एक देवदूत जैसा चेहरा, उज्ज्वल रंग और शानदार मुस्कराहट। 1930 की यह तस्वीर उस महिला की है, जो ममता की मूर्ति कही जाती है। यह अलौकिक चेहरा कोई और नहीं, बल्कि मदर टेरेसा हैं। यह तस्वीर उनके 18वें साल की है।
यह दुर्लभ तस्वीर आजकल सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है। यह तब की
तस्वीर है, जब वह जवान हो रही थीं। जब वह बिना थके मानव जाति की सेवा कर
रही थीं। वह खुद को दूसरों के प्रति करुणा और देखभाल के लिए समर्पित कर रही
थीं। वह 'मानव सेवा ही भगवान की सच्ची सेवा है' का संदेश दे रही थीं।
मदर टेरेसा ने 1950 में रोमन कैथोलिक ऑर्गेनाइजेशन के तहत भारत में
मिशिनरीज ऑफ चैरिटी की शुरुआत की। यह संस्था बेसहारा, कोढ़ और क्षय रोग के
पीड़ितों के कल्याण और पुर्नवास का काम करती है। यह संस्था अब 4500 सक्रिय
सिस्टर्स की मदद से 133 देशों में काम कर रही है। इस महान सेवा के लिए मदर
टेरेसा को 1979 में नोबल शांति पुरस्कार मिला।
मदर टेरेसा ने एक बार कहा था, "खून से वह अल्बेनियन हैं, लेकिन
नागरिकता से भारतीय हैं। विश्वास से कैथोलिक नन हैं। इसलिए मैं खुद को पूरी
दुनिया का कहती हूं। दिल से मैं खुद को यीशु के दिल से जुड़ी पाती हूं।"
पांच सितंबर 1997 में मदर टेरेसा ने कोलकाता में आखिरी सांस ली।
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