Tuesday 5 May 2015

नारद जयंती कल: भगवान विष्णु के परम भक्त हैं ये देवर्षि

हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार ज्येष्ठ मास में नारद जयंती मनाई जाती है। इस बार नारद जयंती का पर्व 6 मई, बुधवार को है। शास्त्रों के अनुसार नारद मुनि, ब्रह्मा के सात मानस पुत्रों में से एक हैं। उन्होंने कठिन तपस्या से देवर्षि पद प्राप्त किया है। वे भगवान विष्णु के अनन्य भक्तों में से एक माने जाते हैं। देवर्षि नारद धर्म के प्रचार तथा लोक कल्याण के लिए हमेशा प्रयत्नशील रहते हैं। शास्त्रों में देवर्षि नारद को भगवान का मन भी कहा गया है।
ग्रंथों में देवर्षि नारद को भगवान विष्णु का अवतार भी बताया गया है। श्रीमद्भागवत गीता के दशम अध्याय के 26वें श्लोक में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने इनकी महत्ता को स्वीकार करते हुए कहा है- देवर्षीणाम्चनारद:। अर्थात देवर्षियों में मैं नारद हूं। महाभारत के सभा पर्व के पांचवें अध्याय में नारद जी के व्यक्तित्व का परिचय इस प्रकार दिया गया है- देवर्षि नारद वेद और उपनिषदों के मर्मज्ञ, देवताओं के पूज्य, इतिहास व पुराणों के विशेषज्ञ, पूर्व कल्पों (अतीत) की बातों को जानने वाले, शिक्षा, व्याकरण, आयुर्वेद, ज्योतिष के प्रकाण्ड विद्वान, संगीत-विशारद, प्रभावशाली वक्ता, मेधावी, नीतिज्ञ, कवि, महापंडि़त, बृहस्पति जैसे महा विद्वानों की शंकाओं का समाधान करने वाले और सर्वत्र गति वाले हैं। 18 महापुराणों में एक नारदोक्त पुराण; बृहन्नारदीय पुराण के नाम से प्रख्यात है।
नारद मुनि के श्राप के कारण भगवान विष्णु को सहना पड़ा स्त्री वियोग
देवर्षि नारद को एक बार इस बात का घमंड हो गया कि कामदेव भी उनकी तपस्या और ब्रह्मचर्य को भंग नहीं कर सके। नारदजी ने यह बात शिवजी को बताई। देवर्षि के शब्दों में अहंकार भर चुका था, वे स्वयं शिवजी के सामने अपने अभिमान को प्रदर्शित कर रहे थे। शिवजी यह समझ चुके थे कि नारद अभिमानी हो गए हैं। भोलेनाथ ने नारद से कहा कि भगवान श्रीहरि के समक्ष अपना अभिमान इस प्रकार प्रदर्शित मत करना। इसके बाद नारद भगवान विष्णु के समीप पहुंच गए और शिवजी के समझाने के बाद भी उन्होंने श्रीहरि के सामने अपना घमंड प्रदर्शित किया।
तब श्रीहरि ने सोचा कि नारद का घमंड तोडना होगा, यह शुभ लक्षण नहीं है। इसके बाद नारद विष्णुजी को प्रणाम कर आगे बढ़े गए। रास्ते में उन्हें एक बहुत ही सुंदर नगर दिखाई दिया, जहां किसी राजकुमारी के स्वयंवर का आयोजन किया जा रहा था। नारद भी वहां पहुंच गए और राजकुमारी को देखते ही मोहित हो गए। यह सब भगवान श्रीहरि की माया ही थी। राजकुमारी का रूप और सौंदर्य नारद के तप को भंग कर चुका था। इस कारण उन्होंने राजकुमारी के स्वयंवर में हिस्सा लेने का मन बनाया।
नारद भगवान विष्णु के पास गए और कहा कि आप अपना सुंदर रूप मुझे दे दीजिए, जिससे कि वह राजकुमारी स्वयंवर में मेरा ही वरण करे। भगवान ने ऐसा ही किया, लेकिन जब नारद मुनि स्वयंवर में गए तो उनका मुख वानर के समान हो गया। उस स्वयंवर में भगवान शिव के दो गण भी थे, वे यह सभी बातें जानते थे और ब्राह्मण का वेष बनाकर यह सब देख रहे थे। जब राजकुमारी अपने वर का चयन करने स्वयंवर में आई तो वानर के मुख वाले नारदजी को देखकर वह बहुत क्रोधित हुई। उसी समय भगवान विष्णु एक राजा का रूप धारण कर वहां आ गए।
