चंद्रमा
में दाग को लेकर आज तक कोई धार्मिक या खगोलीय प्रमाण नहीं है। पौराणिक
गाथाओं में इसके कई संदर्भ मिलते हैं। प्रमुख दो संदर्भ भगवान शिव के
श्वसुर दक्ष से जुड़े हैं। स्कंद पुराण की खंड कथा के अनुसार जब दक्ष के
यज्ञ में उनकी पुत्री आैर भगवान शिव की पहली पत्नी सती माता ने अग्नि स्नान
कर प्राण त्याग दिए। तब क्रोधित भगवान शिव दक्ष को मारने के लिए कैलाश से
उठे। भगवान ने अपना बाण दक्ष को लक्ष्य कर छोड़ा।
अचूक बाण से प्राण रक्षा के लिए दक्ष मृग यानी हिरण का रूप धर कर
चंद्रमा में छुप गया। इसलिए चंद्रमा का नाम मृगांक भी है, जिसका अर्थ है
हिरण अंक यानी कलंक या दाग। एक अन्य कथा श्री भागवत महापुराण में मिलती है।
छटे स्कंध की कथा के अनुसार दक्ष की 60 पुत्रियां थी। इनमें से 27 चंद्रमा
से ब्याही गई थी। चंद्र का प्रेम 27 में से एक रोहिणी पर अधिक था।
इससे नाराज अन्य 26 पुत्रियों ने जब दक्ष को शिकायत की तो दक्ष ने चंद्रमा क्षीण होने का शाप दिया। बाद में दक्ष का क्रोध ठंडा होने पर शाप का प्रभाव भी कम हो गया यानि चंद्रमा को वरदान मिला, वह कृष्ण पक्ष में क्षीण होगा और शुक्ल पक्ष में फिर बढ़ जाएगा। माना जाता है इसी कथा के संदर्भ में शाप की अवधि में चंद्रमा का कलंक लगा, जो आज तक दिखाई देता है।
इससे नाराज अन्य 26 पुत्रियों ने जब दक्ष को शिकायत की तो दक्ष ने चंद्रमा क्षीण होने का शाप दिया। बाद में दक्ष का क्रोध ठंडा होने पर शाप का प्रभाव भी कम हो गया यानि चंद्रमा को वरदान मिला, वह कृष्ण पक्ष में क्षीण होगा और शुक्ल पक्ष में फिर बढ़ जाएगा। माना जाता है इसी कथा के संदर्भ में शाप की अवधि में चंद्रमा का कलंक लगा, जो आज तक दिखाई देता है।
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