सावन के मौके पर यूं तो हर शिव मंदिर में शिवभक्तों की भीड़ दिखाई
देती है, लेकिन बदायूं-शाहजहांपुर के बॉर्डर पर स्थित देवकली मंदिर में
भक्तों की भीड़ का नजारा देखते ही बनता है। पौराणिक महत्व होने के कारण
यहां ज्यादा शिवभक्त पहुंचते हैं। इस शिव मंदिर के बारे में कहा जाता है
कि यहां कई बार शिवभक्त रावण खुद पूजा करने आ चुका है।
कहा जाता है कि सतयुग के चौथे चरण में दैत्य गुरु शुक्राचार्य इस स्थान पर आए थे। उन्होंने संजीवनी विद्या हासिल करने के लिए यहां तपस्या की थी। सालों तक तपस्या करने के बाद भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए। भगवान शिव ने शुक्राचार्य से कहा था कि जब वो यहां पर आठ शिवलिंग की स्थापना करेंगे तभी उन्हें संजीवनी विद्या प्राप्त होगी।
शुक्राचार्य ने की 8 हजार साल तक तपस्या
पुजारी अखिलेश गिरी गोस्वामी बताते हैं कि अमूमन किसी भी शिवमंदिर में एक शिवलिंग होता है, लेकिन पटना देवकली मंदिर में शुक्राचार्य ने आठ हजार सालों तक तपस्या कर संजीवनी विद्या हासिल की थी। इन आठ हजार सालों में उन्होंने सर्व, रूद्र, उग्र, भीमा, पशुपति, इशा नकशा, महादेव और राम नाम के आठ शिवलिंगों की स्थापना की। पुजारी कहते हैं कि प्राचीन समय में मंदिर के पास से होकर गंगा निकलती थीं। समय के साथ-साथ वो भी विलुप्त होती चली गई। इसे अगहर भी कहते हैं।
कहा जाता है कि सतयुग के चौथे चरण में दैत्य गुरु शुक्राचार्य इस स्थान पर आए थे। उन्होंने संजीवनी विद्या हासिल करने के लिए यहां तपस्या की थी। सालों तक तपस्या करने के बाद भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए। भगवान शिव ने शुक्राचार्य से कहा था कि जब वो यहां पर आठ शिवलिंग की स्थापना करेंगे तभी उन्हें संजीवनी विद्या प्राप्त होगी।
शुक्राचार्य ने की 8 हजार साल तक तपस्या
पुजारी अखिलेश गिरी गोस्वामी बताते हैं कि अमूमन किसी भी शिवमंदिर में एक शिवलिंग होता है, लेकिन पटना देवकली मंदिर में शुक्राचार्य ने आठ हजार सालों तक तपस्या कर संजीवनी विद्या हासिल की थी। इन आठ हजार सालों में उन्होंने सर्व, रूद्र, उग्र, भीमा, पशुपति, इशा नकशा, महादेव और राम नाम के आठ शिवलिंगों की स्थापना की। पुजारी कहते हैं कि प्राचीन समय में मंदिर के पास से होकर गंगा निकलती थीं। समय के साथ-साथ वो भी विलुप्त होती चली गई। इसे अगहर भी कहते हैं।
खुदाई में निकले राख से भरे हवनकुंड
सरोवरनुमा रह जाने से इसे शुक्र काशी के नाम से जाना जाने लगा। बताया जाता है कि ये झील चर्म रोगियों के लिए वरदान साबित होती थी। करीब दस साल पहले ये लुप्त हो गई। लगभग तीन साल पहले मंदिर का सौंदर्यीकरण कराने के लिए मंदिर की खुदाई की गई थी। खुदाई में करीब 11 फिट नीचे दो हवनकुंड निकले। इसमें राख भरी हुई थी। उस राख को लेने के लिए भक्तों की भीड़ लग गई। बाद में डीएम ने अपनी मौजूदगी में राख को बंटवाया था। यही नहीं खुदाई में मिले ईंटों को जब तोड़ा गया, तो उसमे छोटे-छोटे शिवलिंग मिले थे।
