी चाहिए। इससे यूज़र की आजादी को बांधने की कोशिश की जा रही है। यूज़र इतने नाराज हैं कि उन्होंने अब तक इसके खिलाफ ट्राई (यानी टेलीकॉम और इंटरनेट कंपनियों के नियम बनाने वाली संस्था) को दो लाख ई-मेल भेज दिए हैं।
टेलीकॉम कंपनियों की इस संबंध में दलील रही है कि सोशल नेटवर्किंग साइट्स और एप्स बनाने वाले अरबों की संपत्ति बना चुके हैं। मैसेजिंग सहित अन्य सेवाओं में कंपनियों को घाटा हो रहा है, क्योंकि देश में वॉट्स एप सबसे बड़ा मैसेजिंग एप बन चुका है। अब ट्राई ने यूज़र और कंपनियों से 24 अप्रैल तक राय मांगी है। यूज़र्स अपनी राय आठ मई तक भेज सकते हैं।

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