Tuesday, 31 March 2015

3300 रु. में एंड्रॉइड किटकैट के साथ लॉन्च हुआ Micromax Bolt S300

माइक्रोमैक्स कंपनी ने अपनी अफोर्डेबल बोल्ट सीरीज में एक और फोन जोड़ लिया है। कंपनी ने बोल्ट S300 नाम से एंड्रॉइड किटकैट ऑपरेटिंग सिस्टम के साथ नया फोन लॉन्च कर दिया है। बोल्ट S300 स्मार्टफोन माइक्रोमैक्स की रशिया वेबसाइट पर लिस्ट कर दिया गया है। अभी इस फोन को भारतीय वेबसाइट पर लिस्ट नहीं किया गया है।
भारत में रिटेल स्टोर्स पर उपलब्ध-
मुंबई स्थित एक चर्चित रिटेलर महेश टेलिकॉम (@maheshtelecom) ने ट्वीट के जरिए इस फोन की उपलब्धता की जानकारी दी है।
डुअल सिम वाले माइक्रोमैक्स बोल्ट S300 में एंड्रॉइड किटकैट 4.4.3 ऑपरेटिंग सिस्टम दिया गया है। इस फोन में नया एंड्रॉइड अपडेट किया जाएगा या नहीं इसके बारे में अभी कोई भी जानकारी नहीं दी गई है।
माइक्रोमैक्स की बोल्ट सीरीज का ये नया फोन 4 इंच की स्क्रीन के साथ आता है। इस फोन की डिस्प्ले क्वालिटी HD से काफी कम है (480*800 पिक्सल का रेजोल्यूशन)। कम कीमत के कारण फोन के फीचर्स कुछ खास नहीं है। इस फोन में 1Ghz का सिंगल कोर प्रोसेसर दिया गया है। इसमें 512MB रैम दी गई है। इस फोन में कौन सा प्रोसेसर है इसके बारे में भी अभी कोई जानकारी नहीं दी गई है।
माइक्रोमैक्स के इस स्मार्टफोन में 0.3 मेगापिक्सल का रियर और फ्रंट कैमरा दिया गया है। इसके अलावा, ये फोन 4GB इंटरनल मेमोरी के साथ आता है। इसमें माइक्रोएसडी कार्ड की मदद से 32GB तक मेमोरी बढ़ाने की सुविधा है।

इंटरनेट की दुनिया से

*** विश्व का सबसे बड़ा कम्प्यूटर नेटवर्क का नाम क्या हैं?— इंटरनेट।
*** Email के जन्मदाता कौन हैं?— रे .टॉमलिंसन।
*** इंटरनेट में प्रयुक्त www का पूरा रूप क्या है? —World Wide Web
*** बर्ल्ड वाइड बेव ( www ) के आविष्कारक कौन हैं?— टिम वर्नर्स-ली।
*** इंटरनेट पर विश्व का प्रथम उपन्यास का नाम बताएं?— राइडिंग द बुलेट !
*** देश का प्रथम साइबर अपराध पुलिस स्टेशन कहाँ है?— कटक ( ओडिशा )
*** http का full form क्या है?— Hyper Text Transfer protocol
*** भारत की पहली ऐसी पार्टी कौन-सी है, जिसने इंटरनेट पर अपनी वेबसाइट बनाई।— भारतीय जनता पार्टी (BJP)
*** वह भारतीय राज्य जिसने पहली बार इंटरनेट पर राज्य की टेलीफोन डाइरेक्टरी उपलब्ध कराई?— सिकिकम
*** गूगल, याहू, एमएसएन व रैडिफ क्या है?— इंटरनेट सर्च इंजन
*** फ्री ई-मेल सेवा हाटमेल ( Hot mail ) के जन्मदाता कौन हैं?— सबीर भाटिया
*** इंटरनेट का जन्मदाता किसे कहा जाता है?— विंटन जी. सर्फ को।
*** किस प्रणाली में इंटरनेट द्वारा व्यापार किया जाता है?— ई-कॉमर्स में।
*** E-Mail का पूरा रूप क्या है?— Electronic Mail
*** वह प्रथम पत्र-पत्रिकाएं जो इंटरनेट पर उपलब्ध हुई?— द हिन्दू ( पत्र ) व इणिडया टूडे ( पत्रिका )
*** इंटरनेट का आरंभ 1969 में किस विभाग द्वारा अर्पानेट (ARPANET–Advanced Research Project Agency Net) द्वारा किया गया?— अमेरिकी रक्षा विभाग
*** इंटरनेट का पहला सफल सॉफ्टवेयर कौन-सा है? — मोजेक (MOSAIC)
*** भारत में इंटरनेट सेवा का प्रारंभ कब हुआ?— 15 अगस्त, 1995
*** भारत में इंटरनेट उपलब्ध कराने वाली पहली कम्पनी कौन-सी हैं?— विदेश संचार निगम लि. (VSNL)
*** भारत में इंटरनेट सेवा प्रारंभ करने वाली निजी क्षेत्र की पहली कम्पनी कौन-सी है?— सत्यम इंफो वे।
*** कैरियर सलाह से सम्बनिधत हिन्दी की पहली वेबसाइट कौन-सी है?— कैरियर सलाह डॉट कॉम।
*** ई-कोर्ट की अवधारणा लागू करने वाला भारत का प्रथम उच्च न्यायालय कौन-सा है?— दिल्ली उच्च न्यायालय।
*** आनलाइन वोटिंग की सुविधा उपलब्ध कराने वाला भारत का पहला राज्य कौन-सा है?— गुजरात

ये हैं फेसबुक के 8 फीचर्स, जिनके बारे में शायद ही आप जानते हों

सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक का दुनिया भर में करोड़ों लोग इस्तेमाल कर रहे हैं और हर दिन कई नए लोग इससे जुड़ रहे हैं। फेसबुक को इस्तेमाल करना बहुत आसान है तो बहुत आसान लेकिन, इसके कई ऐसे फीचर्स हैं जिनके बारे में कम ही लोग जानते हैं। हम आपको फेसबुक के 8 ऐसे फीचर्स के बारे में बता रहे हैं जिन्हें आप शायद ही जानते हों। इन्हें जानने के बाद फेसबुक इस्तेमाल करना आपके लिए सिर्फ आसान ही नहीं इंट्रेस्टिंग भी बन जाएगा।
फेसबुक से ईमेल
फेसबुक इनबॉक्स में कई ऐसे मैसेज होते हैं जिन्हें आप नहीं पढ़ पाते। कई बार ध्यान ना दे पाने के कारण तो कई बार समय की कमी के कारण। ऐसे में जरूरी मैसेज ना पढ़ पाने से काम बिगड़ सकता है। लेकिन फेसबुक में एक ऐसा फीचर है जो आपके इनबॉक्स में आने वाले मैसेज को आपके जीमेल पर भेज देगा। इसके लिए आपको अपना एक ईमेल आइडी बनाना है (जैसे कि-bindasskhabri@facebook.com) इस ईमेल पर भेजा गया मैसेज आपके जीमेल इनबॉक्स में आ जाएगा।
इंट्रेस्टिंग पोस्ट कर सकते हैं सेव
आपको फेसबुक पर शेयर कोई पोस्ट इंट्रेस्टिंग लगी हो और आप उसे बाद में फिर पढ़ना चाहते हों। पोस्ट को सेव करने के लिए अपने फोन स्क्रिन के टॉप राइट कॉर्नर में जाकर 'Save' के ऑप्शन को सिलेक्ट करना है।
आपके लिए डाउनलोड करता है अक्टिविटी
इसके लिए अपने फेसबुक आकाउंट पर जाएं और 'Download Facebook Data' पर क्लिक करें। यह ऑप्शन आपको सेटिंग ऑप्शन के नीचे मिलेगा। 
फेसबुक चैट पर फाइल शेयरिंग
आपने फेसबुक पर चैटिंग तो खूब की होगी लेकिन, क्या आप यह जानते हैं कि फेसबुक चैट पर आप फाइल भी शेयर कर सकते हैं। इसके लिए आपको गियर आइकॉन पर क्लिक करना है और 'Ad Files' का ऑप्शन सिलेक्ट करना है।
ऑन दिस डे (On this Day) फीचर
फेसबुक का यह फीचर आपके काम का हो सकता है। अगर आप जानना चाहते हैं कि फेसबुक पर पिछले साल आज के दिन क्या शेयर किया था तो आप इस फीचर की मदद ले सकते हैं। फेसबुक पर 'On This Day' नाम के टूल का इस्तेमाल कर सकते हैं।
मैनेज पेज सेक्शन
फेसबुक पेज पर लेफ्ट साइड में फेसबुक एलिमेंट्स की एक लिस्ट होती है। इसे साइडबार एलिमेंट्स कहते हैं। इन साइडबार एलिमेंट्स को आप आपनी सुविधा के अनुसार री-अरेंज कर सकते हैं।
इंट्रेस्ट लिस्ट
इंट्रेस्ट लिस्ट आप जिन वेबसाइट, कंपनी या सेलिब्रिटी को फॉलो करते हैं उनके पोस्ट के कलेक्शन को इंट्रेस्ट लिस्ट कहते हैं। अपने इंट्रेस्ट लिस्ट को देखने के लिए फेसबुक पर लेफ्ट कॉलम में 'Intrests' लिंक पर जाना है और फिर 'more' पर क्लिक करें।
फ्रेंड रिक्वेस्ट नहीं फॉलो करें
आप बिना फ्रेंड रिक्वेस्ट फेजे किसी को फॉलो कर सकते हैं। या फिर कोई और आपको फॉलो कर सकता है।