सुंदर रूप देखकर राजकुमारी ने उनका वरण कर लिया। यह देखकर शिवजी के गण वानर के समान मुख वाले नारदजी की हंसी उड़ाने लगे और कहा कि पहले अपना मुख दर्पण में देखिए। जब नारदजी ने अपने चेहरा वानर के समान देखा तो वह बहुत क्रोधित हुए। नारद मुनि उसी समय उन शिवगणों को राक्षस योनी में जन्म लेने का श्राप दे दिया। शिवगणों को श्राप देने के बाद नारदजी भगवान विष्णु के पास गए और क्रोधित होकर उन्हें बहुत भला-बुरा कहने लगे। माया से मोहित होकर नारद मुनि ने श्रीहरि को श्राप दिया कि जिस तरह आज मैं स्त्री के लिए व्याकुल हो रहा हूं, उसी प्रकार मनुष्य जन्म लेकर आपको भी स्त्री वियोग सहना पड़ेगा।
उस समय वानर ही तुम्हारी सहायता करेंगे। भगवान विष्णु ने कहा- ऐसा ही हो और नारद मुनि को माया से मुक्त कर दिया। तब नारद मुनि को अपने कटु वचन और व्यवहार पर बहुत ग्लानि हुई और उन्होंने भगवान श्रीहरि से क्षमा मांगी। भगवान श्रीहरि ने कहा कि ये सब मेरी ही इच्छा से हुआ है अत: तुम शोक न करो। इस प्रकार नारद मुनि को ढाढ़स बंधा कर श्रीहरि वहां से चले गए। उसी समय वहां भगवान शिव के गण आए, जिन्हें नारद मुनि ने श्राप दिया था।
उन्होंने नारद मुनि ने क्षमा मांगी। तब नारद मुनि ने कहा कि तुम दोनों राक्षस योनी में जन्म लेकर सारे विश्व को जीत लोगे, तब भगवान विष्णु मनुष्य रूप में तुम्हारा वध करेंगे और तुम्हारा कल्याण होगा। नारद मुनि के इन्हीं श्रापों के कारण उन शिव गणों ने रावण व कुंभकर्ण के रूप में जन्म लिया और श्रीराम के रूप में अवतार लेकर भगवान विष्णु को स्त्री वियोग सहना पड़ा।
नारद मुनि ने ही बताया था कैसा होगा पार्वती का पति
सती के रूप में आत्मदाह करने के बाद माता शक्ति ने पर्वतराज हिमालय के यहां पार्वती के रूप में जन्म लिया। जब से पार्वती हिमाचल के घर में जन्मी, तब से उनके घर में सुख और सम्पतियां छा गई। पार्वती जी के आने से पर्वत शोभायमान हो गया। जब नारदजी ने ये सब समाचार सुने तो वे हिमाचल पहुंचे। वहां पहुंचकर वे हिमाचल से मिले और हंसकर बोले तुम्हारी कन्या गुणों की खान है। यह स्वभाव से ही सुन्दर, सुशील और शांत है। परंतु इसका पति गुणहीन, मानहीन, माता-पिता विहीन, उदासीन, लापरवाह, योगी, जटाधारी और सांपों को गले में धारण करने वाला होगा। यह बात सुनकर पार्वती के माता-पिता चिंतित हो गए। उन्होंने देवर्षि से इसका उपाय पूछा।
तब नारद जी बोले जो दोष मैंने बताए मेरे अनुमान से वे सभी शिव में है। अगर शिवजी के साथ विवाह हो जाए तो ये दोष गुण के समान ही हो जाएंगे। यदि तुम्हारी कन्या तप करे तो शिवजी ही इसकी किस्मत बदल सकते हैं। तब यह सुनकर पार्वतीजी की मां विचलित हो गई। उन्होंने पार्वती के पिता से कहा आप अनुकूल घर में ही अपनी पुत्री का विवाह कीजिएगा क्योंकि पार्वती मुझे प्राणों से अधिक प्रिय है। पार्वती को देखकर मैना का गला भर आया। पार्वती ने अपनी मां से कहा मां मुझे एक ब्राह्मण ने सपने में कहा है कि जो नारदजी ने कहा है तू उसे सत्य समझकर जाकर तप कर। यह तप तेरे लिए दुखों का नाश करने वाला है। उसके बाद माता-पिता को बड़ी खुशी से समझाकर पार्वती तप करने गई।

