वैदिक काल से श्रावणी पूर्णिमा को भाई-बहन का पावन पर्व रक्षा बंधन
मनाया जा रहा है। इस दिन बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती है और भाई
उनकी रक्षा करने का वचन देता है। वहीं, रक्षा बंधन के दिन भद्रा काल के बाद
ही राखी बांधनी चाहिए। इस बार ये भद्रा काल 1 बजकर 50 मिनट पर खत्म हो रहा
है। ऐसे में राखी बांधने के लिए इसके बाद का ही समय शुभ है।
पुराणों के अनुसार, सबसे पहले देवगुरु बृहस्पति ने इंद्र को रक्षा
सूत्र बांधा था। इसके बाद हर साल इंद्र को इंद्राणी भी रक्षा सूत्र बांधने
लगीं। तब से लेकर आज तक ये त्यौहार मनाया जाता है। तभी से ये त्यौहार आज भी
श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। डॉ. शक्तिधर शर्मा के अनुसार, भद्रा का
विचार रक्षा बंधन के समय अवश्य करना चाहिए।
भद्रा काल खत्म होने के बाद बांधे राखी
रक्षा बंधन के दिन भद्रा काल के बाद ही राखी बांधना शुभ होगा। इस बार भद्रा काल 29 अगस्त को 1 बजकर 50 मिनट पर समाप्त हो रहा है। ऐसे में इसके बाद ही भाई को राखी बांधना बेहतर होगा। डॉ. पंडित शक्तिधर शर्मा के अनुसार 'भद्रा' यमराज की बहन है और भद्रा के मुखकाल में भाई की रक्षा के लिए किया गया कार्य शुभ फल प्रदान नहीं करेगा। अच्छा यही होगा कि पुच्छ काल अथवा भद्रा रहित काल में रक्षा बंधन का पर्व मनाया जाए।
रक्षा बंधन के दिन भद्रा काल के बाद ही राखी बांधना शुभ होगा। इस बार भद्रा काल 29 अगस्त को 1 बजकर 50 मिनट पर समाप्त हो रहा है। ऐसे में इसके बाद ही भाई को राखी बांधना बेहतर होगा। डॉ. पंडित शक्तिधर शर्मा के अनुसार 'भद्रा' यमराज की बहन है और भद्रा के मुखकाल में भाई की रक्षा के लिए किया गया कार्य शुभ फल प्रदान नहीं करेगा। अच्छा यही होगा कि पुच्छ काल अथवा भद्रा रहित काल में रक्षा बंधन का पर्व मनाया जाए।
पति-पत्नी के लिए था पर्व
डॉ. पंडित शक्तिधर शर्मा (शास्त्री) के मुताबिक, शुरुआत में ये त्यौहार पति-पत्नी के पवित्र प्रेम का बंधन था। युद्ध में जाते समय शची ने इंद्र को और प्रमिला (सुलोचना) ने मेघनाद को रक्षासूत्र बांधा था। मेघनाद की मृत्यु के बाद ये भाई-बहन का पर्व बन गया। ऐसा माना जाता है कि प्रमिला ने भद्रा के मुखकाल में राखी बांधी थी। इस वजह से इसका प्रभाव नहीं हुआ और मेघनाद युद्ध में मारा गया। शुरुआत में राजा बलि को उनकी बहन लक्ष्मी ने रक्षा सूत्र बांधकर विष्णु से मुक्त कराया था।
डॉ. पंडित शक्तिधर शर्मा (शास्त्री) के मुताबिक, शुरुआत में ये त्यौहार पति-पत्नी के पवित्र प्रेम का बंधन था। युद्ध में जाते समय शची ने इंद्र को और प्रमिला (सुलोचना) ने मेघनाद को रक्षासूत्र बांधा था। मेघनाद की मृत्यु के बाद ये भाई-बहन का पर्व बन गया। ऐसा माना जाता है कि प्रमिला ने भद्रा के मुखकाल में राखी बांधी थी। इस वजह से इसका प्रभाव नहीं हुआ और मेघनाद युद्ध में मारा गया। शुरुआत में राजा बलि को उनकी बहन लक्ष्मी ने रक्षा सूत्र बांधकर विष्णु से मुक्त कराया था।
कर्क राशि में होता है सूर्य
श्रावणी पर्व के दिन गृहस्थी और वानप्रस्थी दोनों को इस दिन किए जाने वाले उपाकर्म और श्रावणी कर्म करने चाहिए। मान्यता है कि इस दिन गोबर, मिट्टी, मुल्तानी मिट्टी, यज्ञ भस्म आदि का लेप करके स्नान करना चाहिए। इससे त्वचा के रोगों का विनाश होता है। डॉ. पंडित शक्तिधर शर्मा ने बताया कि कर्क राशि में सूर्य होने के कारण आसमान में बादल छाए रहते हैं। इस वजह से उसकी किरणें पृथ्वी पर नहीं पहुंचती, जिससे कई तरह की बीमारियां और संक्रमण होने का खतरा रहता है। इनसे बचने के लिए ही श्रावणी कर्म किए जाते हैं।
श्रावणी पर्व के दिन गृहस्थी और वानप्रस्थी दोनों को इस दिन किए जाने वाले उपाकर्म और श्रावणी कर्म करने चाहिए। मान्यता है कि इस दिन गोबर, मिट्टी, मुल्तानी मिट्टी, यज्ञ भस्म आदि का लेप करके स्नान करना चाहिए। इससे त्वचा के रोगों का विनाश होता है। डॉ. पंडित शक्तिधर शर्मा ने बताया कि कर्क राशि में सूर्य होने के कारण आसमान में बादल छाए रहते हैं। इस वजह से उसकी किरणें पृथ्वी पर नहीं पहुंचती, जिससे कई तरह की बीमारियां और संक्रमण होने का खतरा रहता है। इनसे बचने के लिए ही श्रावणी कर्म किए जाते हैं।
श्रावणी कर्म करने से खत्म होते हैं रोग
डॉ. शक्तिधर शर्मा कहते हैं कि सनातन धर्म में जितने पर्व हैं, वे इंसान बेहतर स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए है। साथ ही एक-दूसरे में परस्पर प्रेम बनाए रखने के लिए आयोजित किए जाते हैं। इसलिए भविष्य पुराण में बताया गया है कि सभी रोगों का विनाशक है श्रावणी कर्म।
डॉ. शक्तिधर शर्मा कहते हैं कि सनातन धर्म में जितने पर्व हैं, वे इंसान बेहतर स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए है। साथ ही एक-दूसरे में परस्पर प्रेम बनाए रखने के लिए आयोजित किए जाते हैं। इसलिए भविष्य पुराण में बताया गया है कि सभी रोगों का विनाशक है श्रावणी कर्म।
सावन के महीने में किए जाते हैं ये कर्म
1. तत्तद्स्नान
2. सूर्य अराधना
3. प्राणायाम
4. अग्निहोम
5. ब्रह्मर्षि पूजन
1. तत्तद्स्नान
2. सूर्य अराधना
3. प्राणायाम
4. अग्निहोम
5. ब्रह्मर्षि पूजन
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