Monday, 4 May 2015

ये है दुनिया का सबसे बड़ा बौद्ध स्थल, 2000 साल पहले चलते थे जहाज

रायपुर राजधानी से 85 किलोमीटर की दूरी पर स्थित सिरपुर में दुनिया का अब तक मिला सबसे बड़ा बौद्ध स्थल है। ईसा पूर्व छठवीं शताब्दी में चीनी यात्री व्हेनसांग सिरपुर आए थे। उन्होंने अपने यात्रा वृत्तांत में सिरपुर का वर्णन करते हुए लिखा है, 'दक्षिण कोसल की राजधानी में सौ संघाराम थे। वहां का राजा हिंदू था और उस राज्य में सभी धर्मों का समादर होता था।' यहां बंदरगाह भी मिले हैं जो हजारों साल पहले यहां जहाज चलने की बात को प्रमाणित करते हैं।
सिरपुर में अब तक 10 बौद्ध विहार और लगभग 10000 बौद्ध भिक्षुओं के अध्ययन के पुख्ता प्रमाण मिल चुके हैं। इसके अलावा यहां कई बौद्ध स्तूप और बौद्ध विद्वान नागार्जुन के यहां आने के प्रमाण मिले हैं। यह स्थल गया के बौद्ध स्थल से भी बड़ा है। चीनी यात्री व्हेनसांग के यात्रा वृत्तांत के आधार पर जब इस स्थान की खुदाई की गई तो वे सभी विशेषताएं पाई गईं जिनका उल्लेख व्हेनसांग ने किया है।
सिरपुर में भगवान बुद्ध के आने के भी प्रमाण मिले हैं, प्राचीन समय में सिरपुर एक अतिविकसित और समृद्ध राजधानी थी, यहां से विदेशों के साथ व्यापार किया जाता था। यहां सोने-चांदी के गहने बनाने के सांचे, अस्पताल, बंदरगाह आदि के अवशेष मिले हैं।
आधुनिक और विकसित राजधानी
व्हेनसांग ने अपने यात्रा वृत्तांत में एक व्यवस्थित और अतिविकसित राजधानी का जिक्र किया है जहां से विदेशों के साथ व्यापार किया जाता था। उन्होंने लिखा है कि यहां एक पोरबंदर भी था जहां से जहाज के माध्यम से सामान निर्यात किए जाते थे। महानदी पर नदी बंदरगाह के अवशेष मिले हैं, यहां से बंदर-ए-मुबारक नाम की सील भी मिली है। सिरपुर की खुदाई में धातु गलाने के उपकरण, सोने के गहने बनाने की डाई से लेकर तलघर में बने अन्नगार भी मिले हैं।
सिरपुर में ढाई हजार लोगों के लिए खाना बनाने के लिए राजा के द्वारा 100 कढ़ाई दान किए जाने के उल्लेख वाले शिलालेख भी मिले हैं। इसके अलावा सिरपुर में 10 दस बिस्तरों वाला आयुर्वेदिक अस्पताल मिला है जहां से शल्य क्रिया के औजार और धातु की छड़ लगी हुई हड्डी भी प्राप्त हुई है।
बुद्ध ने बिताया था चौमासा
सिरपुर में भगवान तथागत बुद्ध के आने के प्रमाण मिले हैं, बुद्ध ने यहां चौमासा बिताया था। उनके द्वारा गया से लाया गया वटवृक्ष आज भी सिरपुर में है।
उनके सिरपुर आने की याद को चिरस्थाई बनाने के लिए ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में सम्राट अशोक ने यहां बौद्ध स्तूप का निर्माण करवाया गया था। उस स्तूप के अधिष्ठान को बाद में ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में बड़ा किया गया है, इसके स्तूपों में यहां आने वाले बौद्ध भिक्षुओं के नाम लिखे हुए हैं।
 
10 बौद्ध विहार मिले हैं सिरपुर में
छत्तीसगढ़ के पुरातात्विक सलाहकार अरुण कुमार शर्मा ने खुदाई के दौरान व्हेनसांग के यात्राा वृतांत में वर्णित सभी चीजें पाई हैं। शर्मा के अनुसार नालंदा में चार बौद्ध विहार मिले हैं, जबकि सिरपुर में दस बौद्ध विहार पाए गए। इन विहारों में छह-छह फिट की बुद्ध की मूर्तियां मिली हैं। सिरपुर के बौद्ध विहार दो मंजिलें हैं जबकि नालंदा के विहार एक मंजिला ही हैं। यहां जातक कथाओं और पंचतंत्र की चित्रकथाओं का अंकन किया गया है। यहां बुद्ध के जीवन पर आधारित कई ऐसे चित्रों का अंकन है जिनके बारे अब तक कोई जानकारी नहीं मिल सकी है।
रावण के ससुर का वास्तु शास्त्र
सिरपुर में महानदी ईशान कोण में मुड़ती है। रावण के ससुर मयदानव एक वास्तुविद थे और उनके अनुसार जिस स्थान पर नदी ईशान कोण में मुड़ती है वहां ईश्वर का वास होता है। यही कारण है कि भारत के ज्यादातर धार्मिक तीर्थ ऐसे स्थानों पर बसे हैं। उदाहरण के लिए बनारस में गंगा नदी 18 डिग्री पर, अयोध्या में सरयू नदी पांच डिग्री पर मुडी है। सिरपुर में महानदी 21 डिग्री के ईशान कोण पर मुड़ती है।
सिरपुर की नगर संरचना एवं मंदिरों की बनावट मयामत (मय दानव) के वास्तुशास्त्र के अनुसार पाई गई है।
भूकंप और बाढ़ से तबाह हुआ था सिरपुर
पिछले दस सालों से सिरपुर की खुदाई में लगे अरुण शर्मा के अनुसार सिरपुर का पतन वहां आए भूकंप और बाढ़ के कारण हुआ था। सातवीं शताब्दी के पश्चात इस क्षेत्र में जबरदस्त भूकंप आया था जिसके कारण पूरा सिरपुर डोलने लगा था।
इसके साथ ही महानदी का पानी महीनों तक नगर में भरा रहा।उन्होंने कहा कि यही भूकंप और बाढ़ सिरपुर के विनाश का कारण बना।
बाढ़ और भूकंप के प्रमाण के रूप में सुरंग टीले के मंदिरों में सीढ़ियों के टेढ़े होने और मंदिरों व भवनों की दीवारों पर पानी के रूकने के साथ बाढ़ के महीन रेत युक्त मिट्टी दीवारों के एक निश्चित दूरी पर जमने के निशान मिलते हैं।
सभी धर्मों का समान आदर होता था
सिरपुर में बौद्ध विहारों के अलावा बड़ी संख्या में शिव मंदिर भी मिले हैं। इन शिव मंदिरों की विशेषता यह है कि इनको राजाओं के अलावा विभिन्न समाजों के द्वारा स्थापित किए गए है। विभिन्न समाजों द्वारा बनाए गए इन शिव मंदिरों में समाज के प्रतीक चिन्ह, मंदिरों की सीढियों पर खुदे हुए हैं।
व्हेनसांग ने अपने यात्रा वृत्तांत में एक ऐसी राजधानी का वर्णन किया है जहां सभी धर्मों का समान आदर किया जाता था।

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