Google को पछाड़ते हुए गुजराती स्टूडेंट्स ने बना दी ड्राइवरलेस CAR

देसी तकनीक से नए प्रयोग करने में भारतीय किसी से कम नहीं हैं। गूगल कंपनी ने ड्राइवरलेस कार बनाई है, जिसका अभी परीक्षण ही चल रहा है। इधर, अहमदाबाद में अमरीज कॉलेज के 15 छात्र और एक प्रोफेसर ने आई-10 को ड्राइवरलेस बनाकर सभी को चकित कर दिया है। इसे मोबाइल एप्लीकेशन द्वारा दुनिया में कहीं भी चलाया जा सकता है।
कार को हथियारों से सुसज्जित किया गया है। देसी तकनीक के इस्तेमाल में तीन लाख का खर्च आया है। कार में डीआरडी टेक्नोलॉजी, 15 प्रकार के सेंसर, 6 नाइट विजन कैमरे भी लगे हैं। आगामी 9 अप्रैल को कॉलेज के टेक्नोलॉजी फेस्ट डेक्स्ट्रा-2015 में प्रस्तुत किया जाएगा।

न बदलने की जरूरत, न रोमिंग का झंझट, ऐसे करें अपना मोबाइल नंबर PORT

मोबाइल फोन उपभोक्ता अब शहर बदलने पर भी अपने पुराने नंबर को जारी रख सकते हैं, यहां तक कि मोबाइल सेवा ऑपरेटर बदलने पर भी। दूरसंचार नियामक 3 मई से भारत भर मोबाइल नंबर पोर्टेबिलिटी (एमएनपी) की सुविधा शुरू करने वाला है। हालांकि, अभी पूरी तरह से ये सुविधा लागू होने पर संशय है, लेकिन कुछ सर्किल में ये सुविधा शुरू हो सकती है। भारत में कुल 22 टेलिकॉम सर्किल या सर्विस एरिया हैं। हम आपको इस पैकेज के जरिए बता रहे हैं कि कैसे आसान से 6 स्टेप्स से आप नंबर पोर्टेबिलिटी का इस्तेमाल कर सकते हैं।
6 आसान स्टेप और बदल जाएगी कंपनी
- मोबाइल फोन से (PORT) पोर्ट 10 अंकों का मो.नं. लिखकर उसे यूनिक नंबर 1900 पर मेसैज करना होगा।
- एसएमएस भेजते ही आपको आठ अंकों का यूनिक पोर्टिंग कोड (यूपीसी) प्राप्त हो जाएगा।
- इस कोड को एक निर्धारित फार्मेट (एमएनपी), कस्टमर एप्लीकेशन फार्म के साथ कंपनी के आउटलेट पर एक फोटो और एड्रेस प्रूफ सहित जमा कराना होगा।
- नई कंपनी द्वारा आपको नई सिम दी जाएगी। यह सुनिश्चित करने के बाद कि कोई बकाया नहीं है मौजूदा कंपनी हरी झंडी देगी।
- प्रक्रिया पूर्ण होने में लगने वाले घंटे एसएमएस के माध्यम से उपभोक्ता को बताएगी। आपके खाते में से 19 रुपए काटे जाएंगे।
- नेटवर्क शिफ्टिंग का उपभोक्ता को एसएमएस प्राप्त होगा तो उपभोक्ता को नई सिम लगानी होगी। इसके बाद आपकी कंपनी बदल जाएगी।
यह हैं सीमाएं

- पुरानी कंपनी का कुछ बकाया लेकर अगर कंपनी बदली है तो बकाया 90 दिनों में जमा कराना होगा नहीं तो इसके बाद नई कंपनी भी नंबर बंद कर सकती है।
- यह पता लगाने में दिक्कत होगी कि यह नंबर वर्तमान में किस कंपनी के पास है। इससे इंटर कंपनी मिलने वाले लुभावने ऑफर को उपभोग करने में परेशानी हो सकती है।
- जो भी बैलेंस है उसका मोह छोड़ना होगा क्योंकि वो कैरीफॉरवर्ड नहीं होगा। नई सिम में बैलेंस जीरो रहेगा। फिर से समस्त रिचार्ज कराना होंगे।
- जब अंतिम रूप से एक कंपनी नई कंपनी को नंबर हैंडओवर करेगी तब दो घंटे के लिए मोबाइल में नेटवर्क नहीं रहेगा। हालांकि यह समय अमूमन देर रात का ही होगा।
- एक कंपनी के साथ कम से कम 90 दिनों के लिए तो रहना ही होगा, इसके पहले आप कंपनी नहीं बदल पाएंगे।
- यूपीसी कुछ दिनों के लिए ही मान्य होगा कंपनी नहीं बदलने पर वो अपने आप रद्द हो जाएगा।
यह सुविधाएं मिलेंगी

- उपभोक्ता अगर सीडीएमए नंबर से परेशान हैं तो वो दूसरी कंपनी के जीएसएम में भी उस नंबर को बदल सकता है।
- पोस्टपेड से प्रीपेड और प्रीपेड से पोस्टपेड भी मोबाइल नंबर को नई कंपनी के साथ बदला जा सकता है।
ये नंबर नहीं बदल सकेंगे कंपनी
- मोबाइल नंबर जो किसी एग्रीमेंट के तहत जारी किया गया हो।
- नंबर कॉपरेरेट या कंपनी द्वारा प्रदान किया गया हो।
- नंबर जो सेवा विशेष के लिए जारी किया गया हो जैसे हेल्पलाइन,एम्बुलेंस, इमरजेंसी।
- नंबर जांच एजेंसी,कोर्ट इन्क्वायरी में शामिल हो।
- राशि बकाया हो।
एसएमएस की समस्या
इसके अलावा कुछ समस्याएं प्रमोशनल एसएमएस को लेकर बनी रहेंगी। उन एसएमएस को लेकर भी जिनका जवाब देने की सुविधा नहीं मिलती। अक्सर ये एसएमएस UNKNOWN नंबर के होते है। इन पर अंकुश लगाने के बारे में भी ट्राई को जरूरी कार्रवाई करनी चाहिए।
 