Monday 4 May 2015

वैज्ञानिकों को मिला नया पक्षी, लोगों की नजरों से अभी तक था दूर

शोधकर्ताओं के एक अंतरराष्ट्रीय दल ने चीन में अलग तरह की आवाज वाले एक नए पक्षी की खोज की है। ‘सिचुआन बुश वार्बलर’ नामक इस नए पक्षी का अब तक घास और वनस्पतियों की वजह से पता नहीं चल पाया।
मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी की प्रफेसर और अनुसंधानकर्ता पामेला रासमुसेन ने कहा कि घनी झाड़ियों और चाय के बागानों में रहने की वजह से सिचुआन बुश वार्बलर इतने समय तक लोगों की नजरों में नहीं सका। पामेला ने कहा कि हालांकि यह पक्षी पकड़ में नहीं आने वाला, लेकिन यह मध्य चीन में आम तौर पर देखा जाता है।
इसके अस्तित्व पर किसी तरह का खतरा भी नहीं है। इस नए पक्षी का करीबी संबंधी रसेट बुश वार्बलर पक्षी है। इन दोनों वार्बलर को समान पहाड़ों पर देखा जा सकता है, जहां ये एक साथ रहते हैं। सिचुआन बुश वार्बलर कम ऊंचाई पर रहना पसंद करते हैं।
एक ही पहाड़ पर रहने के साथ ये दोनों आनुवांशिक रूप से भी करीबी हैं। इस खोज को ‘एवियन रिसर्च’ पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।

ये है दुनिया का सबसे बड़ा बौद्ध स्थल, 2000 साल पहले चलते थे जहाज

रायपुर राजधानी से 85 किलोमीटर की दूरी पर स्थित सिरपुर में दुनिया का अब तक मिला सबसे बड़ा बौद्ध स्थल है। ईसा पूर्व छठवीं शताब्दी में चीनी यात्री व्हेनसांग सिरपुर आए थे। उन्होंने अपने यात्रा वृत्तांत में सिरपुर का वर्णन करते हुए लिखा है, 'दक्षिण कोसल की राजधानी में सौ संघाराम थे। वहां का राजा हिंदू था और उस राज्य में सभी धर्मों का समादर होता था।' यहां बंदरगाह भी मिले हैं जो हजारों साल पहले यहां जहाज चलने की बात को प्रमाणित करते हैं।
सिरपुर में अब तक 10 बौद्ध विहार और लगभग 10000 बौद्ध भिक्षुओं के अध्ययन के पुख्ता प्रमाण मिल चुके हैं। इसके अलावा यहां कई बौद्ध स्तूप और बौद्ध विद्वान नागार्जुन के यहां आने के प्रमाण मिले हैं। यह स्थल गया के बौद्ध स्थल से भी बड़ा है। चीनी यात्री व्हेनसांग के यात्रा वृत्तांत के आधार पर जब इस स्थान की खुदाई की गई तो वे सभी विशेषताएं पाई गईं जिनका उल्लेख व्हेनसांग ने किया है।
सिरपुर में भगवान बुद्ध के आने के भी प्रमाण मिले हैं, प्राचीन समय में सिरपुर एक अतिविकसित और समृद्ध राजधानी थी, यहां से विदेशों के साथ व्यापार किया जाता था। यहां सोने-चांदी के गहने बनाने के सांचे, अस्पताल, बंदरगाह आदि के अवशेष मिले हैं।
आधुनिक और विकसित राजधानी
व्हेनसांग ने अपने यात्रा वृत्तांत में एक व्यवस्थित और अतिविकसित राजधानी का जिक्र किया है जहां से विदेशों के साथ व्यापार किया जाता था। उन्होंने लिखा है कि यहां एक पोरबंदर भी था जहां से जहाज के माध्यम से सामान निर्यात किए जाते थे। महानदी पर नदी बंदरगाह के अवशेष मिले हैं, यहां से बंदर-ए-मुबारक नाम की सील भी मिली है। सिरपुर की खुदाई में धातु गलाने के उपकरण, सोने के गहने बनाने की डाई से लेकर तलघर में बने अन्नगार भी मिले हैं।
सिरपुर में ढाई हजार लोगों के लिए खाना बनाने के लिए राजा के द्वारा 100 कढ़ाई दान किए जाने के उल्लेख वाले शिलालेख भी मिले हैं। इसके अलावा सिरपुर में 10 दस बिस्तरों वाला आयुर्वेदिक अस्पताल मिला है जहां से शल्य क्रिया के औजार और धातु की छड़ लगी हुई हड्डी भी प्राप्त हुई है।
बुद्ध ने बिताया था चौमासा
सिरपुर में भगवान तथागत बुद्ध के आने के प्रमाण मिले हैं, बुद्ध ने यहां चौमासा बिताया था। उनके द्वारा गया से लाया गया वटवृक्ष आज भी सिरपुर में है।
उनके सिरपुर आने की याद को चिरस्थाई बनाने के लिए ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में सम्राट अशोक ने यहां बौद्ध स्तूप का निर्माण करवाया गया था। उस स्तूप के अधिष्ठान को बाद में ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में बड़ा किया गया है, इसके स्तूपों में यहां आने वाले बौद्ध भिक्षुओं के नाम लिखे हुए हैं।
 
