चक्रवर्ती सम्राट युद्धिष्ठिर को उनके अपने चचेरे भाइयों और मामा
शकुनि ने चौसर के खेल में हरा दिया। शर्त थी कि 12 साल का वनवास और फिर एक
साल का अज्ञातवास काटना होगा। पकड़े गए तो फिर से वही सजा। यही है वह जगह,
जहां की दुर्गम पहाड़ियों में सम्राट युद्धिष्ठिर ने चारों भाइयों और
पांचाली द्रौपदी के साथ वह बुरा वक्त काटा। 5500 साल पुराना इतिहास संजोने
वाली इस जगह को आज मुक्तेश्वर महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है।
सीमांत जिले पठानकोट का अर्द्धपर्वतीय क्षेत्र। कल्पना भी नहीं की जा
सकती कि यहां कभी कोई रहा भी होगा, लेकिन मान्यता है कि पांचों पांडव और
पांचाली द्रौपदी ब्राह्मण, साधु और संन्यासियों के वेश में छिपते–छिपाते
पंचनद प्रदेश (वर्तमान पंजाब) में शिवालिक पहाड़ियों के मध्य स्थित इरावती
नदी (मौजूदा नाम रावी) के तट पर पहुंचे। यहां उन्होंने छह माह का वक्त
गुजारा।
यह है मुक्तेश्वर धाम की खासियत
रणजीत सागर बांध और पठानकोट के बीच (पठानकोट से 22 किलोमीटर दूर) रावी नदी
के किनारे गांव ढूंग में पांडवों ने पहाड़ियों को काटकर गुफाओं का निर्माण
किया। एक गुफा में शिव मंदिर कक्ष, रसोई कक्ष, सभागार और दूसरी गुफा में एक
अंगरक्षक सहायक तेली को रात में जागते रहने के लिए कोहलू गुफा का निर्माण
किया। तीसरी गुफा द्रौपदी के लिए आरक्षित थी और चौथी में दूध और भोजन
भंडारण किया जाता था। आज इन गुफाओं तक पहुंचने के लिए 164 पौड़ियां पहाड़ी
से नीचे की तरफ विकसित की गई हैं।
मंडरा रहा है इतिहास पर खतरा
मंडरा रहा है इतिहास पर खतरा
अब शाहपुर कंडी में बांध बनने के चलते इसकी झील में इस स्वर्णिम
इतिहास के लोप हो जाने का खतरा पैदा हो गया है। यह प्रोजेक्ट 2016 में पूरा
हो जाएगा। इसका जलस्तर लगभग 405 मीटर निर्धारित किया गया है। एक और दो
नंबर की गुफाएं पूरी तरह से जल में समा जाएंगी। गुफा नंबर के दरवाजे का
निचला तल 401 मीटर पर है। 20 फरवरी 1995 को जब इसे असुरक्षित घोषित किया
गया तो ग्राम पंचयातों के प्रयास से 29 मार्च 1995 को भूमि-अधिग्रहण विभाग
की मीटिंग में यह फैसला लिया गया कि मुक्तेश्वर मंदिर के 22 कनाल एरिया का
अधिग्रहित नहीं किया जाएगा। बावजूद इसके जब सरकारें या प्रशासन गंभीर नहीं
हुआ तो मुक्तेश्वर धाम बचाओ समिति के बैनर तले यह एक जन आंदोलन बन गया।
अगर प्रशासन वादे पर खरा न उतरा तो...
हालांकि शिवभक्तों के जनआंदाेलन और प्राचीन इतिहास के मद्देनजर
प्रशासन इसे बचाने के कई बार वादे कर चुका है, लेकिन अगर प्रशासन ने
वादाखिलाफी की तो...। हो सकता है यह पवित्र इतिहास जलमग्न हो जाए। शाहपुर
कंडी बांध प्रशासन के अनुसार यहां बनने वाली झील में लगभग 405 मीटर पानी हर
वक्त भरा रहेगा, ऐसे में इस गुफा के निचले तल (401 मीटर समुद्र तल से
ऊंचाई) के ऊपर भी कई मीटर पानी भर जाएगा।
कब-कब क्या हुआ धाम को बचाने के लिए
बरसों से चल रहे संघर्ष के बीच 13 अक्तूबर 2014 को पठानकोट में एक
रैली निकाली गई। इसमें शामिल 5 हजार शिवभक्तों ने पठानकोट के डीसी को एक
मांगपत्र सौंपा था। इसके बाद 19 अक्तूबर 2014 को फिर अधिकारियों की एक बैठक
हुई। इसमें चीफ इंजीनियर हरविंदर सिंह ने आश्वासन दिया था कि छह महीने के
भीतर प्रोपोजल तैयार करके धाम को बचाने के लिए काम शुरू कर देंगे। अब इस
बात को सातवां महीना चल रहा है। अभी तक तो यह आश्वासन महज एक आश्वासन ही
है।
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