ये थे हिंदुस्तान के आखिरी हिंदू सम्राट, कन्नौज की राजकुमारी से हुआ था प्यार

दिल्ली की राजगद्दी पर बैठने वाले अंतिम हिन्दू शासक पृथ्वीराज चौहान एक ऐसे वीर योद्धा थे जिन्होंने बचपन में ही शेर का जबड़ा फाड़ डाला था। पृथ्वीराज चौहान ने अपनी दोनों आंखें खो देने के बावजूद भी शब्द भेदी बाण से भरी सभा में मोहम्मद गौरी को मौत के घाट उतार दिया था। वे एक वीर योद्धा थे। ये बहुत कम ही लोगों को पता है कि वे एक प्रेमी भी थे। वे कन्नौज के महाराज जयचन्द्र की पुत्री संयोगिता से प्रेम करते थे। दोनों में प्रेम इतना था कि राजकुमारी को पाने के लिए पृथ्वीराज चौहान स्वयंवर के बीच से उनका अपरहण कर लाए थे।
कहा जाता है कि जब पृथ्वीराज चौहान अपने नाना और दिल्ली के सम्राट महाराजा अनंगपाल की मृत्यु के बाद दिल्ली की राज गद्दी पर बैठे। महाराजा अनंगपाल को कोई पुत्र नहीं था इसलिए उन्होंने अपने दामाद अजमेर के महाराज और पृथ्वीराज चौहान के पिता सोमेश्वर सिंह से आज्ञा लेकर पृथ्वीराज को दिल्ली का युवराज घोषित कर दिया। राजनीतिक संघर्षों के बाद पृथ्वीराज दिल्ली के सम्राट बने। दिल्ली की सत्ता संभालने के साथ ही पृथ्वीराज को कन्नौज के महाराज जयचंद की पुत्री संयोगिता भा गई। जयचंद्र पृथ्वीराज से ईर्ष्या का भाव रखते थे। एक दिन कन्नौज में एक चित्रकार पन्नाराय आया जिसके पास दुनिया के महारथियों के चित्र थे और उन्हीं में एक चित्र पृथ्वीराज चौहान का था। कन्नौज की लड़कियों ने पृथ्वीराज के चित्र को देखा तो वे देखते ही रह गईं। पृथ्वीराज के तारीफ की ये बातें संयोगिता को मालूम चली तो वह उस चित्र को देखने गई। चित्र देख पहली ही नजर में संयोगिता ने अपना सर्वस्व पृथ्वीराज को दे दिया।
चित्रकार ने दी संयोगिता के बारे में जानकारी
महाराज जयचंद और पृथ्वीराज चौहान में दुश्मनी थी। इसके बाद चित्रकार ने दिल्ली पहुंचकर पृथ्वीराज से भेट की और राजकुमारी संयोगिता का एक चित्र बनाकर उन्हें दिखाया जिसे देखकर पृथ्वीराज के मन में भी संयोगिता के लिए प्रेम उमड़ पड़ा। उन्हीं दिनों महाराजा जयचंद्र ने संयोगिता के लिए एक स्वयंवर का आयोजन किया। इसमें विभिन्न राज्यों के राजकुमारों और महाराजाओं को आमंत्रित किया। पृथ्वीराज को आमंत्रण नहीं भेजा।
द्वारपाल की जगह क्यों रखवाई पृथ्वीराज की प्रतिमा
राजकुमारी के पिता ने पृथ्वीराज चौहान का अपमान करने के लिए स्वयंवर में उनकी मूर्ति को द्वारपाल की जगह खड़ा कर दिया। राजकुमारी संयोगिता जब वरमाला लिए सभा में आईं तो उन्हें अपने पसंद का वर कहीं नजर नहीं आया। उसकी नजर द्वारपाल की जगह रखी पृथ्वीराज की मूर्ति पर पड़ी और उन्होंने आगे बढ़कर वरमाला उस मूर्ति के गले में डाल दी। वास्तव में जिस समय राजकुमारी ने मूर्ति में वरमाला डालना चाहा ठीक उसी समय पृथ्वीराज स्वयं आकर खड़े हो गए और माला उनके गले में पड़ गई। संयोगिता द्वारा पृथ्वीराज के गले में वरमाला डालते देख पिता जयचंद्र आग बबूला हो गए। वह तलवार लेकर संयोगिता को मारने के लिए आगे आए, लेकिन इससे पहले की वो संयोगिता तक पहुंचे पृथ्वीराज संयोगिता को अपने साथ लेकर वहां भाग गए।
गौरी के साथ किया दिल्ली पर आक्रमण
जयचंद्र ने पृथ्वीराज से बदला लेने के लिए मोहम्मद गौरी से मित्रता की और दिल्ली पर आक्रमण कर दिया। पृथ्वीराज ने मोहम्मद गौरी को 17 बार परास्त किया। पृथ्वीराज चौहान ने सहृदयता का परिचय देते हुए मोहम्मद गौरी को हर बार जीवित छोड़ दिया। राजा जयचन्द ने गद्दारी करते हुए मोहम्मद गोरी को सैन्य मदद दी और इसी वजह से मोहम्मद गौरी की ताकत दोगुनी हो गयी तथा 18वीं बार के युद्ध मे पृथ्वीराज चौहान मोहम्मद गोरी से पराजित होने पर पृथ्वीराज चौहान को मोहम्मद गोरी के सैनिको द्वारा उन्‍हें बंदी बना लिया गया एवं उनकी आंखें गरम सलाखों से जला दी गईं। इसके साथ अलग-अलग तरह की यातनाए भी दी गई।
शब्द भेदी बाण से मार दिया गौरी को
बाद में मो.गौरी ने पृथ्वीराज को मारने का फैसला किया तभी महाकवि चंदर बरदाई ने मोहम्मद गौरी को पृथ्वीराज के एक कला के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि चौहान को शब्द भेदी बाण छोड़ने की कला मे महारत हासिल है। यह बात सुन मोहम्मद गौरी ने रोमांचित होकर इस कला के प्रदर्शन का आदेश दिया। प्रदर्शन के दौरान गौरी के शाबास आरंभ करो शब्द कहे भरी महफिल में चंदर बरदाई ने एक दोहे द्वारा पृथ्वीराज को मोहम्मद गौरी के बैठने के स्थान का संकेत दिया जो इस प्रकार है-
"चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण,
ता ऊपर सुल्तान है मत चुको चौहान।"
तभी अचूक शब्दभेदी बाण से पृथ्वीराज ने गौरी को मार गिराया। साथ ही, दुश्मनों के हाथों मरने से बचने के लिए चंदर बरदाई और पृथ्वीराज ने एक-दूसरे का वध कर दिया। जब संयोगिता को इस बात की जानकारी मिली तो वह एक वीरांगना की भांति सती हो गई। इतिहास के स्वर्ण अक्षरों में आज भी यह प्रेमकहानी अमर है।

Death Anniversary : इश्क में मिले धोखे पर धोखे, सच्चे प्यार की तलाश में रहीं मीना कुमारी