10 बौद्ध विहार मिले हैं सिरपुर में
छत्तीसगढ़ के पुरातात्विक सलाहकार अरुण कुमार शर्मा ने खुदाई के दौरान व्हेनसांग के यात्राा वृतांत में वर्णित सभी चीजें पाई हैं। शर्मा के अनुसार नालंदा में चार बौद्ध विहार मिले हैं, जबकि सिरपुर में दस बौद्ध विहार पाए गए। इन विहारों में छह-छह फिट की बुद्ध की मूर्तियां मिली हैं। सिरपुर के बौद्ध विहार दो मंजिलें हैं जबकि नालंदा के विहार एक मंजिला ही हैं। यहां जातक कथाओं और पंचतंत्र की चित्रकथाओं का अंकन किया गया है। यहां बुद्ध के जीवन पर आधारित कई ऐसे चित्रों का अंकन है जिनके बारे अब तक कोई जानकारी नहीं मिल सकी है।
रावण के ससुर का वास्तु शास्त्र
सिरपुर में महानदी ईशान कोण में मुड़ती है। रावण के ससुर मयदानव एक वास्तुविद थे और उनके अनुसार जिस स्थान पर नदी ईशान कोण में मुड़ती है वहां ईश्वर का वास होता है। यही कारण है कि भारत के ज्यादातर धार्मिक तीर्थ ऐसे स्थानों पर बसे हैं। उदाहरण के लिए बनारस में गंगा नदी 18 डिग्री पर, अयोध्या में सरयू नदी पांच डिग्री पर मुडी है। सिरपुर में महानदी 21 डिग्री के ईशान कोण पर मुड़ती है।
सिरपुर की नगर संरचना एवं मंदिरों की बनावट मयामत (मय दानव) के वास्तुशास्त्र के अनुसार पाई गई है।
भूकंप और बाढ़ से तबाह हुआ था सिरपुर
पिछले दस सालों से सिरपुर की खुदाई में लगे अरुण शर्मा के अनुसार सिरपुर का पतन वहां आए भूकंप और बाढ़ के कारण हुआ था। सातवीं शताब्दी के पश्चात इस क्षेत्र में जबरदस्त भूकंप आया था जिसके कारण पूरा सिरपुर डोलने लगा था।
इसके साथ ही महानदी का पानी महीनों तक नगर में भरा रहा।उन्होंने कहा कि यही भूकंप और बाढ़ सिरपुर के विनाश का कारण बना।
बाढ़ और भूकंप के प्रमाण के रूप में सुरंग टीले के मंदिरों में सीढ़ियों के टेढ़े होने और मंदिरों व भवनों की दीवारों पर पानी के रूकने के साथ बाढ़ के महीन रेत युक्त मिट्टी दीवारों के एक निश्चित दूरी पर जमने के निशान मिलते हैं।
सभी धर्मों का समान आदर होता था
सिरपुर में बौद्ध विहारों के अलावा बड़ी संख्या में शिव मंदिर भी मिले हैं। इन शिव मंदिरों की विशेषता यह है कि इनको राजाओं के अलावा विभिन्न समाजों के द्वारा स्थापित किए गए है। विभिन्न समाजों द्वारा बनाए गए इन शिव मंदिरों में समाज के प्रतीक चिन्ह, मंदिरों की सीढियों पर खुदे हुए हैं।
व्हेनसांग ने अपने यात्रा वृत्तांत में एक ऐसी राजधानी का वर्णन किया है जहां सभी धर्मों का समान आदर किया जाता था।

