Thursday 3 December 2015

जन्मदिवस: भारत के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद की अनदेखी तस्वीरें और अंजानी बातें

अपने बड़े भाई महेंद्र प्रसाद के साथ डॉ राजेंद्र प्रसाद, उनके बड़े भाई का उनके जीवन में बड़ा योगदान था
डॉ राजेंद्र प्रसाद ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि गोपाल कृष्ण गोखले से मिलने के बाद वे आज़ादी की लड़ाई में शामिल होने के लिए बेचैन हो गए.
राजेंद्र प्रसाद ने ये पत्र रूस के शहर सोची से पोस्टकार्ड पर लिखा था 
 मगर परिवार की ज़िम्मेदारी उनके ऊपर थी. 15-20 दिन तक काफ़ी सोचने समझने के बाद अपने बड़े भाई महेंद्र प्रसाद और पत्नी राजवंशी देवी को भोजपुरी में पत्र लिखकर देश सेवा करने की अनुमति मांगी.
उनका ख़त को पढ़कर उनके बड़े भाई रोने लगे. वे सोचने लगे कि उनको क्या जवाब दें. बड़े भाई से सहमति मिलने पर ही राजेंद्र प्रसाद स्वतंत्रता आंदोलन में उतरे.
बाबू राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर 1884 को बिहार के भोजपुर क्षेत्र में जीरादेई नाम के गाँव में हुआ था जो अब सिवान ज़िले में है.
राजेंद्र प्रसाद और उनकी पत्नी राजवंशी देवी बहुत सादगी से राष्ट्रपति भवन में रहते थे 
13 साल की उम्र में राजेंद्र प्रसाद का विवाह राजवंशी देवी से हो गया. इस समय वे स्कूल में पढ़ रहे थे.
राष्ट्रपति भवन में अंग्रेज़ियत का बोलबाला था जबकि राजवंशी देवी मानती थीं कि 'देश छोड़ो तो छोड़ो मगर अपना वेश मत छोड़ो. अपनी संस्कृति क़ायम रखो'.
महात्मा गांधी राजेंद्र प्रसाद की योग्यता और व्यवहार से काफ़ी प्रभावित हुए थे 
राजेंद्र प्रसाद गांधीजी के मुख्य शिष्यों में से एक थे और उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
डॉ. तारा सिन्हा, डॉ. राजेंद्र प्रसाद की पोती हैं. उनका कहना है कि डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने संविधान की रूप रेखा तैयार की. मगर आज इस बात की चर्चा कहीं नहीं है. डॉ राजेंद्र प्रसाद के सम्मान में भारत में किसी प्रकार का कोई दिवस नहीं मनाया जाता है, ना ही संसार में उनके नाम पर कोई शिक्षण संस्थान ही है.
राजेंद्र प्रसाद अपने खान-पान और रहन-सहन में पूरी तरह से ठेठ भारतीय थे 
रात आठ बजते-बजते वो रात का खाना खा लेते थे. उनका खाना एकदम सादा होता था. फलों में आम उनको बहुत पसंद था. वे जल्दी सोते थे और बहुत सुबह जाग जाते थे.
वक़ालत की पूरी पढ़ाई उन्होंने सुबह उठकर ही की है. इस बात का ज़िक्र उन्होंने अपनी आत्मकथा में भी किया है.
राजेंद्र प्रसाद धार्मिक व्यक्ति थे जो हिंदू रीति-रिवाज़ों का पालन करते थे लेकिन राजनीतिक रूप से पूरी तरह गांधीवादी थे 
 1915 में उन्होंने स्वर्णपदक के साथ लॉ में मास्टर्स की डिग्री हासिल की और बाद में पी एचडी की.
राजेंद्र प्रसाद दमा के मरीज़ थे. दमा उनकी मां को भी था. जुलाई 1961 में राजेंद्र प्रसाद गंभीर रूप से बीमार पड़े थे. डॉक्टरों ने कहा कि अब वो नहीं बचेंगे
राजेंद्र प्रसाद दमे की वजह से काफ़ी परेशान रहते थे, ये पारिवारिक तस्वीर अस्पताल में ली गई थी 
मगर अगस्त 1961 को भयंकर बीमारी के बाद वे ठीक हो गए, राष्ट्रपति का कार्यकाल पूरा होने के बाद वे पटना आए थे.
अस्पताल से घर लौटने पर राजेंद्र प्रसाद की आरती उतारतीं उनकी पोती तारा सिन्हा  उस समय उनको मात्र 1100 रुपये पेंशन मिलती थी. पटना के सदाकत आश्रम में सेवानिवृत होने के बाद अपना जीवन गुज़ारा और 28 फरवरी, 1963 को यहीं उनकी मृत्यु भी हुई.
चीनी प्रधानमंत्री के साथ अनौपचारिक मूड में  राष्ट्रपति भवन में जब कभी विदेशी अतिथि आते तो उनके स्वागत में उनकी आरती की जाती थी और राजेंद्र बाबू चाहते थे कि विदेशी मेहमानों को भारत की संस्कृति की झलक दिखाई जाए.