भारतीय सिनेमा की बेहतरीन अदाकारा मीना कुमारी का 31 मार्च 1972 में निधन हो गया था। 1 अगस्त 1932 में जन्मी मीना कुमारी का असली नाम महजबीं बानो था। उन्होंने बहुत ही कम उम्र से फिल्मों में काम करना शुरू कर दिया था। मीना कुमारी हिंदी फिल्मों की ट्रैजिडी क्वीन कही जाती हैं। सिल्वर स्क्रीन पर उन्होंने कई दर्द भरे और ट्रैजिक रोल किए और अपनी बेमिसाल अभिनय प्रतिभा के लिए युगों-युगों तक जानी जाती रहेंगी। मीना कुमारी नृत्यकला में भी प्रवीण थीं। 30 वर्षों के अपने करियर में उन्होंने करीब 90 से ज्यादा फ़िल्मों में काम किया, जिनमें अधिकांश क्लासिक मानी गईं।
सच्चे प्यार की तलाश में भटकती रहीं मीना
परदे पर मीना कुमारी ने जैसे किरदारों को जीवंत किया, उनकी निजी ज़िंदगी भी कुछ वैसी ही ट्रैजिक थी। क्लासिक फ़िल्म 'साहिब, बीवी और गुलाम' (1962) में मीना कुमारी ने छोटी बहू का रोल किया था और उस कैरेक्टर की ही भांति शराब की आदी हो गईं। करियर की ऊंचाई पर पहुंचने के साथ ही मीना कुमारी अपना गम ग़लत करने के लिए बहुत ज़्यादा शराब पीने लगीं। प्यार में लगातार धोखा खाने से उनका दिल टूट चुका था। वह लगातार सच्चे प्यार की तलाश में भटकती रहीं, पर फिल्मों की मायावी दुनिया में बेवफ़ाई तो मिली ही, अपमान भी सहना पड़ा। इससे आहत होकर उन्होंने अपने आपको पूरी तरह शराब में डुबो लिया। इससे उनका स्वास्थ्य बिगड़ता चला गया और वह लाइलाज मर्ज़ लिवर सिरोसिस की शिकार हो गईं।
अंतिम वक्त में नहीं मिला सहारा
कई फिल्मों में काम करने और जीते-जी लीजेंडरी एक्ट्रेस का दर्जा हासिल कर लेने के बावजूद उनके पास इलाज के लिए पैसे नहीं थे। 1972 में जब उनका निधन हुआ तो सवाल खड़ा हो गया कि अस्पताल का बिल कैसे दिया जाएगा। खास बात यह भी है कि अस्पताल में उन्हें देखने कमाल अमरोही भी नहीं आए जो उनके तलाकशुदा पति थे और बीमारी की हालत में भी मीना कुमारी ने उनकी अधूरी पड़ी फ़िल्म 'पाकीजा' में काम किया। इस फ़िल्म की रिलीज़ के दो महीने के भीतर ही मीना कुमारी ने दुनिया को अलविदा कह दिया।
धर्मेन्द्र ने मीना को सरेआम मारा था थप्पड़
धर्मेन्द्र भी उनकी मृत्यु की ख़बर सुन कर अस्पताल नहीं आए, पति से तलाक के बाद जिनके प्यार में मीना कुमारी डूब गईं थीं। जब धर्मेन्द्र के साथ उनका इश्क परवान चढ़ा तो वह स्थापित अभिनेत्री थीं और धर्मेन्द्र स्ट्रगलर थे। मीना कुमारी ने उनके करियर को आगे बढ़ाने के लिए बहुत कुछ किया। पर वह भी वेवफ़ा निकले। मीना कुमारी की सच्चे प्यार की तलाश अधूरी ही रह गई। यही नहीं, एक मौके पर धर्मेन्द्र ने उन्हें सरेआम थप्पड़ भी मार दिया था। इससे मीना कुमारी का दिल ऐसा टूटा कि उन्होंने और भी ज़्यादा पीना शुरू कर दिया।
प्यार, शादी और तकरार
कमाल अमरोही से मीना कुमारी की मुलाकात 1952 में एक फ़िल्म के सेट पर हुई थी। दोनों में प्यार हुआ और मीना कुमारी ने पहले से ही विवाहित अमरोही से शादी कर ली जो उनसे 15 साल बड़े थे। मीना कुमारी शायरी भी करती थीं। अमरोही के बारे में उन्होंने लिखा है-'दिल-सा जब साथी पाया, बेचैनी भी वो साथ ले आया।'
शादी के कुछ ही समय के बाद मीना और अमरोही के रिश्ते में दरार पैदा होने लगी। कमाल अमरोही साहब को ज़िंदगी में लगातार नयापन चाहिए था। संबंधों में भी नयापन चाहते थे। एक बार उन्होंने अपने दोस्तों से कहा था कि ख़ुदा भी नयापन चाहता है। वफ़ादारी उनकी फ़ितरत में ही नहीं थी। परिणामस्वरूप तनाव बढ़ता ही गया और दोनों 1960 में अलग हो गए, 1964 में तलाक हो गया। मीना कुमारी ने लिखा, 'तुम क्या करोगे सुन कर मुझसे मेरी कहानी, बेलुत्फ़ ज़िंदगी के क़िस्से हैं फीके-फीके।'
शादी के बाद कमाल अमरोही और मीना कुमारी ने 1953 में 'दायरा' फ़िल्म बनाई जो उनकी प्रेम कहानी पर आधारित थी। फिर 'पाकीजा' की प्लानिंग हुई। 1956 में फ़िल्म फ़्लोर पर गई, पर अलगाव के बाद यह पूरी नहीं हो पाई। 1969 में सुनील दत्त और नर्गिस ने अधबनी फ़िल्म की कुछ रीलों के देखा और अमरोही से इसे पूरा करने को कहा। उन्होंने उन दोनों के बीच मुलाकात करवाई। इस मुलाकात के बारे में 'हिन्दुस्तान टाइम्स' ने लिखा था,"दोनों ने एक-दूसरे से ज़्यादा कुछ नहीं कहा, लेकिन आंसुओं की धारा बह निकली। अमरोही ने टोकन के रूप में मीना कुमारी को सोने का एक सिक्का दिया और यह वादा किया कि वह उन्हें परदे पर उतना ही खूबसूरत दिखाएंगे जितना कि वह पहले थीं।"
बहुत ज़्यादा शराब पीने और स्वास्थ्य खराब हो जाने के कारण मीना कुमारी पहले जैसी खूबसूरत नहीं रह गई थीं। फिर भी 'पाकीजा' में उन्होंने अपनी अभिनय प्रतिभा को नई ऊंचाई दी और यह फ़िल्म क्लासिक फ़िल्मों में शुमार हो गई। यह फ़िल्म फरवरी, 1972 में रिलीज़ हुई और इसके दो हफ़्ते के बाद ही मीना कुमारी की तबीयत ज़्यादा खराब हो गई। 31 मार्च, 1932 को वो चल बसीं। 'पाकीजा' सुपरहिट हुई।
मीना का फिल्मी सफर
मीना कुमारी ने फ़िल्मों में एक्टिंग की शुरुआत महज़ 7 साल की उम्र में ही शुरू की थी। इस फ़िल्म का नाम था 'फ़रजंद-ए-वतन' (1939) जिसे प्रकाश स्टूडियो के लिए विजय भट्ट ने डायरेक्ट किया था। 1940 के दशक में वह अपने परिवार में अकेली कमाने वाली थीं। बाद में उन्होंने 'वीर घटोत्कच' (1949), 'श्री गणेश महिमा' (1950) और 'अलादीन और वंडरफुल लैंप' (1952) जैसी फ़िल्मों में काम किया। मीना कुमारी को प्रसिद्धि विजय भट्ट की 'बैजू बावरा'(1952) से मिली। इस फ़िल्म में अभिनय के लिए उन्हें 1953 में पहला फ़िल्म फेयर बेस्ट एक्ट्रेस अवॉर्ड मिला।
इसके बाद उनकी 'परिणीता'(1953), 'दायरा'(1953), 'एक ही रास्ता' (1956), 'शारदा' (1957), 'दिल अपना और प्रीत पराई' (1960) जैसी फ़िल्में आईं। अब वह सफलता के शिखर की ओर बढ़ चली थीं। इसी बीच उन्होंने कुछ हल्की-फुल्की किस्म की फ़िल्मों-'आज़ाद' (1955), 'मिस मेरी' (1957), 'शरारत' (1959) और 'कोहिनूर' (1960) में भी काम किया।
गुरुदत्त की फ़िल्म 'साहिब, बीवी और गुलाम' (1962) ने एक इतिहास बनाया। इस फ़िल्म में मीना कुमारी ने छोटी बहू के किरदार को जीवंत कर दिया। इसी साल उन्हें 'आरती', 'मैं चुप रहूंगी' और 'साहिब, बीवी और गुलाम' के लिए फ़िल्मफेयर बेस्ट एक्ट्रेस अवार्ड के तीन नॉमिनेशन मिले। इसके बाद 'दिल एक मंदिर' (1963), 'काजल' (1965) और 'फूल और पत्थर' (1966) जैसी हिट फ़िल्में आईं।
इसके बाद उनकी 'चंदन का पालना' और 'मझली दीदी' जैसी फ़िल्में आईं जो बॉक्स ऑफिस पर अच्छा नहीं कर सकीं। बीमारी के कारण उनका सौंदर्य पहले जैसा नहीं रह गया था। उन्होंने कैरेक्टर रोल करना शुरू कर दिया। 'जवाब' 1970 और 'दुश्मन' 1972 में आई। इस दौरान वो लेखक-गीतकार गुलजार के संपर्क में आईं और उनके निर्देशन में बनी पहली फ़िल्म 'मेरे अपने' (1971) में एक उम्रदराज औरत का रोल किया।
मीना कुमारी का परिवार
मीना कुमारी की लाइफ़ ट्रैजिक थी। उनके पिता अली बख्श पारसी थिएटर के एक जाने-माने नाम थे। उनकी मां इकबाल बेगम अली बख्श की दूसरी बीवी थीं और कामिनी नाम से थिएटर में भूमिकाएं करती थीं। वह एक अच्छी डांसर भी थीं।
महजबीं यानी मीना कुमारी की दो और बड़ी बहनें थीं। मीना कुमारी का जब जन्म हुआ था, तब उनके परिवार की हालत ऐसी थी कि डॉक्टर की फ़ीस देने के पैसे भी नहीं थे। इसलिए महजबीं को एक मुस्लिम अनाथालय में डाल दिया गया।
गुड़ियों से खेलने की उम्र में वह अभिनय के क्षेत्र में आ गईं। पूरी ज़िंदगी प्यार के लिए तरसती रह गईं, भटकती रह गईं और मुहब्बत में बेवफ़ाई के सिवा कुछ भी न मिला। इसमें कोई शक नहीं कि मीना कुमारी को ज़िंदगी में रंजो-गम के सिवा कुछ भी नहीं मिला, पर हिंदी सिनेमा को उन्होंने जो दिया, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता।

यहां 2 रु. में मिलता है भोजन, संसद की कैंटिन से भी है सस्ता


                                   भोजन का पैकेट मिलने का समय दर्शाता रोटरी क्लब का बोर्ड।
संसद की कैंटीन का सस्ता भोजन अकसर सुर्खियों रहता है। इसकी तुलना गरीब की थाली से की जाती है। मंदसौर में एक संस्था ऐसी भी है जो 23 साल से केवल 2 रुपए में भोजन के पैकेट मुहैया करा रही है।
यहां संसद के रेस्टोरेंट से भी कम दाम हैं। महंगाई के जमाने में जब चाय का कट 7 रुपए में बाजार में मिलता हो तो 2 रुपए में भोजन सुनने में काफी अटपटा लगता है, लेकिन यह सच है। संस्था अब तक भोजन के 5 लाख 13 हजार से अधिक पैकेट जरूरतमंदों तक पहुुंचा चुकी है।

हम बात कर रहे हैं रोटरी क्लब द्वारा जिला अस्पताल में संचालित आहार केंद्र की। इसकी शुरुआत 1992 में प्रोजेक्ट इंचार्ज महेंद्र धाकड़ के ने की थी। सेवा का सिलसिला अब भी जारी है। दिसंबर 1992 में कर्फ्यू के वक्त संस्था सदस्यों ने नगर के कई इलाकों में लोगों को भोजन के पैकेट मुहैया कराए थे।
संस्था के आहार केंद्र पर एक भी दिन अवकाश नहीं रहा। केंद्र में मरीजों के परिजन कूपन दिखाकर भोजन के पैकेट ले जाते हैं। कूपन उन्हें 2 रुपए चुकाने पर 9 नंबर कक्ष और रेडक्राॅस मेडिकल स्टोर्स पर मिल जाता है। संस्था रोज सुबह 10.30 से दोपहर 12 बजे और शाम को 5 से 6 बजे तक कतारबद्ध लोगों को भोजन के पैकेट देती है।