Saturday 2 May 2015

Pan Card नंबर में छुपा है आपका सरनेम, टैक्स डिपार्टमेंट नहीं बताता ये बात

पैन कार्ड एक ऐसा कार्ड है, जिस पर लिखे कोड में व्यक्ति की पूरी कुंडली छुपी होती है। लेकिन, क्या कभी आपने ये सोचा है कि आखिर परमानेंट अकाउंट नंबर, यानी पैन नंबर में ऐसा क्या छिपा है, जो आपके और इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के लिए जरूरी है। चलिए हम आपको पैन कार्ड और पैन नंबर से जुड़ी पूरी जानकारी देंगे। हम यह भी बताएंगे कि पैन कार्ड पर मौजूद नंबर का क्या मतलब होता है।
पैन कार्ड पर कार्डधारक का नाम और डेट ऑफ बर्थ लिखी होती है, लेकिन पैन कार्ड के नंबर में आपका सरनेम भी होता है। पैन कार्ड की पांचवी डिजिट आपके सरनेम को दर्शाती है। इनकम टैक्स डिपार्टमेंट कार्डधारक के सरनेम को ही मानता है। इसलिए नंबर में भी उसकी जानकारी होती है। लेकिन, टैक्स डिपार्टमेंट ये बात कार्डधारक को नहीं बताता कि उसकी पूरी कुंडली इन नंबरों में छिपी है।
आइए जानते हैं पैन कार्ड में दिए गए हर नंबर का क्या होता है मतलब-
पैन कार्ड नंबर एक 10 डिजिट का खास नंबर होता है, जो लेमिनेटेड कार्ड के रूप में आता है। इसे इनकम टैक्स डिपार्टमेंट उन लोगों को इश्यू करते हैं, जो पैन कार्ड के लिए अर्जी देते हैं। पैन कार्ड बन जाने के बाद उस व्यक्ति के सारे फाइनेंशियल ट्रांजेक्शन डिपार्टमेंट के पैन कार्ड से लिंक हो जाते हैं। इनमें टैक्स पेमेंट, क्रेडिट कार्ड जैसे कई फाइनेंशियल लेन-देन डिपार्टमेंट की निगरानी में रहते हैं।
इस नंबर के पहले तीन डिजिट अंग्रेजी के लेटर्स होते हैं। यह AAA से लेकर ZZZ तक कोई भी लेटर हो सकता है। ताजा चल रही सीरीज के हिसाब से यह तय किया जाता है। यह नंबर डिपार्टमेंट अपने हिसाब से तय करता है।
पैन कार्ड नंबर का चौथा डिजिट भी अंग्रेजी का ही एक लेटर होता है। यह पैन कार्डधारी का स्टेटस बताता है। इसमें-
ये हो सकती है चौथी डिजिट...
P- एकल व्यक्ति
F- फर्म
C- कंपनी
A- AOP ( एसोसिएशन ऑफ पर्सन)
T- ट्रस्ट
H- HUF (हिन्दू अनडिवाइडिड फैमिली)
B-BOI (बॉडी ऑफ इंडिविजुअल)
L- लोकल
J- आर्टिफिशियल जुडिशियल पर्सन
G- गवर्नमेंट के लिए होता है।
सरनेम के पहले अक्षर से बना पांचवा डिजिट
पैन कार्ड नंबर का पांचवा डिजिट भी ऐसा ही एक अंग्रेजी का लेटर होता है। यह डिजिट पैन कार्डधारक के सरनेम का पहला अक्षर होता है। यह सिर्फ धारक पर निर्भर करता है। गौरतलब है कि इसमें सिर्फ धारक का लास्ट नेम ही देखा जाता है।
इसके बाद पैन कार्ड में 4 नंबर होते हैं। यह नंबर 0001 से लेकर 9999 तक, कोई भी हो सकते हैं। आपके पैन कार्ड के ये नंबर उस सीरीज को दर्शाते हैं, जो मौजूदा समय में इनकम टैक्स डिपार्टमेंट में चल रही होती है। इसका आखिरी डिजिट एक अल्फाबेट चेक डिजिट होता है, जो कोई भी लेटर हो सकता है।
कहां-कहां है पैन कार्ड जरूरी
पैन कार्ड की मदद से आपको विभिन्न वित्तीय लेन-देन में आसानी होती है। इसकी मदद से आप बैंक खाता और डीमैट खाता खोल सकते हैं। इसके अलावा प्रॉपर्टी की खरीद-फरोख्त के लिए भी यह जरूरी होता है। दरअसल, पैन कार्ड टैक्सेबल सैलरी या प्रोफेशनल फी हासिल करने के लिए भी आवश्यक है। यह इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने के लिए भी जरूरी है।
चूंकि पैन कार्ड पर नाम और फोटोग्राफ होता है, ऐसे में यह आइडेंटिटी प्रूफ के तौर पर काम करता है। भले ही आपका पता बदलता रहे, लेकिन पैन नंबर नहीं बदलता।
ऊंची दर पर टैक्स डिडक्शन से बचने के लिए पैन कार्ड जरूरी है। दरअसल, जब आप 50 हजार रुपए से अधिक राशि की एफडी शुरू करते हैं, तो पैन कार्ड की फोटोकॉपी देनी होती है। पैन के अभाव में ऊंची दर पर आपका टीडीएस काट लिया जाएगा।
इन परिस्थितियों में भी है पैन कार्ड आवश्यक
> दो पहिया के अलावा किसी अन्य वाहन की खरीद-बिक्री
> किसी होटल या रेस्तरां में एक बार में 25 हजार रुपए से अधिक की अदायगी
> शेयरों की खरीदारी के लिए किसी कंपनी को 50 हजार रुपए या इससे अधिक की अदायगी
> बुलियन या ज्वलैरी की खरीदारी के लिए पांच लाख रुपए से अधिक की अदायगी
> पांच लाख रुपए या इससे अधिक कीमत की अचल संपत्ति की खरीद-बिक्री
> बैंक में 50 हजार रुपए से अधिक जमा
> विदेश यात्रा के संबंध में 25 हजार रुपए से अधिक की अदायगी
> बॉन्ड खरीदने के लिए आरबीआई को 50 हजार रुपए या इससे अधिक की अदायगी
> बॉन्ड या डिबेंचर खरीदने के लिए किसी कंपनी या संस्था को 50 हजार रुपए या इससे अधिक की अदायगी
> म्यूचुअल फंड की खरीदारी
क्या करें जब पैन कार्ड गुम हो जाए

