Tuesday, 31 March 2015

ये थे हिंदुस्तान के आखिरी हिंदू सम्राट, कन्नौज की राजकुमारी से हुआ था प्यार

दिल्ली की राजगद्दी पर बैठने वाले अंतिम हिन्दू शासक पृथ्वीराज चौहान एक ऐसे वीर योद्धा थे जिन्होंने बचपन में ही शेर का जबड़ा फाड़ डाला था। पृथ्वीराज चौहान ने अपनी दोनों आंखें खो देने के बावजूद भी शब्द भेदी बाण से भरी सभा में मोहम्मद गौरी को मौत के घाट उतार दिया था। वे एक वीर योद्धा थे। ये बहुत कम ही लोगों को पता है कि वे एक प्रेमी भी थे। वे कन्नौज के महाराज जयचन्द्र की पुत्री संयोगिता से प्रेम करते थे। दोनों में प्रेम इतना था कि राजकुमारी को पाने के लिए पृथ्वीराज चौहान स्वयंवर के बीच से उनका अपरहण कर लाए थे।
कहा जाता है कि जब पृथ्वीराज चौहान अपने नाना और दिल्ली के सम्राट महाराजा अनंगपाल की मृत्यु के बाद दिल्ली की राज गद्दी पर बैठे। महाराजा अनंगपाल को कोई पुत्र नहीं था इसलिए उन्होंने अपने दामाद अजमेर के महाराज और पृथ्वीराज चौहान के पिता सोमेश्वर सिंह से आज्ञा लेकर पृथ्वीराज को दिल्ली का युवराज घोषित कर दिया। राजनीतिक संघर्षों के बाद पृथ्वीराज दिल्ली के सम्राट बने। दिल्ली की सत्ता संभालने के साथ ही पृथ्वीराज को कन्नौज के महाराज जयचंद की पुत्री संयोगिता भा गई। जयचंद्र पृथ्वीराज से ईर्ष्या का भाव रखते थे। एक दिन कन्नौज में एक चित्रकार पन्नाराय आया जिसके पास दुनिया के महारथियों के चित्र थे और उन्हीं में एक चित्र पृथ्वीराज चौहान का था। कन्नौज की लड़कियों ने पृथ्वीराज के चित्र को देखा तो वे देखते ही रह गईं। पृथ्वीराज के तारीफ की ये बातें संयोगिता को मालूम चली तो वह उस चित्र को देखने गई। चित्र देख पहली ही नजर में संयोगिता ने अपना सर्वस्व पृथ्वीराज को दे दिया।
चित्रकार ने दी संयोगिता के बारे में जानकारी
महाराज जयचंद और पृथ्वीराज चौहान में दुश्मनी थी। इसके बाद चित्रकार ने दिल्ली पहुंचकर पृथ्वीराज से भेट की और राजकुमारी संयोगिता का एक चित्र बनाकर उन्हें दिखाया जिसे देखकर पृथ्वीराज के मन में भी संयोगिता के लिए प्रेम उमड़ पड़ा। उन्हीं दिनों महाराजा जयचंद्र ने संयोगिता के लिए एक स्वयंवर का आयोजन किया। इसमें विभिन्न राज्यों के राजकुमारों और महाराजाओं को आमंत्रित किया। पृथ्वीराज को आमंत्रण नहीं भेजा।
द्वारपाल की जगह क्यों रखवाई पृथ्वीराज की प्रतिमा
राजकुमारी के पिता ने पृथ्वीराज चौहान का अपमान करने के लिए स्वयंवर में उनकी मूर्ति को द्वारपाल की जगह खड़ा कर दिया। राजकुमारी संयोगिता जब वरमाला लिए सभा में आईं तो उन्हें अपने पसंद का वर कहीं नजर नहीं आया। उसकी नजर द्वारपाल की जगह रखी पृथ्वीराज की मूर्ति पर पड़ी और उन्होंने आगे बढ़कर वरमाला उस मूर्ति के गले में डाल दी। वास्तव में जिस समय राजकुमारी ने मूर्ति में वरमाला डालना चाहा ठीक उसी समय पृथ्वीराज स्वयं आकर खड़े हो गए और माला उनके गले में पड़ गई। संयोगिता द्वारा पृथ्वीराज के गले में वरमाला डालते देख पिता जयचंद्र आग बबूला हो गए। वह तलवार लेकर संयोगिता को मारने के लिए आगे आए, लेकिन इससे पहले की वो संयोगिता तक पहुंचे पृथ्वीराज संयोगिता को अपने साथ लेकर वहां भाग गए।
गौरी के साथ किया दिल्ली पर आक्रमण
जयचंद्र ने पृथ्वीराज से बदला लेने के लिए मोहम्मद गौरी से मित्रता की और दिल्ली पर आक्रमण कर दिया। पृथ्वीराज ने मोहम्मद गौरी को 17 बार परास्त किया। पृथ्वीराज चौहान ने सहृदयता का परिचय देते हुए मोहम्मद गौरी को हर बार जीवित छोड़ दिया। राजा जयचन्द ने गद्दारी करते हुए मोहम्मद गोरी को सैन्य मदद दी और इसी वजह से मोहम्मद गौरी की ताकत दोगुनी हो गयी तथा 18वीं बार के युद्ध मे पृथ्वीराज चौहान मोहम्मद गोरी से पराजित होने पर पृथ्वीराज चौहान को मोहम्मद गोरी के सैनिको द्वारा उन्‍हें बंदी बना लिया गया एवं उनकी आंखें गरम सलाखों से जला दी गईं। इसके साथ अलग-अलग तरह की यातनाए भी दी गई।
शब्द भेदी बाण से मार दिया गौरी को
बाद में मो.गौरी ने पृथ्वीराज को मारने का फैसला किया तभी महाकवि चंदर बरदाई ने मोहम्मद गौरी को पृथ्वीराज के एक कला के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि चौहान को शब्द भेदी बाण छोड़ने की कला मे महारत हासिल है। यह बात सुन मोहम्मद गौरी ने रोमांचित होकर इस कला के प्रदर्शन का आदेश दिया। प्रदर्शन के दौरान गौरी के शाबास आरंभ करो शब्द कहे भरी महफिल में चंदर बरदाई ने एक दोहे द्वारा पृथ्वीराज को मोहम्मद गौरी के बैठने के स्थान का संकेत दिया जो इस प्रकार है-
"चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण,
ता ऊपर सुल्तान है मत चुको चौहान।"
तभी अचूक शब्दभेदी बाण से पृथ्वीराज ने गौरी को मार गिराया। साथ ही, दुश्मनों के हाथों मरने से बचने के लिए चंदर बरदाई और पृथ्वीराज ने एक-दूसरे का वध कर दिया। जब संयोगिता को इस बात की जानकारी मिली तो वह एक वीरांगना की भांति सती हो गई। इतिहास के स्वर्ण अक्षरों में आज भी यह प्रेमकहानी अमर है।

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