विश्व प्रसिद्ध किलों में मध्य प्रदेश के चंबल में अटेर दुर्ग की ऐतिहासिक इमारत आज भी बयां कर रही है, कि भदावर राजाओं की
शौर्यगाथाओं को शौर्य के प्रतीक लाल दरवाजे से ऐतिहासिक काल में खून टपकता
था, इस खून से तिलक करने के बाद ही गुप्तचर राजा से मिल पाते थे। आज भी इस
दरवाजे को लेकर किवदंतिया जिले भर में प्रचलित है। खूनी दरवाजे का रंग भी
लाल है। इस पर ऊपर वह स्थान आज भी चिन्हित है जहां से खून टपकता था।
इतिहास में कई किवदंतियां होती है। किवदंतियां और जनश्रुतियां आज भी प्रचलित रहती है, लेकिन इतिहास कुछ अलग ही कहता है। एस आर वर्मा, उपसंचालक, राज्य पुरातत्व विभाग ग्वालियर।
दरवाजे के ऊपर भेड़ का सिर काटकर रखा जाता था: भदावर राजा लाल पत्थर से
बने दरवाजे के ऊपर भेड़ का सिर काटकर रख देते थे, दरवाजे के नीचे एक कटोरा
रख दिया जाता था। इस बर्तन में खून की बूंदें टपकती रहती थी। गुप्तचर
बर्तन में रखे खून से तिलक करके ही राजा से मिलने जाते थे, उसके बाद वह
राजपाठ व दुश्मनों से जुड़ी अहम सूचनाएं राजा को देते थे। आम आदमी को किले
के दरवाजे से बहने वाले खून के बारे में कोई जानकारी नहीं होती थी।
किले के तलघरों को खजाने की चाह में खोदा: चंबल नदी के किनारे बना
अटेर दुर्ग के तलघरों को स्थानीय लोगों ने खजाने के चाह मे खोद दिया। अटेर
निवासी श्रीराम सिंह का कहना है कि दुर्ग के इतिहास को स्थानीय लोगों ने ही
खोद दिया है। इस दुर्ग की दीवारों और जमीन को खजाने की चाह में सैकड़ों
लोगों ने खोदा है, जिसकी वजह से दुर्ग की इमारत जर्जर हो गई है।
दरवाजे से टपकता था खून
अटेर दुर्ग के ऐतिहासिक प्रवेश द्वार का निर्माण राजा महासिंह ने कराया था। इस दुर्ग की जनश्रुतियां आज भी प्रचलित है। लाल पत्थर से बना यह प्रवेश द्वार आज भी खूनी दरवाजे के नाम से प्रचलित है।
वीरेंद्र, टूरिस्ट गाइड अटेर
इतिहास में हैं कई किवदंतियांअटेर दुर्ग के ऐतिहासिक प्रवेश द्वार का निर्माण राजा महासिंह ने कराया था। इस दुर्ग की जनश्रुतियां आज भी प्रचलित है। लाल पत्थर से बना यह प्रवेश द्वार आज भी खूनी दरवाजे के नाम से प्रचलित है।
वीरेंद्र, टूरिस्ट गाइड अटेर
इतिहास में कई किवदंतियां होती है। किवदंतियां और जनश्रुतियां आज भी प्रचलित रहती है, लेकिन इतिहास कुछ अलग ही कहता है। एस आर वर्मा, उपसंचालक, राज्य पुरातत्व विभाग ग्वालियर।
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