Saturday, 18 April 2015

B'Anniv: ललिता पवार के ग्लैमरस करियर को एक थप्पड़ ने किया था बर्बाद


गुजरे जमाने की पॉपुलर एक्ट्रेस ललिता पवार यदि आज हमारे बीच होतीं तो पूरे 99 साल की हो गई होतीं। 18 अप्रैल 1916 को नासिक (बॉम्बे प्रेसिडेंसी, ब्रिटिश इंडिया) में जन्मी ललिता का 24 फरवरी 1998 को पुणे, महाराष्ट्र में निधन हो गया था। यूं तो ललिता ने कई फिल्मों और टीवी सीरियल्स में काम किया है, लेकिन आज भी वे घर-घर में 'रामायण' की मंथरा के नाम से जानी जाती हैं। जानते हैं उनकी जिंदगी की कुछ बातें:
18 रुपए/महीना था ललिता पवार का पहला वेतन
कम ही लोग जानते होंगे कि ललिता ने अपने करियर की शुरुआत तब कर दी थी, जब वे बच्ची थीं। एक इंटरव्यू के दौरान खुद ललिता पवार ने इस बात का जिक्र किया था। उन्होंने जो किस्सा सुनाया था, वह काफी रोचक हैं। ललिता के अनुसार, "मैं और मेरा भाई शांताराम पिता के साथ उनके किसी काम से पूना(अब पुणे)गए थे। इसी दौरान मैंने और शांताराम ने फिल्म 'राजा हरिश्चंद्र' देखी। यह पहला मौका था, जब मैंने कोई साइलेंट फिल्म देखी थी। मेरे लिए यह अनुभव किसी आश्चर्य से कम नहीं था। इससे पहले मैंने अपने गांव में होनेवाली रामलीला ही देखी थी। फिल्म खत्म होने के बाद मैंने पर्दे के पीछे जाकर देखा कि वे कौन लोग थे, जो अभिनय कर रहे थे, लेकिन वहां कोई नहीं मिला। इसके बाद मैं आर्यन सिनेमा के ऑपरेटर से मिली तो मैंने पूछा कि वो लोग कहां गए जो सामने अभिनय कर रहे थे। तब ऑपरेटर ने मुझे आर्यन फिल्म कंपनी के बारे में बताया, जो पार्वती हिल मंदिर, पुणे के करीब स्थित थी। मैं और शांताराम वहां पहुंचे। हमने कंपनी को ध्यान से देखा। यह काफी लंबे-लंबे पिलर्स से बना था और इसकी छत के लिए सफेद कपड़े का इस्तेमाल किया गया था। छत के नीचे एक हॉल था, जो कि कपड़े से ही बनाया गया था। खिडकियां, दरवाजे आदि को पेंट किया गया था और फर्नीचर भी व्यवस्थित रूप से जमा हुआ था। वहां शूटिंग भी चल रही थी। डायरेक्टर नानासाहेब सरपोतदार इस कंपनी के पार्टनर थे। जब उन्होंने हमें वहां देखा तो कहा कि यदि हम चाहें तो फिल्म में काम कर सकते हैं। इसके बाद उन्होंने हमारे पिता से बात की और वे तैयार हो गए। बस फिर क्या था मैंने बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट 18 रुपए प्रति महीने में काम करना शुरू कर दिया और मेरे भाई को 7 रुपए के मासिक वेतन पर रखा गया। आर्यन फिल्म कंपनी के साथ मैंने 'आर्यन महिला', 'पतित उधार', 'राजा हरिश्चंद्र', 'भीमसेन', 'शमशेर बहादुर', 'पृथ्वीराज संयोगिता', 'सुभद्रा हरण' और 'चतुर सुंदरी' जैसी 20 फिल्मों में काम किया।"
'हिम्मत- ए-मर्दा' में दिखा ग्लैमरस अवतार
ललिता पवार ने 1935 तक साइलेंट फिल्मों में काम किया। यही वह साल था, जब वे पहली बार बोलती फिल्म में नजर आईं। यह फिल्म थी 'हिम्मत-ए-मर्दा'। फिल्म में ललिता का ग्लैमरस अवतार दर्शकों को देखने को मिला था। खास बात यह है कि इस फिल्म के सभी गाने भी खुद ललिता ने गाए थे। इसके बाद 1936 में उन्होंने खुद फिल्म प्रोड्यूस की। यह फिल्म थी 'दुनिया क्या है', जो टाल्सटॉय के रिसरेक्शन (पुनरुत्थान) नॉवेल पर आधारित थी। इस फिल्म को अपार सफलता मिली और ललिता की एक्टिंग को खूब सराहना मिली। इसके बाद वे ड्रामेटिक एक्ट्रेस के रूप में स्थापित हो गईं। इसके बाद ललिता ने 'नेताजी पालकर' और 'अमृत' जैसी कई फिल्मों में इमोशनल रोल किए।
एक थप्पड़ ने बर्बाद कर दिया करियर
ललिता पवार का करियर काफी अच्छा चल रहा था, लेकिन एक फिल्म के सेट पर को एक्टर भगवान दादा ने उन्हें ऐसा थप्पड़ मारा कि उनका करियर ही बर्बाद हो गया। घटना 1942 में रिलीज हुई फिल्म 'जंग-ए-आजादी' के शूटिंग के दौरान की है। एक इंटरव्यू के दौरान खुद ललिता ने इस घटना का जिक्र किया था। हालांकि, उन्होंने एक्टर और फिल्म का नाम इस समय उजागर नहीं किया था। उन्होंने कहा था, "मैं फिल्म की शूटिंग कर रही थी, जिसमें एक सीन के अनुसार, को-एक्टर को मुझे थप्पड़ मारना था। उस एक्टर को मुझसे गुरेज थी, इसलिए उसने इतनी जोर से थप्पड़ मारा कि मैं फर्श पर गिर पड़ी। मुझे फेशिअल पैरालिसिस हो गया। शॉट काफी अच्छे से हो गया, लेकिन मेरी आंखों के सामने अंधेरा छा गया। चार साल तक मेरा इलाज चला और मैं पूरी तरह काम से दूर रही। ये साल मेरे लिए काफी मुश्किल भरे थे। आज भी मेरे चेहरे में स्टिफनेस है। मैं जानती थी कि मेरा हीरोइन करियर खत्म हो गया, क्योंकि एक्ट्रेस के लिए सॉफ्ट फेस की जरूरत होती है। मैंने तय किया कि मुझे जो भी रोल मिलेंगे, मैं उसी में अपना बेस्ट देने की कोशिश करूंगी।" 1962 में ललिता फिल्म 'गृहस्थी' में नजर आईं, जो जुबली हिट साबित हुई। ललिता की मानें तो इस फिल्म के लिए उन्हें कई अवॉर्ड्स मिले थे। एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने कहा था कि अपने पूरे करियर में उन्होंने 500 ऑड फिल्मों में काम किया है और सभी में अपना बेस्ट देने की कोशिश की है।

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