2 रुपए के पैकेट वाले मीनू में यह खास : 2 रुपए के पैकेट वाले मीनू में मरीज के परिजन को थैली में 5 रोटी और सब्जी दी जाती है। आहार केंद्र पर अलग-अलग दिन के मान से 16 तरह की सब्जियां तय हैं। इस दौरान कोई एक सब्जी दोबारा न देते हुए रोज अलग तरह की सब्जी बनाई जाती है। वैसे रोटरी क्लब को भोजन के एक पैकेट की लागत 15 रुपए लगती है। यानी हर पैकेट पर संस्था 13 रुपए अपने स्तर पर खर्च करती है। इसमें सदस्यों, दानदाताओं की ओर से समय-समय पर गैस सिलेंडर, गेहूं, आटा, आलू व सब्जियां, तेल, नमक व नकद राशि का सहयोग दिया जाता है।

यह प्रोजेक्ट प्रदेशभर में आदर्श, 8 प्रांतीय पुरस्कार भी मिले : रोटरी क्लब अध्यक्ष डॉ. कमलेश कुमावत ने बताया रोटरी आहार केंद्र का प्रोजेक्ट प्रदेशभर में आदर्श है। इससे मंदसौर क्लब की अलग पहचान बनी। 8 प्रांतीय पुरस्कार भी मिल चुके हैं। मंडल 3040 में कहीं भी एेसी सेवा की मिसाल नहीं है। अस्पताल में मरीजों के परिजन के लिए यह सुविधा है। परिसर से रोज सुबह व शाम के तक 70-80 लोग भोजन के पैकेट पाते हैं। इसका शुल्क 1992 में भी 2 रुपए था अब भी 2 रुपए ही है। मीनू भी नहीं बदला है।

संसद की कैंटिन के मीनू एवं कीमत पर एक नजर
वेजिटेरियन थाली - 12 रुपए 50 पैसे। इसमें दाल, सब्जी, 4 चपाती, चावल/पुलाव, सलाद शामिल।
चाय 1 रुपए प्रति कप
सूप- 5 रुपए 50 पैसे प्रति कप
दाल 1 रुपए 50 पैसे प्रति कटोरी
वेजिटेरियन पुलाव 8 रुपए प्लेट
राजमा चावल - 7 रुपए प्लेट
टोमेटो चावल 7 रुपए प्लेट
चपाती 1 रुपए
चावल 7 रुपए प्लेट
डोसा 4 रुपए
खीर 1 कटोरी के 5 रुपए 50 पैसे
फ्रूट केक 9 रुपए 50 पैसे
फ्रूट सलाद 7 रुपए

6 करोड़ की घड़ी में हीरे से चंद्रमा और टाइटेनियम से बनाई धरती

(जैकब एंड को. द्वारा बनाई गई घड़ी)
न्यूयॉर्क की मशहूर ज्वैलरी एवं रिस्ट वॉच कंपनी जैकब एंड को. ने हाल ही में घोषणा की है कि वह आने वाले दिनों में एस्ट्रोनोमिया सीरीज की नई वॉच ‘टूरबिओं बागेट’ लॉन्च करेगी। यह पिछले वर्ष के कलेक्शन का अपग्रेड वर्शन है, जिसमें खूबियां बढ़ाई गई हैं। इसकी कीमत 6.20 करोड़ रुपए से अधिक होगी, जिसका 50 एमएम वाला केस ही 18 कैरेट रोज गोल्ड से बना है। इसी तरह आकर्षक केस के अंदर डायल पर चंद्रमा और पृथ्वी मिनिएचर रूप में नजर आएंगे।
चंद्रमा 288 गोलाकार हीरे से बनाया गया है। हल्की रोशनी में वह चमकने लगता है। 60 सेकेंड के रोटेशन में वह अपने स्वतंत्र अक्ष का चक्कर लगाता है। साथ ही हाथ से बनी पृथ्वी (टाइटेनियम) भी प्रत्येक 60 सेकंड में डायल का चक्कर पूरा करती है। दिखने में बहुत ही सुंदर इस वॉच के केस में 260 कैरेट के हीरे जड़े हैं। लॉन्चिंग के पहले ही ये इतनी लोकप्रिय हो गई हैं कि कंपनी से पूछा जा रहा है कि वह इसके कितने पीस तैयार करेगी।
जैकब अराबो हैं मालिक
1986 में स्थापित इस कंपनी के मालिक जैकब अराबो हैं। वे पेशे से डायमंड डिजाइनर रह चुके हैं इसीलिए उन्होंने इसी क्षेत्र को कॅरिअर के लिए चुना। आज लग्जरी प्रोडक्ट बनाने वाली वैश्विक स्तर की कंपनियों में जैकब एंड को. का भी नाम है।

Monday, 30 March 2015

मदर टेरेसा की 18वें साल की तस्वीर सोशल मीडिया पर हो रही है वायरल

एक देवदूत जैसा चेहरा, उज्ज्वल रंग और शानदार मुस्कराहट। 1930 की यह तस्वीर उस महिला की है, जो ममता की मूर्ति कही जाती है। यह अलौकिक चेहरा कोई और नहीं, बल्कि मदर टेरेसा हैं। यह तस्वीर उनके 18वें साल की है।
यह दुर्लभ तस्वीर आजकल सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है। यह तब की तस्वीर है, जब वह जवान हो रही थीं। जब वह बिना थके मानव जाति की सेवा कर रही थीं। वह खुद को दूसरों के प्रति करुणा और देखभाल के लिए समर्पित कर रही थीं। वह 'मानव सेवा ही भगवान की सच्ची सेवा है' का संदेश दे रही थीं।
मदर टेरेसा ने 1950 में रोमन कैथोलिक ऑर्गेनाइजेशन के तहत भारत में मिशिनरीज ऑफ चैरिटी की शुरुआत की। यह संस्था बेसहारा, कोढ़ और क्षय रोग के पीड़ितों के कल्याण और पुर्नवास का काम करती है। यह संस्था अब 4500 सक्रिय सिस्टर्स की मदद से 133 देशों में काम कर रही है। इस महान सेवा के लिए मदर टेरेसा को 1979 में नोबल शांति पुरस्कार मिला।
मदर टेरेसा ने एक बार कहा था, "खून से वह अल्बेनियन हैं, लेकिन नागरिकता से भारतीय हैं। विश्वास से कैथोलिक नन हैं। इसलिए मैं खुद को पूरी दुनिया का कहती हूं। दिल से मैं खुद को यीशु के दिल से जुड़ी पाती हूं।" पांच सितंबर 1997 में मदर टेरेसा ने कोलकाता में आखिरी सांस ली।

ये है देश का सबसे बड़ा बांध, जिसमें समा गए 249 गांव और शहर

इंदिरासागर बांध का अथाह पानी समुद्र का अहसास करता है। यहां शाम को नजारा देखते ही बनता है।
खंडवा स्थित इंदिरासागर बांध। देश का सबसे बड़ा जलाशय है। यहां इंसानों के मजबूत इरादों ने बूंद-बूंद पानी को इतनी ताकत दे दी कि यह ऊर्जा और हरित क्रांति का आधार बन गया। 12 अरब 20 करोड़ घनमीटर की जल क्षमता समेटे इस बांध से 2735 मेगावाट बिजली पैदा हो रही है। 70 हजार हेक्टेयर ने हरियाली की चादर ओढ़ ली। अब एक और इतिहास जुड़ने जा रहा है। 1320 मेगावाट बिजली उत्पादन के लिए थर्मल प्लांट का काम शुरू हो गया है। पांच साल बाद यहां 4055 मेगावाट बिजली पैदा होते ही यह देश का सबसे बड़ा पावर हब बन जाएगा। 2025 तक 1600 मेगावाट का एक और थर्मल पावर का उदय होगा। इसके बाद यहां 5655 मेगावाट बिजली उत्पन्न होने लगेगी। इतनी बिजली देश के कई छोटे राज्यों के कुल उत्पादन से भी ज्यादा है।

