मोरारजी
देसाई अकेले ऐसे शख़्स थे, जिन्हें दो देशों भारत और पाकिस्तान के
सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ और ‘निशान ए पाकिस्तान’ से सम्मानित
किया गया. पहले ग़ैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई की आज 20वीं पुण्य
तिथि हैं।
मोरारजी देसाई का जन्म 29 फ़रवरी 1896 को गुजरात के भदेली नामक स्थान पर हुआ था। उनका संबंध एक ब्राह्मण परिवार से था। उनके पिता रणछोड़जी देसाई भावनगर (सौराष्ट्र) में एक स्कूल अध्यापक थे। वह अवसाद (निराशा एवं खिन्नता) से ग्रस्त रहते थे, अत: उन्होंने कुएं में कूद कर अपनी इहलीला समाप्त कर ली। पिता की मृत्यु के तीसरे दिन मोरारजी देसाई की शादी हुई थी। पिता को लेकर उनके हृदय में काफ़ी सम्मान था। इस विषय में मोरारजी देसाई ने कहा था-
मोरारजी देसाई का जन्म 29 फ़रवरी 1896 को गुजरात के भदेली नामक स्थान पर हुआ था। उनका संबंध एक ब्राह्मण परिवार से था। उनके पिता रणछोड़जी देसाई भावनगर (सौराष्ट्र) में एक स्कूल अध्यापक थे। वह अवसाद (निराशा एवं खिन्नता) से ग्रस्त रहते थे, अत: उन्होंने कुएं में कूद कर अपनी इहलीला समाप्त कर ली। पिता की मृत्यु के तीसरे दिन मोरारजी देसाई की शादी हुई थी। पिता को लेकर उनके हृदय में काफ़ी सम्मान था। इस विषय में मोरारजी देसाई ने कहा था-
"मेरे पिता ने मुझे जीवन के मूल्यवान पाठ पढ़ाए थे। मु्झे उनसे कर्तव्यों का पालन करने की प्रेरणा प्राप्त हुई थी। उन्होंने धर्म पर विश्वास रखने और सभी स्थितियों में समान बने रहने की शिक्षा भी मुझे दी थी।"मोरारजी देसाई की शिक्षा-दीक्षा मुंबई के एलफिंस्टन कॉलेज में हुई जो उस समय काफ़ी महंगा और खर्चीला माना जाता था। मुंबई में मोरारजी देसाई नि:शुल्क आवास गृह में रहे जो गोकुलदास तेजपाल के नाम से प्रसिद्ध था। एक समय में वहाँ 40 शिक्षार्थी रह सकते थे। विद्यार्थी जीवन में मोरारजी देसाई औसत बुद्धि के विवेकशील छात्र थे। इन्हें कॉलेज की वाद-विवाद टीम का सचिव भी बनाया गया था लेकिन स्वयं मोरारजी ने मुश्किल से ही किसी वाद-विवाद प्रतियोगिता में हिस्सा लिया होगा। मोरारजी देसाई ने अपने कॉलेज जीवन में ही महात्मा गाँधी, बाल गंगाधर तिलक और अन्य कांग्रेसी नेताओं के संभाषणों को सुना था। कॉलेज जीवन के पाँच वर्षों में इन्होंने बहुत सी फ़िल्में देखीं लेकिन स्वयं के पैसों से नहीं। इनका कहना था-
"मैं अपने पैसों से फ़िल्म देखना या मनोरंजन करना पसंद नहीं करता। मुझमें कभी ऐसी ख़्वाहिश ही नहीं उठती थी।"बचपन में मोरारजी देसाई को क्रिकेट देखने का भी शौक़ था लेकिन क्रिकेट खेलने का नहीं। क्रिकेट मैचों को देखने के लिए वह सही वक़्त का इंतज़ार करते थे और सुरक्षा प्रहरी की नज़र बचाकर दर्शक दीर्घा में प्रविष्ट हो जाते थे।
व्यावसायिक जीवन
मोरारजी देसाई ने मुंबई प्रोविंशल सिविल सर्विस हेतु आवेदन करने का मन बनाया जहाँ सरकार द्वारा सीधी भर्ती की जाती थी। जुलाई 1917
