Monday 24 August 2015

यहां कभी रावण करता था पूजा, दैत्य गुरू ने 8 हजार साल तक की थी तपस्या

सावन के मौके पर यूं तो हर शिव मंदिर में शिवभक्तों की भीड़ दिखाई देती है, लेकिन बदायूं-शाहजहांपुर के बॉर्डर पर स्थित देवकली मंदिर में भक्‍तों की भीड़ का नजारा देखते ही बनता है। पौराणिक महत्व होने के कारण यहां ज्‍यादा शिवभक्त पहुंचते हैं। इस शिव मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहां कई बार शिवभक्त रावण खुद पूजा करने आ चुका है।

कहा जाता है कि सतयुग के चौथे चरण में दैत्य गुरु शुक्राचार्य इस स्थान पर आए थे। उन्होंने संजीवनी विद्या हासिल करने के लिए यहां तपस्या की थी। सालों तक तपस्या करने के बाद भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए। भगवान शिव ने शुक्राचार्य से कहा था कि जब वो यहां पर आठ शिवलिंग की स्थापना करेंगे तभी उन्‍हें संजीवनी विद्या प्राप्त होगी।

शुक्राचार्य ने की 8 हजार साल तक तपस्या
पुजारी अखिलेश गिरी गोस्वामी बताते हैं कि अमूमन किसी भी शिवमंदिर में एक शिवलिंग होता है, लेकिन पटना देवकली मंदिर में शुक्राचार्य ने आठ हजार सालों तक तपस्या कर संजीवनी विद्या हासिल की थी। इन आठ हजार सालों में उन्होंने सर्व, रूद्र, उग्र, भीमा, पशुपति, इशा नकशा, महादेव और राम नाम के आठ शिवलिंगों की स्थापना की। पुजारी कहते हैं कि प्राचीन समय में मंदिर के पास से होकर गंगा निकलती थीं। समय के साथ-साथ वो भी विलुप्त होती चली गई। इसे अगहर भी कहते हैं।
खुदाई में निकले राख से भरे हवनकुंड
सरोवरनुमा रह जाने से इसे शुक्र काशी के नाम से जाना जाने लगा। बताया जाता है कि ये झील चर्म रोगियों के लिए वरदान साबित होती थी। करीब दस साल पहले ये लुप्त हो गई। लगभग तीन साल पहले मंदिर का सौंदर्यीकरण कराने के लिए मंदिर की खुदाई की गई थी। खुदाई में करीब 11 फिट नीचे दो हवनकुंड निकले। इसमें राख भरी हुई थी। उस राख को लेने के लिए भक्‍तों की भीड़ लग गई। बाद में डीएम ने अपनी मौजूदगी में राख को बंटवाया था। यही नहीं खुदाई में मिले ईंटों को जब तोड़ा गया, तो उसमे छोटे-छोटे शिवलिंग मिले थे।
मंदिर पर बुरी नजर डालने वाला हो गया तबाह
पुजारी अखिलेश गिरी गोस्वामी ने जब भी मंदिर पर किसी ने बुरी नजर डाली, उस पर संकट जरूर आया है। उन्होंने साल 1969 के एक वाक्‍ये के बारे में बताया कि उस साल एक दबंग व्यक्ति ने मंदिर में डाका डलवाया था। उस व्‍यक्ति को मंदिर के पुजारी के पिता और दादी ने पहचान लिया था। जांच के लिए आए तत्कालीन दरोगा को जब कामयाबी नहीं मिली, तो उन्होंने मंदिर में अर्जी लगा दी। इसके बाद से ही बदमाश परेशान रहने लगा। हालत ये हो गए कि बदमाश की मां ने अपने बेटे की काली करतूत के बारे में सबको खुद बताया।

बंदरों से घिरा रहता है पूरा मंदिर
इस शिव मंदिर में बंदरों की फौज हमेशा रहती है। कभी-कभी ये भक्तों के लिए आफत भी साबित होते हैं। पुजारी अखिलेश कहते हैं कि करीब दस साल पहले यहां बंदरों की फौज इकठ्ठा हुई थी। तब से लेकर आज तक ये यहां से नहीं गए हैं।

 
इस मंदिर में मुस्लिम भी झुकाते हैं सिर
इस मंदिर में सौहार्द भी देखने को मिलता है। पुजारी के मुताबिक, यहां मुस्लिम भी सिर झुकाते हैं। मंदिर के विस्तार के लिए बहुत समय पहले फकीर मोहम्मद शाह ने जमीन मंदिर के लिए दान की थी। इसी के बाद से मुस्लिम यहां अपने बच्चों का मुंडन भी करवाते हैं।
दो दिन पहले से शुरू हो जाती है तैयारियां
पुजारी अखिलेश ने बताया कि सावन के महीने में यहां भक्तों की काफी भीड़ देखने को मिलती है। महाशिवरात्रि पर दो दिन पहले से ही तैयारियां होना शुरू हो जाती हैं। बेल पत्र, धतूरा, बेर आदि की दुकानें लगने लगती हैं। भक्तों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए पुलिस फोर्स भी तैनात की जाती है। 