249 गांव, शहर डूबा तब ऊर्जा का सूरज उदय हुआ : इंदिरासागर बांध का भूमिपूजन 1984 में इंदिरा गांधी ने किया। लंबे इंतजार के बाद 2004 में यह बना। तब 249 गांव और 20 हजार की आबादी वाला शहर हरसूद डुबोना पड़ा। यहां 60 हजार परिवार विस्थापित हुए। यह बांध 913.48 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है।
जलाशय के 96 टापू पर्यटन को देंगे नई ऊंचाई : बांध में 96 टापू हैं। हनुमंतिया पर्यटन के लिए तैयार है। क्रूज व बोट आ गईं है। एस्सेल ग्रुप ने एक टापू को 30 साल की लीज पर लेने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। सिंगाजी थर्मल पावर के आसपास राख से ईंट बनाने के उद्योग शुरू हो रहे हैं। कुछ सालों में खंडवा उद्योग का हब होगा।
3 साल बाद 1.23 लाख हेक्टेयर क्षेत्र होगा हराभरा : इंदिरासागर बांध की नहरों ने धरती को हरियाली की चादर ओढ़ा दी है। दो नहरों से 70 हजार हेक्टेयर में फसल होने लगी। किसान सालभर में तीन फसल ले रहे हैं। सिंहाड़ उद्वहन योजना का काम शुरू हो गया। तीन साल बाद कुल 1.23 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई होने लगेगी।
- नहरों से पानी जमीन में गया तो गेहूं की मांग अफगानिस्तान पहुंच गई। यहां के गेहूं में प्रोटीन ज्यादा है।
- इंदिरासागर-ओंकारेश्वर बांध व सिंगाजी थर्मल प्लांट से इतनी बिजली बन रही कि पूरा उत्तराखंड रोशन हो जाए।
- चारों ओर पानी से घिरे टापू प्रकृति के इतने करीब है कि पर्यटन खींचे चले आते हैं।

मोबाइल बैटरी को फटने से बचाएं, लाइफ भी बढ़ाएं, अपनाएं ये टिप्स


मोबाइल बैटरी फटने से हादसा होने की बात अब आम हो चुकी है। हालांकि, इसके बाद भी मोबाइल इस्तेमाल करने वाले यूजर्स सावधानी से काम नहीं लेते हैं। बात करने के दौरान, चार्जिंग के दौरान सबसे ज्यादा मोबाइल की बैटरी फटती है। कई मौके पर तो जेब में रखे मोबाइल की बैटरी में भी ब्लास्ट हो जाता है। हालांकि, नई बैटरी कम ब्लास्ट होती है, लेकिन बैटरी पुरानी हो जाए या फिर लोकल हो तो उसके ब्लास्ट होने के चांस बढ़ जाते हैं। ऐसे में मोबाइल इस्तेमाल करने वाले हर यूजर्स को सावधानी से काम लेना चाहिए।
किसी भी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस जैसे स्मार्टफोन, टैबलेट में जो बैटरी इस्तेमाल की जाती है, वो कई बार डिवाइस के डिजाइन के कारण भी ब्लास्ट का कारण बन जाती है। यानी, ब्लास्ट होता है तो इसका सारा दोष बैटरी को नहीं दिया जा सकता। इनमें भी कई मौके पर सिर्फ वो बैटरी ब्लास्ट होती हैं तो ऑरिजनल नहीं हैं या फिर उनका चार्जर ऑरिजनल नहीं है। बैटरी या चार्जर में से कोई भी एक ऑरिजनल नहीं हुआ तो ब्लास्ट की संभावना बढ़ जाती है। लिथियम बैटरी में एक छोटी सी समस्या है जिसे 'थर्मल रनवे' कहा जाता है। जिसके चलते गर्मी में ये ज्यादा गर्म होती है और होती चली जाती है।
कई कंपनियां बैटरी में नहीं डालती ओवरहीट फ्यूज
इन दिनों स्मार्टफोन स्लिम होते जा रहे हैं, जिसके चलते बैटरी भी पतली होती जा रही हैं। ऐसे में बैटरी के अंदर पॉजीटिव और निगेटिव प्लेट के लिए पर्याप्त जगह नहीं होती। ऐसे में ये दो प्लेट्स कई बार समस्या का कारण बन जाती हैं और ब्लास्ट हो जाता है। बैटरी बनाने वाली कंपनियां सही गाइडलाइन को फॉलो करें तो वो सुरक्षित बैटरी का उत्पादन कर सकती हैं। कई कंपनियां तो पैसे बचाने के चलते बैटरी में ओवरहीट डिस्कनेक्ट सर्किट फ्यूज भी नहीं डालती।
जब बैटरी के ब्लास्ट से पूरा घर जल गया...
हांग कांग में एक व्‍यक्ति के घर में उस वक्त आग गई, जब वो अपने सैमसंग गैलेक्सी एस 4 में गेम खेल रहा था। आग लगने से उसने घबराकर मोबाइल फेंक दिया, फोन सोफे पर गिरा और उसमें आग लग गई सोफे से आग परदों में लग गई। उसके बाद आग धीरे-धीरे पूरे घर में फैल गई। आग लगने के बाद वो अपनी बीवी और अपने पालतू जानवर को लेकर घर के बाहर आ गया, लेकिन इस आग में उसका पूरा घर जलकर राख हो गया।
मोबाइल बैटरी ब्लास्ट होने से बचाने के लिए इन टिप्स को फॉलो करें...
* यूजर्स सोते समय मोबाइल को अपने पास नहीं रखें। वो उसे दूर किसी टेबल पर रखें।
* मोबाइल चार्ज पर लगाएं तो ‍ना तो कॉल रिसीव करें और ना कॉल लगाएं।
* बैटरी को पूरा चार्ज नहीं करें, 10 प्रतिशत की गुंजाइश हमेशा रखें।
* कुछ लोग रात से लेकर सुबह तक बैटरी चार्ज करते हैं, ये मोबाइल फटने का बड़ा कारण हो सकता है।
* जिस कंपनी का मोबाइल है, उसी कंपनी के चार्जर का प्रयोग करें। नकली चार्जर का इस्तेमाल तो बिल्कुल नहीं करें।
* जिस कंपनी का मोबाइल हो, उसी कंपनी की बैटरी का प्रयोग करें। सस्ती या लोकल बैटरी खतरनाक होती है।
* मोबाइल को चार्जिंग के वक्त गर्म जगह पर नहीं रखें। ऐसे में वो ओवर हीटिंग की वजह से फट सकता है।
अगर डिवाइस को रखना हो लंबे समय तक बंद :
अगर आप अपने डिवाइस को लंबे समय तक बंद रखने जा रहे हों तो यह देख लें कि डिवाइस की बैटरी 50 प्रतिशत तक चार्ज है या नहीं। फिर डिवाइस को 32 डिग्री सेल्सियस के नीचे ठंडे तापमान वाली जगह पर रख दें। इस तरह डिवाइस 6 महीने तक चार्ज रह सकता है।
अल्ट्रा फास्ट चार्जर का ना करें इस्तेमाल :
अल्ट्रा फास्ट चार्जर की मदद से हम डिवाइस को तेजी से चार्ज कर सकते हैं, लेकिन यह बैटरी की उम्र कम कर देता है। इसलिए रेगुलर चार्जर ही इस्तेमाल करें। अल्ट्रा फास्ट चार्जर और पोर्टेबल चार्जर के इस्तेमाल से बैटरी का टॉकटाइम और स्टैंडबाय टाइम भी घटता है।
न होने दें फुल डिस्चार्ज :
हमें डिवाइस की बैटरी को 40 से 80 प्रतिशत के बीच में रखना होता है। मतलब डिस्चार्ज बैटरी को पहले 40 प्रतिशत तक चार्ज कर लें और उसके बाद चार्जिंग बंद कर उसे थोड़ी देर बाद फिर 80 प्रतिशत तक चार्ज करें।
नहीं करें ओवर चार्जिंग :
फोन के फुल चार्ज होने के बाद उसके चार्जर को निकाल दें, उसे अधिक देर तक चार्ज में नहीं लगाए रखें। ओवर चार्जिंग फोन की बैटरी के लिए हानिकारक है कई फोन निर्माता कंपनियों ने एक सीमा तय कर रखी है कि उससे अधिक चार्ज करने पर बैटरी लाइफ प्रभावित होती है।
नकली चार्जर का ना करें इस्तेमाल :
सस्ते चार्जर फोन की बैटरी को खराब कर सकते हैं साथ ही आपको भी नुकसान पहुंचा सकते हैं। आपने कई बार अचानक बैटरी के विस्फोट होने की खबरें सुनी होंगी। इस तरह की घटनाओं का कारण नकली चार्जर भी है।
तापमान का रखें ख्याल :
अगर आप 0 डिग्री सेल्सियस से नीचे या 35 डिग्री सेल्सियस के ऊपर के तापमान पर रहते हैं तो फोन की बैटरी बहुत तेजी से खत्म होने लगती है। इसके अलावा, तेज गर्मी का असर भी डिवाइस पर पड़ता है। इससे डिवाइस गर्म हो जाता है और बैटरी की प्रोडक्टिविटी भी कुछ कम होने लगती है। इसलिए अपने फोन या टैबलेट को सूरज की गर्मी से दूर रखें।