पैन कार्ड आज किसी भी वित्तीय लेन-देन का अहम हिस्सा है। इसके अलावा यह किसी व्यक्ति के पहचान पत्र के तौर पर भी काम करता है। ऐसे में यदि किसी का पैन कार्ड गायब हो जाए, तो उसका परेशान होना लाजमी है। लेकिन उसे परेशान होने की बिल्कुल जरूरत नहीं है, क्योंकि पैन कार्ड फिर से बनवाना काफी आसान है। इसके आसान से 4 स्टेप्स हैं।
स्टेप वन
इनकम टैक्स पैन सर्विसेज यूनिट की वेबसाइट पर जाएं। यहां आपको कई विकल्प दिखाई देंगे। इनमें से आप ‘रीप्रिंट ऑफ पैन कॉर्ड’ का विकल्प अपनाना चाहिए। यह उन लोगों के लिए होता है जिन्हें पहले से परमानेंट एकाउंट नंबर (पैन) एलॉट किया जा चुका है, लेकिन उन्हें फिर से पैन कार्ड की जरूरत होती है। इस विकल्प को अपनाने के बाद उस आवेदक को एक नया पैन कार्ड जारी किया जाता है, जिस पर वही नंबर होता है।
स्टेप टू
आपको इस फॉर्म के सभी कॉलम भरने होंगे, लेकिन बायें मार्जिन के बॉक्स में किसी पर भी सही का निशान नहीं लगाना है। उसके बाद आपको 105 रुपए का पेमेंट करना होगा। आप चाहें तो क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड, नेट बैंकिंग, डिमांड ड्राफ्ट या चेक के जरिए यह भुगतान कर सकते हैं। यह सारी प्रक्रियाएं पूरी करने के बाद आप जब यह फॉर्म जमा करेंगे, तो आपके सामने एकनॉलेजमेंट रिसीट आएगा।
स्टेप थ्री
आप इस रिसीट का प्रिंट निकालें। इस पर 2.5 सेमी गुणे 3.5 सेमी आकार का रंगीन फोटोग्राफ चिपकाएं। अपने हस्ताक्षर करें। अगर आप डिमांड ड्राफ्ट या चेक के जरिए भुगतान किया है, तो उसकी प्रति साथ में लगाएं। फिर इसे आईडी प्रूफ, एड्रेस प्रूफ और डेट ऑफ बर्थ के प्रूफ के साथ एनएसडीएल के पुणे स्थित कार्यालय में भेज देना चाहिए।
स्टेप फोर
ऑनलाइन आवेदन के 15 दिनों के भीतर एनएसडीएल के कार्यालय में पहुंच जाना चाहिए। इसके 15 दिनों के भीतर आपको अपना डुप्लीकेट पैन कार्ड मिल जाएगा। आप चाहें तो अपने पैन कार्ड की स्थिति जान सकते हैं। इसके लिए आप NSDLPAN टाइप करें, स्पेस छोड़ कर प्राप्ति सूचना नंबर डालें और उसे 57575 पर भेज दें।