भद्रा काल खत्म होने के बाद बांधे राखी, भाइयों को मिलता है शुभ फल

वैदिक काल से श्रावणी पूर्णिमा को भाई-बहन का पावन पर्व रक्षा बंधन मनाया जा रहा है। इस दिन बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती है और भाई उनकी रक्षा करने का वचन देता है। वहीं, रक्षा बंधन के दिन भद्रा काल के बाद ही राखी बांधनी चाहिए। इस बार ये भद्रा काल 1 बजकर 50 मिनट पर खत्म हो रहा है। ऐसे में राखी बांधने के लिए इसके बाद का ही समय शुभ है।
पुराणों के अनुसार, सबसे पहले देवगुरु बृहस्पति ने इंद्र को रक्षा सूत्र बांधा था। इसके बाद हर साल इंद्र को इंद्राणी भी रक्षा सूत्र बांधने लगीं। तब से लेकर आज तक ये त्यौहार मनाया जाता है। तभी से ये त्यौहार आज भी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। डॉ. शक्तिधर शर्मा के अनुसार, भद्रा का विचार रक्षा बंधन के समय अवश्य करना चाहिए।
भद्रा काल खत्म होने के बाद बांधे राखी
रक्षा बंधन के दिन भद्रा काल के बाद ही राखी बांधना शुभ होगा। इस बार भद्रा काल 29 अगस्त को 1 बजकर 50 मिनट पर समाप्त हो रहा है। ऐसे में इसके बाद ही भाई को राखी बांधना बेहतर होगा। डॉ. पंडित शक्तिधर शर्मा के अनुसार 'भद्रा' यमराज की बहन है और भद्रा के मुखकाल में भाई की रक्षा के लिए किया गया कार्य शुभ फल प्रदान नहीं करेगा। अच्छा यही होगा कि पुच्छ काल अथवा भद्रा रहित काल में रक्षा बंधन का पर्व मनाया जाए।
पति-पत्नी के लिए था पर्व
डॉ. पंडित शक्तिधर शर्मा (शास्त्री) के मुताबिक, शुरुआत में ये त्यौहार पति-पत्नी के पवित्र प्रेम का बंधन था। युद्ध में जाते समय शची ने इंद्र को और प्रमिला (सुलोचना) ने मेघनाद को रक्षासूत्र बांधा था। मेघनाद की मृत्यु के बाद ये भाई-बहन का पर्व बन गया। ऐसा माना जाता है कि प्रमिला ने भद्रा के मुखकाल में राखी बांधी थी। इस वजह से इसका प्रभाव नहीं हुआ और मेघनाद युद्ध में मारा गया। शुरुआत में राजा बलि को उनकी बहन लक्ष्मी ने रक्षा सूत्र बांधकर विष्णु से मुक्त कराया था।
कर्क राशि में होता है सूर्य
श्रावणी पर्व के दिन गृहस्थी और वानप्रस्थी दोनों को इस दिन किए जाने वाले उपाकर्म और श्रावणी कर्म करने चाहिए। मान्यता है कि इस दिन गोबर, मिट्टी, मुल्तानी मिट्टी, यज्ञ भस्म आदि का लेप करके स्नान करना चाहिए। इससे त्वचा के रोगों का विनाश होता है। डॉ. पंडित शक्तिधर शर्मा ने बताया कि कर्क राशि में सूर्य होने के कारण आसमान में बादल छाए रहते हैं। इस वजह से उसकी किरणें पृथ्वी पर नहीं पहुंचती, जिससे कई तरह की बीमारियां और संक्रमण होने का खतरा रहता है। इनसे बचने के लिए ही श्रावणी कर्म किए जाते हैं।
श्रावणी कर्म करने से खत्म होते हैं रोग
डॉ. शक्तिधर शर्मा कहते हैं कि सनातन धर्म में जितने पर्व हैं, वे इंसान बेहतर स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए है। साथ ही एक-दूसरे में परस्पर प्रेम बनाए रखने के लिए आयोजित किए जाते हैं। इसलिए भविष्य पुराण में बताया गया है कि सभी रोगों का विनाशक है श्रावणी कर्म।
सावन के महीने में किए जाते हैं ये कर्म
1. तत्तद्स्नान
2. सूर्य अराधना
3. प्राणायाम
4. अग्निहोम
5. ब्रह्मर्षि पूजन