मिट्टी का किला तोपों पर पड़ा था भारी, 13 युद्ध में भी नहीं जीत सके थे अंग्रेज

भरतपुर स्थित लौहगढ़ के किले को अपने देश का एक मात्र अजेय किला कहा जाता है। मिट्टी से बने इस किले को दुश्मन नहीं जीत पाए। अंग्रेजों ने तेरह बार बड़ी तोपों से इस पर आक्रमण किया था।
लौहगढ़ के इस किले का निर्माण 18वीं शताब्दी के आरंभ में जाट शासक महाराजा सूरजमल ने करवाया था। उन्होंने ने ही भरतपुर रियासत बसाई थी। उन्होंने एक ऐसे किले की कल्पना की जो बेहद मजबूत हो और कम पैसे में तैयार हो जाए। उस समय तोपों तथा बारूद का प्रचलन बढ़ रहा था। किले को बनाने में एक विशेष प्रकार की विधि का प्रयोग किया गया। यह विधि कारगर रही इस कारण बारूद के गोले भी दीवार पर बेअसर रहे।

इसलिए नहीं होता था गोलों का असर
लौहगढ़ का यह अजेय किला ज्यादा बड़ा नहीं है। किले के चारों और मिट्टी की बहुत मोटी दीवार है। इस दीवार को बनाने से पहले पत्थर की एक मोटी दीवार बनाई गई। इसके बनने के बाद इस पर तोप के गोलो का असर नहीं हो इसके लिए दीवारों के चारो ओर चौड़ी कच्ची मिट्टी की दीवार बनाई गयी और नीचे गहरी और चौड़ी खाई बना कर उसमे पानी भरा गया। जब तोप के गोले दीवार से टकराते थे तो वह मिट्टी की दावार में धस जाते थे। अनगिनत गौले इस दीवार में आज भी धसे हुए हैं। इसी वजह से दुश्मन इस किले को कभी भी जीत नहीं पाए। राजस्थान का इतिहास लिखने वाले अंग्रेज इतिहासकार जेम्स टाड के अनुसार इस किले की सबसे बड़ी खासियत है कि इसकी दीवारें जो मिट्टी से बनी हुई हैं। इसके बावजूद इस किले को फतह करना लोहे के चने चबाने से कम नहीं था।
राजस्थान का पूर्वी द्वार
किले को राजस्थान का पूर्व सिंह द्वार भी कहा जाता है। अंग्रेजों ने इस किले को अपने साम्राज्य में लेने के लिए 13 बार हमले किए। इन आक्रमणों में एक बार भी वो इस किले को भेद न सके। ऐसा कहा जाता है कि अंग्रेजों की सेना बार-बार हारने से हताश हो गई तो वहां से भाग गई। ये भी कहावत है कि भरतपुर के जाटों की वीरता के आगे अंग्रेजों की एक न चली थी।
चित्तौढ़ से लाए गए थे दरवाजे
इस किले के दरवाजे की अपनी अलग खासियत है। अष्टधातु के जो दरवाजे अलाउद्दीन खिलजी पद्मिनी के चित्तौड़ से छीन कर ले गया था उसे भरतपुर के राजा महाराज जवाहर सिंह दिल्ली से उखाड़ कर ले आए। उसे इस किले में लगवाया। किले के बारे में रोचक बात यह भी है कि इसमें कहीं भी लोहे का एक टुकड़ा भी नहीं लगा है। किले के एक कोने पर जवाहर बुर्ज है, जिसे जाट महाराज द्वारा दिल्ली पर किये गए हमले और उसकी विजय की स्मारक स्वरूप सन् 1765 में बनाया गया था। दूसरे कोने पर फतह बुर्ज है जो सन् 1805 में अंग्रेजों की सेना के छक्के छुड़ाने और परास्त करने की यादगारी के तौर पर है।
अंग्रेजों ने भरतपुर पर किया आक्रमण
अंग्रेजी सेना से लड़ते–लड़ते होल्कर नरेश जशवंतराव भागकर भरतपुर आ गए थे। जाट राजा रणजीत सिंह ने उन्हें वचन दिया था कि आपको बचाने के लिये हम सब कुछ कुर्बान कर देंगे। अंग्रेजों की सेना के कमांडर इन चीफ लार्ड लेक ने भरतपुर के जाट राजा रणजीत सिंह को खबर भेजी कि या तो वह जसवंतराव होल्कर अंग्रेजों के हवाले कर दे अन्यथा वह खुद को मौत के हवाले समझे।
यह धमकी जाट राजा के स्वभाव के सर्वथा खिलाफ थी। उन्होंने लार्ड लेक को संदेश भिजवाया कि वह अपने हौसले आजामा ले। हमने लड़ना सीखा है, झुकना नहीं। अंग्रेजी सेना के कमांडर लार्ड लेक को यह बहुत बुरा लगा और उसने तत्काल भारी सेना लेकर भरतपुर पर आक्रमण कर दिया।
जब अंग्रेजों में फैल गई सनसनी
अंग्रेजी सेना तोप से गोले उगलती जा रही थी और वह गोले भरतपुर की मिट्टी के उस किले के पेट में समाते जा रहे थे। तोप के गोलों के घमासान हमले के बाद भी जब भरतपुर का किला ज्यों का त्यों डटा रहा तो अंग्रेजी सेना में आश्चर्य और सनसनी फैल गयी। इतिहासकारों का कहना है कि लार्ड लेक के नेतृत्व में अंग्रेजी सेनाओं ने 13 बार इस किले में हमला किया और हमेशा उसे मुँह की खानी पड़ी। अंग्रेजी सेनाओं को वापस लौटना पड़ा।
भरतपुर की इस लड़ाई पर किसी कवि ने लिखा था –
हुई मसल मशहूर विश्व में, आठ फिरंगी नौ गोरे।
लड़ें किले की दीवारों पर, खड़े जाट के दो छोरे।

13 MP कैमरा, 64GB मेमोरी, बिना रजिस्ट्रेशन होगी श्याओमी Mi4 की Sale

श्याओमी का Mi4 का 64GB वेरियंट अब भारत में फ्लिपकार्ट पर बिना किसी रजिस्ट्रेशन के खरीदा जा सकेगा। सोमवार को दोपहर 2 बजे से इस फोन को बिना रजिस्ट्रेशन के बेचा जाएगा। बता दें कि कंपनी ने फरवरी महीने में इसी फोन के 16GB मॉडल की फ्लैश सेल भी फ्लिपकार्ट पर की थी।
कंपनी ने भारत में यह फोन 1 करोड़ यूनिट का टारगेट रखा है। फ्लैश सेल के जरिए कंपनी इस टारगेट को पूरा करने की कोशिम कर रही है। अपने हैंडसेट को बेचने के लिए कंपनी ने मोबाइल स्टोर्स से भी टाई-अप कर लिया है। 
ये हैं श्याओमी Mi 4 64GB के फीचर्स:
ये स्मार्टफोन 5 इंच फुल HD IPS LCD डिस्प्ले (1080 x 1920 पिक्सल) क्वालिटी देता है। वहीं, 441 पिक्सल पर इंच डेन्सिटी भी देता है। फोन में कॉर्निंग गोरिल्ला ग्लास प्रोटेक्शन है। इसमें क्वालकॉम स्नैपड्रैगन 801 सीरीज का 2.5 GHz प्रोसेसर दिया गया है। साथ ही, 3GB रैम है। फोन की इंटरनल मेमोरी 64GB है। फोन में 13 मेगापिक्सल ऑटोफोकस रियर कैमरा है, जो फुल HD वीडियो रिकॉर्डिंग को सपोर्ट करता है। दूसरी तरफ, इसका फ्रंट कैमरा 8 मेगापिक्सल है। इस स्मार्टफोन में 3,080mAh बैटरी है। यह 3G नेटवर्क पर 280 घंटे स्टैंडबाई टाइम देता है। इस फोन का डायमेंशन 139.2 x 68.5 x 8.9 mm है। मोबाइल स्टोर पर इस स्मार्टफोन की कीमत 23,999 रुपए है।
मोबाइल स्टोर से भी किया टाई-अप
श्याओमी के स्मार्टफोन श्याओमी रेडमी नोट 4G और श्याओमी Mi4 को ऑनलाइन के अलावा शॉप्स से भी खरीदा जा सकता है। कंपनी ने मोबाइल स्टोर से टाई-अप किया है। ये दोनों डिवाइस 28 मार्च से यूजर्स के लिए द मोबाइल स्टोर पर उपलब्ध हैं। पहले ये दोनों सेट दिल्ली के स्टोर में उपलब्ध रहेंगे, इसके बाद दूसरे शहरों के स्टोर पर सेल किए जाएंगे। कंपनी ने इसे सेल करने के लिए 300 स्टोर को चुना है, जिनमें दिल्ली और NCR के 22 स्टोर शामिल हैं।