Friday 1 May 2015

B'day: 27 साल की हुईं अनुष्का शर्मा, बचपन में कुछ ऐसी आती थीं नजर

बॉलीवुड एक्ट्रेस अनुष्का शर्मा 27 साल की हो गई हैं। 1 मई 1988 को उनका जन्म अयोध्या, उत्तर प्रदेश में हुआ था। उनके पिता कर्नल अजय कुमार शर्मा एक आर्मी ऑफिसर हैं और मां आशिमा शर्मा होम मेकर। माता-पिता के अलावा अनुष्का के घर में उनका बड़ा भाई भी है, जिसका नाम है कारनेश। अनुष्का ने आर्मी स्कूल से अपनी स्कूलिंग की है और माउंट कारमेल कॉलेज, बेंगलुरु से उन्होंने ग्रेजुएशन किया। बता दें कि अनुष्का का परिवार इन दिनों बेंगलुरु में ही रहता है।
पढ़ाई पूरी करने के बाद अनुष्का मुंबई आ गईं और मॉडलिंग की दुनिया में हाथ पैर मारने लगीं। साल 2007 में उन्हें मॉडलिंग में पहला ब्रेक मिला। इस समय उन्होंने लेक्मे फैशन वीक के दौरान वेंडेल रोड्रिक्स के लिए मॉडलिंग की थी। साल 2008 में उन्होंने बॉलीवुड में एंट्री ली। आदित्य चोपड़ा के निर्देशन में बनी 'रब ने बना दी जोड़ी' उनकी पहली फिल्म थी, जिसमें शाहरुख खान उनके को-स्टार थे। फिल्म सुपरहिट साबित हुई और अनुष्का का करियर चल निकला।
आज वे बॉलीवुड की मोस्ट डिमांडिंग एक्ट्रेसेस में से एक हैं। उन्होंने 'बैंड बाजा बरात' (2010), 'जब तक है जान' (2012) और 'पीके' (2014) जैसी करीब 9 फिल्मों में काम कर चुकी हैं। इसी साल सुपरहिट फिल्म 'एनएच10' से बतौर निर्माता भी उन्होंने बॉलीवुड में एंट्री कर ली है। उनके अभिनय से सजी फिल्में 'बॉम्बे वेलवेट' और 'दिल धड़कने दो' भी इस साल रिलीज होने जा रही हैं।