में उन्होंने यूनिवर्सिटी ट्रेनिंग कोर्स में प्रविष्टि पाई। यहाँ इन्हें
ब्रिटिश व्यक्तियों की भाँति समान अधिकार एवं सुविधाएं प्राप्त होती रहीं।
यहाँ रहते हुए मोरारजी अफ़सर बन गए। मई 1918 में वह परिवीक्षा पर बतौर उप ज़िलाधीश अहमदाबाद
पहुंचे। उन्होंने चेटफ़ील्ड नामक ब्रिटिश कलेक्टर (ज़िलाधीश) के अंतर्गत
कार्य किया। मोरारजी 11 वर्षों तक अपने रूखे स्वभाव के कारण विशेष उन्नति
नहीं प्राप्त कर सके और कलेक्टर के निजी सहायक पद तह ही पहुँचे।
राजनीतिक जीवन
मोरारजी देसाई ने 1930 में ब्रिटिश सरकार की नौकरी छोड़ दी और स्वतंत्रता संग्राम के सिपाही बन गए। 1931 में वह गुजरात प्रदेश की कांग्रेस कमेटी के सचिव बन गए। उन्होंने अखिल भारतीय युवा कांग्रेस की शाखा स्थापित की और सरदार पटेल के निर्देश पर उसके अध्यक्ष बन गए। 1932 में मोरारजी को 2 वर्ष की जेल भुगतनी पड़ी। मोरारजी 1937 तक गुजरात प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव रहे। इसके बाद वह बंबई
राज्य के कांग्रेस मंत्रिमंडल में सम्मिलित हुए। इस दौरान यह माना जाता
रहा कि मोरारजी देसाई के व्यक्तितत्त्व में जटिलताएं हैं। वह स्वयं अपनी
बात को ऊपर रखते हैं और सही मानते हैं। इस कारण लोग इन्हें व्यंग्य से
'सर्वोच्च नेता' कहा करते थे। मोरारजी को ऐसा कहा जाना पसंद भी आता था।
गुजरात के समाचार पत्रों में प्राय: उनके इस व्यक्तित्व को लेकर व्यंग्य भी
प्रकाशित होते थे। कार्टूनों में इनके चित्र एक लंबी छड़ी के साथ होते थे
जिसमें इन्हें गाँधी टोपी भी पहने हुए दिखाया जाता था। इसमें व्यंग्य यह
होता था कि गाँधीजी के व्यक्तित्व से प्रभावित लेकिन अपनी बात पर अड़े रहने
वाले एक ज़िद्दी व्यक्ति।
स्वतंत्रता संग्राम
में भागीदारी के कारण मोरारजी देसाई के कई वर्ष ज़ेलों में ही गुज़रे। देश
की आज़ादी के समय राष्ट्रीय राजनीति में इनका नाम वज़नदार हो चुका था।
लेकिन मोरारजी की प्राथमिक रुचि राज्य की राजनीति में ही थी। यही कारण है
कि 1952 में इन्हें बंबई का मुख्यमंत्री बनाया गया। इस समय तक गुजरात तथा महाराष्ट्र बंबई प्रोविंस के नाम से जाने जाते थे और दोनों राज्यों का पृथक गठन नहीं हुआ था। 1967 में इंदिरा गाँधी के प्रधानमंत्री बनने पर मोरारजी को उप प्रधानमंत्री और गृह मंत्री बनाया गया। लेकिन वह इस बात को लेकर कुंठित थे कि वरिष्ठ कांग्रेस नेता होने पर भी उनके बजाय इंदिरा गाँधी
को प्रधानमंत्री बनाया गया। यही कारण है कि इंदिरा गाँधी द्वारा किए जाने
वाले क्रांतिकारी उपायों में मोरारजी निरंतर बाधा डालते रहे। दरअसल जिस समय
श्री कामराज ने सिंडीकेट की सलाह पर इंदिरा गाँधी को प्रधानमंत्री बनाए
जाने की घोषणा की थी तब मोरारजी भी प्रधानमंत्री की दौड़ में शामिल थे। जब
वह किसी भी तरह नहीं माने तो पार्टी ने इस मुद्दे पर चुनाव कराया और इंदिरा
गाँधी ने भारी मतांतर से बाज़ी मार ली। इंदिरा गाँधी ने मोरारजी के अहं की
तुष्टि के लिए इन्हें उप प्रधानमंत्री का पद दिया।
No comments:
Post a Comment