सरोवरनुमा रह जाने से इसे शुक्र काशी के नाम से जाना जाने लगा। बताया जाता है कि ये झील चर्म रोगियों के लिए वरदान साबित होती थी। करीब दस साल पहले ये लुप्त हो गई। लगभग तीन साल पहले मंदिर का सौंदर्यीकरण कराने के लिए मंदिर की खुदाई की गई थी। खुदाई में करीब 11 फिट नीचे दो हवनकुंड निकले। इसमें राख भरी हुई थी। उस राख को लेने के लिए भक्तों की भीड़ लग गई। बाद में डीएम ने अपनी मौजूदगी में राख को बंटवाया था। यही नहीं खुदाई में मिले ईंटों को जब तोड़ा गया, तो उसमे छोटे-छोटे शिवलिंग मिले थे।
मंदिर पर बुरी नजर डालने वाला हो गया तबाह
पुजारी अखिलेश गिरी गोस्वामी ने जब भी मंदिर पर किसी ने बुरी नजर डाली, उस पर संकट जरूर आया है। उन्होंने साल 1969 के एक वाक्ये के बारे में बताया कि उस साल एक दबंग व्यक्ति ने मंदिर में डाका डलवाया था। उस व्यक्ति को मंदिर के पुजारी के पिता और दादी ने पहचान लिया था। जांच के लिए आए तत्कालीन दरोगा को जब कामयाबी नहीं मिली, तो उन्होंने मंदिर में अर्जी लगा दी। इसके बाद से ही बदमाश परेशान रहने लगा। हालत ये हो गए कि बदमाश की मां ने अपने बेटे की काली करतूत के बारे में सबको खुद बताया।
बंदरों से घिरा रहता है पूरा मंदिर
इस शिव मंदिर में बंदरों की फौज हमेशा रहती है। कभी-कभी ये भक्तों के लिए आफत भी साबित होते हैं। पुजारी अखिलेश कहते हैं कि करीब दस साल पहले यहां बंदरों की फौज इकठ्ठा हुई थी। तब से लेकर आज तक ये यहां से नहीं गए हैं।
पुजारी अखिलेश गिरी गोस्वामी ने जब भी मंदिर पर किसी ने बुरी नजर डाली, उस पर संकट जरूर आया है। उन्होंने साल 1969 के एक वाक्ये के बारे में बताया कि उस साल एक दबंग व्यक्ति ने मंदिर में डाका डलवाया था। उस व्यक्ति को मंदिर के पुजारी के पिता और दादी ने पहचान लिया था। जांच के लिए आए तत्कालीन दरोगा को जब कामयाबी नहीं मिली, तो उन्होंने मंदिर में अर्जी लगा दी। इसके बाद से ही बदमाश परेशान रहने लगा। हालत ये हो गए कि बदमाश की मां ने अपने बेटे की काली करतूत के बारे में सबको खुद बताया।
बंदरों से घिरा रहता है पूरा मंदिर
इस शिव मंदिर में बंदरों की फौज हमेशा रहती है। कभी-कभी ये भक्तों के लिए आफत भी साबित होते हैं। पुजारी अखिलेश कहते हैं कि करीब दस साल पहले यहां बंदरों की फौज इकठ्ठा हुई थी। तब से लेकर आज तक ये यहां से नहीं गए हैं।
इस मंदिर में मुस्लिम भी झुकाते हैं सिर
इस मंदिर में सौहार्द भी देखने को मिलता है। पुजारी के मुताबिक, यहां मुस्लिम भी सिर झुकाते हैं। मंदिर के विस्तार के लिए बहुत समय पहले फकीर मोहम्मद शाह ने जमीन मंदिर के लिए दान की थी। इसी के बाद से मुस्लिम यहां अपने बच्चों का मुंडन भी करवाते हैं।
इस मंदिर में सौहार्द भी देखने को मिलता है। पुजारी के मुताबिक, यहां मुस्लिम भी सिर झुकाते हैं। मंदिर के विस्तार के लिए बहुत समय पहले फकीर मोहम्मद शाह ने जमीन मंदिर के लिए दान की थी। इसी के बाद से मुस्लिम यहां अपने बच्चों का मुंडन भी करवाते हैं।
दो दिन पहले से शुरू हो जाती है तैयारियां
पुजारी अखिलेश ने बताया कि सावन के महीने में यहां भक्तों की काफी
भीड़ देखने को मिलती है। महाशिवरात्रि पर दो दिन पहले से ही तैयारियां होना
शुरू हो जाती हैं। बेल पत्र, धतूरा, बेर आदि की दुकानें लगने लगती हैं।
भक्तों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए पुलिस फोर्स भी तैनात की जाती है।