हरियाणा प्रदेश पौराणिक और ऐतिहासिक दृष्टि से बेहद गौरवमयी
एवं उल्लेखनीय जगह है। हरियाणा की माटी का कण-कण शौर्य, स्वाभिमान और
संघर्ष की कहानी बयां करता है। महाभारतकालीन ‘धर्म-यृद्ध’ भी हरियाणा
प्रदेश की पावन भूमि पर कुरूक्षेत्र के मैदान में लड़ा गया था और यहीं पर
भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को ‘गीता’ का उपदेश देकर पूरे विश्व को एक नई
दिशा दी थी। आपको ऐसे
ही एक ऐतिहासिक पेड़ के बारे में बताने जा रहा है जिसे काटने पर उसमें से
खून निकलता था।
ऐतिहासिक नजरिए से देखा जाए तो पानीपत के मैदान पर ऐसी तीन ऐतिहासिक लड़ाइयां लड़ीं गईं, जिन्होंने पूरे देश की तकदीर और तस्वीर बदलकर रख दी थी। पानीपत की तीसरी और अंतिम ऐतिहासिक लड़ाई 250 वर्ष पूर्व 14 जनवरी, 1761 को मराठा सेनापति सदाशिव राव भाऊ और अफगानी सेनानायक अहमदशाह अब्दाली के बीच हुई थी।
पानीपत की लड़ाइयों के बारे में सबने सुना ही है, लेकिन इससे जुड़ी कुछ रोचक बातें हैं, जिन्हें शायद कम ही लोग जानते हैं। क्या आपने सुना है उस पेड़ के बारे में ? नहीं सुना? आज हम बताएंगे कि उस पेड़ की कहानी जिसे काटने पर निकलता था खून।
ये बात है सन् 1761 की, जब पानीपत का तीसरा युद्ध लड़ा गया था। इस युद्ध को भारत में मराठा साम्राज्य के अंत के रूप में भी देखा जाता है। इस युद्ध में अहमदशाह अब्दाली की जीत हुई थी। यहां पर एक स्मारक है, जिसका नाम है 'काला अंब'। अंब पंजाबी का शब्द है। इसका मतलब होता है आम (फल)। 'काला अंब' के साथ एक अनोखी बात जुड़ी है। कहा जाता है कि पानीपत के तृतीय युद्ध के दौरान इस जगह पर एक काफी बड़ा आम का पेड़ हुआ करता था। लड़ाई के बाद सैनिक इसके नीचे आराम किया करते थे। यहां हुए युद्धों में इतना रक्त बहा कि इस इलाके की मिट्टी लाल हो गई। कहा जाता है कि इसका असर इस आम के पेड़ पर भी पड़ा।
आम के पेड़ का रंग पड़ गया था काला
रक्त के कारण आम के पेड़ का रंग काला हो गया और तभी से इस जगह को 'काला अंब' यानी काला आम के नाम से जाना जाने लगा। इस युद्ध में तकरीबन 70,000 मराठा सैनिकों की मौत हो गई थी। एक दिलचस्प तथ्य यह भी है कि इस पेड़ पर लगे आमों को काटने पर उनमें से जो रस निकलता था, उसका रंग खून की तरह लाल होता था। इसलिए अगर ये कहें कि यहां के आम से खून निकलता है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
पेड़ की जगह पर है अब स्मारक
कई वर्षों बाद इस पेड़ के सूखने पर इसे कवि पंडित सुगन चंद रईस ने खरीद लिया। सुगन चंद ने इस पेड़ की लकड़ी से खूबसूरत दरवाजे बनवाए। यह दरवाजा अब पानीपत म्यूजियम में रखा गया है। अब इस जगह पर एक स्मारक बनाया गया है, जिसे 'काला अंब' कहा जाता है। आम का ये पेड़ काला हो गया है, इसलिए इसे काला अंब कहा जाता है।
काला कहने के पीछे क्या है कारण
काला अंब पर काले रंग के आम लगे थे। ऐसा माना गया कि आम का रंग काला इसलिए हुआ, क्योंकि यह उस मिट्टी में पैदा हुआ था जिसमें सैनिकों का खून मिल गया था। ज़ाहिर है, यह पेड़ बहुत समय तक गायब रहा था। इस स्मारक को ’काला’ कहने का वास्तविक कारण यह भी हो सकता है कि इसके पत्ते गहरे हरे रंग के हैं। इस जगह पर लोहे की छड़ के साथ ईंट से बना एक स्तंभ है। इस स्तंभ पर अंग्रेज़ी और उर्दू में लड़ाई के बारे में एक संक्षिप्त शिलालेख है। इसके चारों ओर एक लोहे की बाड़ बनी हुई है। हरियाणा के राज्यपाल की अध्यक्षता में एक सोसायटी इस पर्यटन स्थल के विकास और सौंदर्यीकरण के लिए कार्य कर रही है।मराठों की याद में लगाया गया था पेड़
काला अंब उन मराठों की याद में बनवाया गया था जिन्होंने 1761 में अहमद शाह अब्दाली के साथ पानीपत की तीसरी लड़ाई लड़ी थी। मराठा सेनाओं का नेतृत्व सदाशिवराव भाऊ, विश्वासराव और महादाजी शिंदे ने किया था। जिस जगह यह लड़ाई लड़ी गई थी, ठीक उसी जगह एक आम का पेड़ लग गया था। एक तरह से यह युद्धों की यादगार बन गया था।
No comments:
Post a Comment