विश्व में ये भी हैं सबसे बड़े

वैसे दुनिया में और भी कई चीजें हैं जो अपने आप में सबसे बड़ी हैं।
 
सबसे बड़ा घर : एंटीलिया (मुकेश अंबानी)
कहां : अल्टामाउंट रोड, मुंबई
ऊंचाई : 568 फीट (27 मंजिला)
खासियत : 3,98,000 वर्गफीट का लिविंग स्पेस, घर की देखरेख के लिए 600 लोगों का स्टाफ
सबसे बड़ा यात्री विमान : एयरबस 380-800
पैसेंजर्स कैपेसिटी : 544 पैसेंजर्स
पहली फ्लाइट : 27 अप्रैल 2005
खासियत : अधिकतम स्पीड 900 किलोमीटर प्रतिघंटा
सबसे बड़ा शिप (मालवाहक) : द ग्लोब
कहां : फ्लेक्सिटोव पोर्ट, ब्रिटेन
कितनी क्षमता : 19,100 कंटेनर्स (1.86 लाख टन)
खासियत : 1312 फीट लंबा, 186 फीट चौड़ा, 240 फीट ऊंचा (14,500 लंदन बसों के बराबर वजन ढोने में सक्षम)
सबसे बड़ी झील : कैस्पियन सी
कहां : कजाखिस्तान
क्षेत्रफल : 3,71,000 वर्ग किलोमीटर
खासियत : लंबाई 1030 किमी, चौड़ाई 435 किमी., औसत गहराई 690 फीट

सबसे बड़ा भूकंप : द ग्रेट चिलियन अर्थक्वेक
कहां और कब : व्लादिविया चिली, 22 मई 1960
तीव्रता : 9.5 रिक्टर स्केल
खासियत : इस भूकंप के कारण 20 लाख लोग बेघर हो गए थे।
सबसे बड़ी नदी (लंबी) : नील
कहां : मिस्र
लंबाई : 6650 किलोमीटर
खासियत : नील नदी 11 देशों में बहती है, जिनमें तंजानिया, युगांडा, रवांडा, इथियोपिया, इरीट्रिया, सूडान और इजिप्ट प्रमुख हैं।
सबसे बड़ा रेगिस्तान : सहारा
कहां : अफ्रीका महाद्वीप
क्षेत्रफल : 94,00000 वर्ग किलोमीटर
खासियत : यहां कई रेत के टीले 590 फीट ऊंचाई तक के हैं
सबसे बड़ा स्टेडियम : स्ट्राहोव
कहां : चेक रिपब्लिक
क्षमता : 2,50,000 लोग
खासियत : 63,500 वर्गमीटर क्षेत्र में फैले इस स्टेडियम में 8 फुटबॉल पिच हैं।
सबसे बड़ा रेलवे स्टेशन : ग्रैंड सेंट्रल टर्मिनल
कहां : न्यूयॉर्क
आधार : 44 प्लेटफॉर्म, 67 ट्रैक
खासियत : 48 एकड़ में बने इस स्टेशन में हर साल करीब 2.16 करोड़ पैसेंजर्स आते हैं।
सबसे बड़ा शहर (आबादी) : टोक्यो
कहां : जापान
आबादी : 3,78,30000
खासियत : टोक्यो की लोकल रेल सेवा दुनिया की सबसे अच्छी मेट्रो रेल में शामिल है।



सबसे बड़ा डेल्टा : सुंदरवन
कहां : पश्चिम बंगाल
क्षेत्रफल : 139,500 हेक्टेयर (3,45,000 एकड़)
खासियत : यहां के नरभक्षी बाघ 'बंगाल टाइगर' के नाम से विश्व भर में प्रसिद्ध हैं
सबसे बड़ा देश (क्षेत्रफल) : रूस
कहां : एशिया महाद्वीप
क्षेत्रफल : 1,70,98,242 वर्ग किलोमीटर
खासियत : इतना क्षेत्रफल होने के बावजूद यहां की आबादी 14.39 करोड़ है।

सबसे बड़ा पार्क : सेरा ड केंटारेरा
कहां : साउ पाउलो, ब्राजील
क्षेत्रफल : 64,800 हेक्टेयर
खासियत : फेमस ब्राजीलियन बैंड 'मैमोनास असेसिनास' भी यहीं का था।

बीजेपी बनी दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी

केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी 8.80 करोड़ सदस्यों के साथ दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बन गई है। इससे पहले 8.60 करोड़ सदस्यों के साथ चीन की कम्युनिस्ट पार्टी को दुनिया का सबसे बड़ा राजनीतिक दल माना जाता था। पार्टी ने रविवार को 8.80 करोड़ का आंकड़ा हासिल किया और अमित शाह आखिरी आंकड़े का ऐलान बंगलुरु में 3-4 अप्रैल को होने वाली बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में करेंगे।
बीजेपी को सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बनाने के पीछे पार्टी अध्यक्ष अमित शाह का दिमाग था। इसके साथ ही सदस्यों की संख्या इतनी तेजी से बढ़ने के पीछे प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता और मिस्ड कॉल से मेंबर बनाने का आइडिया दो सबसे बड़ी वजह रही हैं।

100 साल पुरानी PHOTOS, ठंड में इस तरह हमारे सैनिकों ने लड़ा था विश्वयुद्ध

पहले विश्व युद्ध की भीषण त्रासदी को सौ साल पूरे हो गए हैं। उस विश्व युद्ध में ब्रिटेन के अन्य उपनिवेशों की तरह भारतीय सैनिकों ने भी हिस्सा लिया था। यूं तो भारत का पहले विश्व युद्ध से लेना-देना नहीं था लेकिन ब्रिटेन का उपनिवेश होने के कारण भारतीय सैनिकों को युद्ध में झोंका गया। भारतीय सैनिक उस युद्ध में सबसे आगे रहकर दुश्मनों से लोहा लेते थे।
विश्व युद्ध पर काफी रिसर्च कर चुके अलियांस फ्रांसिस दी चंडीगढ़ के डायरेक्टर डोमिनिक वाग के मुताबिक ब्रिटिशर्स भारतीय सैनिकों के साथ अच्छा बर्ताव करते थे, इसके पीछे कारण यह था कि भारतीय सैनिक बहुत अच्छे लड़ाके थे और ब्रिटेन को उनकी खासी जरूरत थी। विश्व युद्ध के दौरान भारतीय सैनिकों की कुछ तस्वीरों को फ्रांस के रक्षा मंत्रालय ने सहेज कर रखा है।
लाखों सैनिक गए थे युद्ध लड़ने
डोमिनिक वाग के मुताबिक, 'पहले विश्व युद्ध में भारत से करीब लाखों सैनिक भारत से फ्रांस गए थे। अगस्त में सभी सैनिकों को इकट्ठा किया गया। सितंबर में सैनिक फ्रांस और अन्य देशों में पहुंचे और अक्टूबर महीने में वे युद्ध के मैदान में उतर गए। उनमें से कितने सैनिक वापस आए, यह कहना मुश्किल है। कई दफा तो भारतीय सैनिकों को जबर्दस्त ठंड में सूती कपड़े पहनकर लड़ना पड़ा हालांकि बाद में उन्हें गर्म स्थानों पर लड़ने के लिए भेजा गया। '
40 साल की उम्र में आते थे सेना में
आज के दौर में भले ही सैनिक 21-22 साल की उम्र में भर्ती किए जाते हों लेकिन उस वक्त भारतीय सैनिक 40 साल की उम्र के बाद भी सेना में भर्ती होते थे। इसके पीछे यह वजह मानी जाती है कि वे पैसों की तलाश में सेना में भर्ती होते थे।
नए हथियारों से लड़ना होता था मुश्किल
वाग के मुताबिक, 'भारतीय सैनिकों को नए हथियारों का मुकाबला करने और उनका उपयोग करने में काफी समस्या आती थी। दरअसल, उस वक्त भारतीय सैनिकों को आधुनिक हथियार चलाने का ज्यादा अनुभव नहीं था।'
तस्वीरों की प्रदर्शनी
डोमिनिक वाग ने यह बातें आलियांस फ्रांसिस दी भोपाल में 'वार एंड कॉलाेनीज' थीम पर शुरू हुई फोटो प्रदर्शनी के दौरान कहीं। प्रदर्शनी में पहले विश्व युद्ध की चुनिंदा तस्वीरें हैं, जिन्हें फ्रांस के रक्षा मंत्रालय के आर्काइव में संभाल कर रखा गया है।
मई 1916 में भारतीय सैनिकों को ले जाते ब्रिटिश और फ्रांस के ऑफिसर। स्वेज नहर के रास्ते इसी जगह से उपनिवेशी सैनिकों को फ्रांस लाया जाता था।
फ्रांस के उपनिवेश बारटोली के सैनिकाें के साथ सिख सैनिक।
ब्रिटेन की एयरफील्ड पर कंस्ट्रक्शन के काम में भारतीय सैनिकों को लगाया गया था। कैंप के किचन के सामने खड़े सैनिक।
ब्रिटेन की एयरफील्ड के लिए बिल्डिंग के काम में लगे भारतीय सैनिकों का नेतृत्व करते भारतीय सैनिक अधिकारी।
फ्रेंच नेशनल डे के मौके पर 1917 में पेरिस में फ्रांस के राष्ट्रपति के सामने मार्च पास्ट करते भारतीय सैनिक।
पंजाब के सैनिकों की यह तस्वीर 1918 में ली गई थी।