भारत के इस आइलैंड पर जाने वाले नहीं लौट पाते हैं वापस



इस आधुनिक जीवन में आज भी कुछ लोग ऐसे हैं जिनके पास न बिजली है, न सड़क है, न इंटरनेट। यहां तक की इनका किसी सिविलाइजेशन से कोई ताल्लुक भी नहीं है। भारत के अधिकार क्षेत्र में आने वाला सेंटिनल आइलैंड एक ऐसी ही जगह है। यहां रहने वाली सेंटिनलीज जनजाति का आधुनिक मानव सभ्यता से कोई लेना-देना नहीं है। बहुत बार इसको आधुनिक समाज से जोड़ने का प्रयास किया गया, लेकिन इस जनजाति के लोग इतने ज्यादा आक्रामक हैं कि वे किसी को अपने पास आने ही नहीं देते।
कुछ मामलों में इक्का-दुक्का लोगों ने उन तक पहुंचने का प्रयास किया तो इन लोगों ने उन्हें मार दिया। एक भागा हुआ कैदी गलती से इस आइलैंड पर पहुंचा तो उसे भी मार दिया। सन् 1981 में एक भटकी हुई नौका इस आइलैंड के करीब पहुंची थी। उसके मेंबर्स ने बताया कि कुछ लोग किनारों पर तीर-कमान और भाले लेकर खड़े थे। हमारी किस्मत अच्छी थी कि हम वहां से निकलने में सफल रहे।
2004 में आए भूकंप और सुनामी के बाद भारत सरकार ने इस आइलैंड की खबर लेने के लिए सेना का एक हेलिकॉप्टर भेजा था। लेकिन यहां के लोगों ने उस पर भी हमला कर दिया। हवाई तस्वीरों से यह साफ होता है कि ये जनजाति खेती नहीं करती, क्योंकि इस पूरे इलाके में अब भी घने जंगल हैं। इससे यह निष्कर्ष निकाला गया कि यह जनजाति शिकार पर निर्भर है। बहुत से लोगों का मानना है कि इस जनजाति तक पहुंच बनाई जानी चाहिए। वहीं, कुछ मानते हैं कि उन्हें अपने हाल पर छोड़ देना ही ठीक है।

वर्ल्ड के 10 लंबे रेलवे प्लैटफॉर्म्स में इंडिया के 6, विकीपीडिया ने जारी की लिस्ट

दुनिया की टॉप वेबसाइट्स में शुमार विकीपीडिया ने वर्ल्ड के टॉप-10 प्लैटफॉर्म्स की लिस्ट जारी की है। इसमें इंडिया के 6 शहरों के प्लैटफॉर्म्स को जगह मिली है। पहले नंबर पर जहां गोरखपुर का रेलवे स्टेशन है तो वहीं दूसरे नंबर पर केरल के कोलम स्टेशन को शामिल किया गया है। तीसरे नंबर पर भी इंडिया का ही कब्जा है। पश्चिम बंगाल के खड़गपुर स्टेशन को विकीपीडिया ने तीसरे पायदान पर रखा है। पांचवें नंबर पर छत्तीसगढ़ का बिलासपुर स्टेशन है। वहीं, सातवें नंबर पर झांसी रेलवे प्लैटफॉर्म को चुना गया है और दसवें नंबर पर बिहार का सोनपुर रेलवे प्लैटफॉर्म है।
टॉप-10 लिस्ट में शुमार इंडिया के रेलवे प्लैटफॉर्म्स
रेलवे प्लैटफॉर्म लंबाई
गोरखपुर 4483 फीट ( 1366.33 मीटर)
कोलम 3873 फीट (1180.5 मीटर)
खड़गपुर 3518 फीट (1072.5 मीटर)
बिलासपुर 2631 फीट ( 802 मीटर)
झांसी 2526 फीट (770 मीटर)
सोनपुर 2421 फीट (738 मीटर)

यूएस, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया के भी प्लैटफॉर्म्स शामिल
विकीपीडिया द्वारा जारी की गई लिस्ट में इंडिया के इन 6 लंबे रेलवे प्लैटफॉर्म्स के अलावा चार प्लैटफॉर्म्स यूएस, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया के हैं। यूएस के शिकागो का स्ट्रेट स्ट्रीट सब-वे रेलवे प्लैटफॉर्म चौथे नंबर पर है। इसकी लंबाई 3501 फीट (1067 मीटर) है। वहीं छठे नंबर पर ब्रिटेन के सेरेटन का शटल टर्मिनल फोकस्टोन है। इसकी लंबाई 2595 फीट ( 791 मीटर) है। इसे यूरोप का सबसे लंबा स्टेशन घोषित किया जा चुका है। आठवें नंबर पर ऑस्ट्रेलिया के पर्थ का ईस्ट पर्थ रेलवे स्टेशन है। ये 2526 फीट (770 मीटर) लंबा है। इसे ऑस्ट्रेलिया का सबसे लंबा स्टेशन माना जाता है। वहीं नौवें नंबर पर वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया का कैलगूर्ली रेलवे प्लैटफॉर्म है। ये 2493 फीट (760 मीटर) लंबा है।