शिकारी अंग्रेज अफसर ने खोजी थी ये गुफाएं, लाखों लोग आते हैं देखने

महाराष्ट्र स्थापना दिवस विशेष: 1 मई को महाराष्ट्र का स्थापना दिवस है। इस अवसर पर प्रदेश के गौरवशाली इतिहास, संस्कृति, कला, विकास और सुनी-अनसुनी कहानियों से आपको अवगत कराएगा। इस कड़ी में आज हम बता रहे हैं विश्व प्रसिद्ध अजंता एलोरा की गुफाओं के बारे में। कहा जाता है कि 1819 में इन गुफाओं की खोज इस इलाके में शिकार खेलने आए अंग्रेज अफसर ने की थी।
विश्वप्रसिद्ध अंजता-एलोरा की गुफाएं हमेशा से ही जिज्ञासा और पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रही हैं। यहां की सुंदर चित्रकारी व मूर्तियां कलाप्रेमियों के लिए स्वर्ग से कम नहीं हैं। हरियाली की चादर ओढ़ी यहां की चट्टानें अपने भीतर छुपे हुए इतिहास की ये धरोहर अपने उस काल की कहानी खामोशी से कहती नजर आती हैं। वाघोरा नदी यहां की खूबसूरती में और चार चांद लगा देती है। कहा जाता है कि गुफाओं की खोज आर्मी ऑफिसर जॉन स्मिथ व उनके दल ने सन् 1819 में की थी। वे यहां शिकार करने आए थे। तभी उन्हें कतारबद्ध 29 गुफाएं नजर आई। इसके बाद ही ये गुफाएं पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हो गईं।
यहां की सुंदर चित्रकारी व मूर्तियां कलाप्रेमियों और इतिहास-संस्कृति अनमोल हैं। विशालकाय चट्टानें, हरियाली, सुंदर मूर्तियां और इस पर यहां बहने वाली वाघोरा नदी जैसे यहां की खूबसूरती को परिपूर्णता प्रदान करती हैं। गुफाएं महाराष्ट्र के औरंगाबाद शहर के समीप स्थित हैं। गुफाएं बड़ी-बड़ी चट्टानों को काटकर बनाई गई हैं। 29 गुफाएं अजंता में तथा 34 गुफाएं एलोरा में हैं। अब इन गुफाओं को 1983 में वर्ल्ड हेरिटेज की सूची में शामिल की जा चुकी हैं।
अजंता की गुफाएं- औरंगाबाद से 101 किमी दूर उत्तर में अजंता की गुफाएं स्थित हैं। सह्याद्रि की पहाडिय़ों पर स्थित इन 30 गुफाओं में लगभग 5 प्रार्थना भवन और 25 बौद्ध मठ हैं। घोड़े की नाल के आकार में निर्मित ये गुफाओं में 200 ईसा पूर्व से 650 ईसा तक बौद्ध धर्म व संस्कृति का चित्रण है। अजंता की गुफाओं में दीवारों पर खूबसूरत अप्सराओं व राजकुमारियों की विभिन्न मुद्राओं में चित्र उकेरे गए हैं। ये यहां की उत्कृष्ट चित्रकारी व मूर्तिकला के बेहद ही सुंदर नमूने हैं। अजंता की गुफाओं को दो भागों में बांटा जा सकता है। एक भाग में बौद्ध धर्म के हीनयान और दूसरे भाग में महायान संप्रदाय की झलक देखने को मिलती है। हीनयान वाले भाग में 2 चैत्य हॉल (प्रार्थना हॉल) और 4 विहार (बौद्ध भिक्षुओं के रहने के स्थान) हैं तथा महायान वाले भाग में 3 चैत्य हॉल और 11 विहार हैं। ये 19वीं शताब्दी की गुफाएं हैं। जिनमें बौद्ध भिक्षुओं की मूर्तियां व चित्र हैं। हथौड़े और छेनी की सहायता से तराशी गई ये मूर्तियां अपने आप में अप्रतिम सुंदरता समेटे हैं।
एलोरा की गुफाएं- औरंगाबाद से 30 किमी दूर एलोरा की गुफाएं हैं। एलोरा में 34 गुफाएं हैं। ये गुफाएं बेसाल्टिक की पहाड़ी के किनारे-किनारे बनी हुई हैं। इन गुफाओं में हिंदू, जैन और बौद्ध धर्मों के प्रति आस्था दर्शाई गई है। ये गुफाएं 350 से 700 ई. के दौरान अस्तित्व में आईं। दक्षिण की ओर 12 गुफाएं बौद्ध धर्म (महायान संप्रदाय पर आधारित), मध्य की 17 गुफाएं हिंदू धर्म और उत्तर की 5 गुफाएं जैन धर्म पर आधारित हैं। बौद्ध धर्म पर आधारित गुफाओं की मूर्तियों में बुद्ध की जीवनशैली की स्पष्ट झलक देखने को मिलती है। इन्हें देखकर तो यही लगता है कि मानो ध्यान मुद्रा में बैठे बुद्ध आज भी हमें शांति, सद्भाव व एकता का संदेश दे रहे हों।