तरक्कियों की दौड़ में उसी का जोर चल गया,बना के अपना रास्ता जो भीड़ से निकल गया।
एक दिन आसमान की ऊंचाइयां छुएगा
एक दिन अब्दुल आसमान की ऊंचाइयां छूकर दिखाएगा। लोग उसका उदाहरण देंगे कि अब्दुल के दोनों हाथ नहीं हैं फिर भी वह कहां पहुंच गया। यह कहना है अब्दुल की मां फातिमा का। उन्हें उम्मीद है वह बिना हाथ के ही हमारा नाम उसी तरह रोशन करेगा जैसे हाथ होने पर करता।
नईम अख्तर बुरहानपुरी की ये पंक्तियां कलीमी कॉलोनी निवासी 9 साल के अब्दुल
कादिर पर सटीक बैठती हैं। 11 महीने पहले हादसे ने उसके हाथ छीन लिए थे
लेकिन उसका हौसला नहीं टूटा। अस्पताल में आंसू बहाने की बजाए उसने बिस्तर
से ही पैरों की अंगुलियों में कलम थाम ली।
अब्दुल अब पूरा होमवर्क खुद कर लेता है। इस साल 75 फीसदी अंकों के साथ उसने सेकंड क्लास पास की। हिंदी, अंग्रेजी व अरबी का उसे ज्ञान है। लैपटॉप वह खिलौने की तरह चलाता है। यह सब उसने छह महीने में ही सीख लिया। पढ़ने का उसे इतना शौक है कि अस्पताल से लौटने के एक सप्ताह बाद ही स्कूल जाने लगा। अवसाद को उसने पास फटकने ही नहीं दिया।
अब्दुल अब पूरा होमवर्क खुद कर लेता है। इस साल 75 फीसदी अंकों के साथ उसने सेकंड क्लास पास की। हिंदी, अंग्रेजी व अरबी का उसे ज्ञान है। लैपटॉप वह खिलौने की तरह चलाता है। यह सब उसने छह महीने में ही सीख लिया। पढ़ने का उसे इतना शौक है कि अस्पताल से लौटने के एक सप्ताह बाद ही स्कूल जाने लगा। अवसाद को उसने पास फटकने ही नहीं दिया।
बकौल अब्दुल वह अपने को किसी से कमजोर नहीं समझता। उसने अपना फेसबुक
एकाउंट भी बनाया है। इंटरनेट पर भी प्रोफाइल बना रखी है। उसे इंजीनियर
बनना है। विकलांगों की प्रेरक कहानियों का संग्रह उसके पास है।
खेलना-कूदना, साइकिल चलाना, डांस करना और फिल्म देखना उसे बहुत पसंद है। आमिर खान उसके पसंदीदा कलाकार हैं।
ऐसे हुआ था हादसा
24 मई 14 को अब्दुल अपनी मौसी के यहां भोपाल गया था। वहां बच्चों के साथ खेलते समय उसने छत के ऊपर से निकल रही हाइटेंशन लाइन को छू लिया था। उसके दोनों हाथ बुरी तरह झुलस गए थे। एक सप्ताह तक भोपाल में इलाज चला। इसके बाद डॉक्टरों ने मुंबई रैफर कर दिया। वहां ऑपरेशन कर हाथ अलग कर दिए। करीब ढाई महीने तक वह अस्पताल में ही रहा।
कभी नहीं कहते कमजोर हो
अब्दुल के पिता हुसैन इंदौरी के मुताबिक वह बेटे को कभी इसका अहसास नहीं दिलाते कि वह कमजोर है। पूरा परिवार उसे हौसला देता है। स्कूल में भी उससे सामान्य बच्चों की तरह व्यवहार किया जाता है। अस्पताल में हाथ कटते समय जरूर वह मायूस हुआ था। हमसे कहता था पापा अब मेरे सारे दोस्त साइकिल चलाएंगे और मैं नहीं चला पाऊंगा। इस पर हमारे आंसू आ जाते। खुद को संभालकर कहते तुम चिंता मत करो, सब ठीक हो जाएगा। अब उसे होमवर्क करते, साइकिल चलाते, डांस करते और लैपटॉप चलाते देखते हैं तो खुशी होती है। ब्रश करने से लेकर रोजमर्रा के काम वह खुद करता है। मप्र के प्रमुख सचिव एंटोनी डिसा व स्वास्थ्य सचिव प्रवीर कृष्ण उसकी तारीफ कर कृत्रिम हाथ लगवाने का वादा कर चुके हैं।
ऐसे हुआ था हादसा
24 मई 14 को अब्दुल अपनी मौसी के यहां भोपाल गया था। वहां बच्चों के साथ खेलते समय उसने छत के ऊपर से निकल रही हाइटेंशन लाइन को छू लिया था। उसके दोनों हाथ बुरी तरह झुलस गए थे। एक सप्ताह तक भोपाल में इलाज चला। इसके बाद डॉक्टरों ने मुंबई रैफर कर दिया। वहां ऑपरेशन कर हाथ अलग कर दिए। करीब ढाई महीने तक वह अस्पताल में ही रहा।
कभी नहीं कहते कमजोर हो
अब्दुल के पिता हुसैन इंदौरी के मुताबिक वह बेटे को कभी इसका अहसास नहीं दिलाते कि वह कमजोर है। पूरा परिवार उसे हौसला देता है। स्कूल में भी उससे सामान्य बच्चों की तरह व्यवहार किया जाता है। अस्पताल में हाथ कटते समय जरूर वह मायूस हुआ था। हमसे कहता था पापा अब मेरे सारे दोस्त साइकिल चलाएंगे और मैं नहीं चला पाऊंगा। इस पर हमारे आंसू आ जाते। खुद को संभालकर कहते तुम चिंता मत करो, सब ठीक हो जाएगा। अब उसे होमवर्क करते, साइकिल चलाते, डांस करते और लैपटॉप चलाते देखते हैं तो खुशी होती है। ब्रश करने से लेकर रोजमर्रा के काम वह खुद करता है। मप्र के प्रमुख सचिव एंटोनी डिसा व स्वास्थ्य सचिव प्रवीर कृष्ण उसकी तारीफ कर कृत्रिम हाथ लगवाने का वादा कर चुके हैं।
एक दिन आसमान की ऊंचाइयां छुएगा
एक दिन अब्दुल आसमान की ऊंचाइयां छूकर दिखाएगा। लोग उसका उदाहरण देंगे कि अब्दुल के दोनों हाथ नहीं हैं फिर भी वह कहां पहुंच गया। यह कहना है अब्दुल की मां फातिमा का। उन्हें उम्मीद है वह बिना हाथ के ही हमारा नाम उसी तरह रोशन करेगा जैसे हाथ होने पर करता।
No comments:
Post a Comment