हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार ज्येष्ठ मास में नारद जयंती मनाई जाती है।
इस बार नारद जयंती का पर्व 6 मई, बुधवार को है। शास्त्रों के अनुसार नारद
मुनि, ब्रह्मा के सात मानस पुत्रों में से एक हैं। उन्होंने कठिन तपस्या से
देवर्षि पद प्राप्त किया है। वे भगवान विष्णु के अनन्य भक्तों में से एक
माने जाते हैं। देवर्षि नारद धर्म के प्रचार तथा लोक कल्याण के लिए हमेशा
प्रयत्नशील रहते हैं। शास्त्रों में देवर्षि नारद को भगवान का मन भी कहा
गया है।
ग्रंथों में देवर्षि नारद को भगवान विष्णु का अवतार भी बताया गया है। श्रीमद्भागवत गीता के दशम अध्याय के 26वें श्लोक में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने इनकी महत्ता को स्वीकार करते हुए कहा है- देवर्षीणाम्चनारद:। अर्थात देवर्षियों में मैं नारद हूं। महाभारत के सभा पर्व के पांचवें अध्याय में नारद जी के व्यक्तित्व का परिचय इस प्रकार दिया गया है- देवर्षि नारद वेद और उपनिषदों के मर्मज्ञ, देवताओं के पूज्य, इतिहास व पुराणों के विशेषज्ञ, पूर्व कल्पों (अतीत) की बातों को जानने वाले, शिक्षा, व्याकरण, आयुर्वेद, ज्योतिष के प्रकाण्ड विद्वान, संगीत-विशारद, प्रभावशाली वक्ता, मेधावी, नीतिज्ञ, कवि, महापंडि़त, बृहस्पति जैसे महा विद्वानों की शंकाओं का समाधान करने वाले और सर्वत्र गति वाले हैं। 18 महापुराणों में एक नारदोक्त पुराण; बृहन्नारदीय पुराण के नाम से प्रख्यात है।
ग्रंथों में देवर्षि नारद को भगवान विष्णु का अवतार भी बताया गया है। श्रीमद्भागवत गीता के दशम अध्याय के 26वें श्लोक में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने इनकी महत्ता को स्वीकार करते हुए कहा है- देवर्षीणाम्चनारद:। अर्थात देवर्षियों में मैं नारद हूं। महाभारत के सभा पर्व के पांचवें अध्याय में नारद जी के व्यक्तित्व का परिचय इस प्रकार दिया गया है- देवर्षि नारद वेद और उपनिषदों के मर्मज्ञ, देवताओं के पूज्य, इतिहास व पुराणों के विशेषज्ञ, पूर्व कल्पों (अतीत) की बातों को जानने वाले, शिक्षा, व्याकरण, आयुर्वेद, ज्योतिष के प्रकाण्ड विद्वान, संगीत-विशारद, प्रभावशाली वक्ता, मेधावी, नीतिज्ञ, कवि, महापंडि़त, बृहस्पति जैसे महा विद्वानों की शंकाओं का समाधान करने वाले और सर्वत्र गति वाले हैं। 18 महापुराणों में एक नारदोक्त पुराण; बृहन्नारदीय पुराण के नाम से प्रख्यात है।
नारद मुनि के श्राप के कारण भगवान विष्णु को सहना पड़ा स्त्री वियोग
देवर्षि नारद को एक बार इस बात का घमंड हो गया कि कामदेव भी उनकी
तपस्या और ब्रह्मचर्य को भंग नहीं कर सके। नारदजी ने यह बात शिवजी को बताई।
देवर्षि के शब्दों में अहंकार भर चुका था, वे स्वयं शिवजी के सामने अपने
अभिमान को प्रदर्शित कर रहे थे। शिवजी यह समझ चुके थे कि नारद अभिमानी हो
गए हैं। भोलेनाथ ने नारद से कहा कि भगवान श्रीहरि के समक्ष अपना अभिमान इस
प्रकार प्रदर्शित मत करना। इसके बाद नारद भगवान विष्णु के समीप पहुंच गए और
शिवजी के समझाने के बाद भी उन्होंने श्रीहरि के सामने अपना घमंड प्रदर्शित
किया।
तब श्रीहरि ने सोचा कि नारद का घमंड तोडना होगा, यह शुभ लक्षण नहीं
है। इसके बाद नारद विष्णुजी को प्रणाम कर आगे बढ़े गए। रास्ते में उन्हें
एक बहुत ही सुंदर नगर दिखाई दिया, जहां किसी राजकुमारी के स्वयंवर का आयोजन
किया जा रहा था। नारद भी वहां पहुंच गए और राजकुमारी को देखते ही मोहित हो
गए। यह सब भगवान श्रीहरि की माया ही थी। राजकुमारी का रूप और सौंदर्य नारद
के तप को भंग कर चुका था। इस कारण उन्होंने राजकुमारी के स्वयंवर में
हिस्सा लेने का मन बनाया।
नारद भगवान विष्णु के पास गए और कहा कि आप अपना सुंदर रूप मुझे दे दीजिए, जिससे कि वह राजकुमारी स्वयंवर में मेरा ही वरण करे। भगवान ने ऐसा ही किया, लेकिन जब नारद मुनि स्वयंवर में गए तो उनका मुख वानर के समान हो गया। उस स्वयंवर में भगवान शिव के दो गण भी थे, वे यह सभी बातें जानते थे और ब्राह्मण का वेष बनाकर यह सब देख रहे थे। जब राजकुमारी अपने वर का चयन करने स्वयंवर में आई तो वानर के मुख वाले नारदजी को देखकर वह बहुत क्रोधित हुई। उसी समय भगवान विष्णु एक राजा का रूप धारण कर वहां आ गए।
सुंदर रूप देखकर राजकुमारी ने उनका वरण कर लिया। यह देखकर शिवजी के गण वानर के समान मुख वाले नारदजी की हंसी उड़ाने लगे और कहा कि पहले अपना मुख दर्पण में देखिए। जब नारदजी ने अपने चेहरा वानर के समान देखा तो वह बहुत क्रोधित हुए। नारद मुनि उसी समय उन शिवगणों को राक्षस योनी में जन्म लेने का श्राप दे दिया। शिवगणों को श्राप देने के बाद नारदजी भगवान विष्णु के पास गए और क्रोधित होकर उन्हें बहुत भला-बुरा कहने लगे। माया से मोहित होकर नारद मुनि ने श्रीहरि को श्राप दिया कि जिस तरह आज मैं स्त्री के लिए व्याकुल हो रहा हूं, उसी प्रकार मनुष्य जन्म लेकर आपको भी स्त्री वियोग सहना पड़ेगा।
उस समय वानर ही तुम्हारी सहायता करेंगे। भगवान विष्णु ने कहा- ऐसा ही हो और नारद मुनि को माया से मुक्त कर दिया। तब नारद मुनि को अपने कटु वचन और व्यवहार पर बहुत ग्लानि हुई और उन्होंने भगवान श्रीहरि से क्षमा मांगी। भगवान श्रीहरि ने कहा कि ये सब मेरी ही इच्छा से हुआ है अत: तुम शोक न करो। इस प्रकार नारद मुनि को ढाढ़स बंधा कर श्रीहरि वहां से चले गए। उसी समय वहां भगवान शिव के गण आए, जिन्हें नारद मुनि ने श्राप दिया था।
उन्होंने नारद मुनि ने क्षमा मांगी। तब नारद मुनि ने कहा कि तुम दोनों राक्षस योनी में जन्म लेकर सारे विश्व को जीत लोगे, तब भगवान विष्णु मनुष्य रूप में तुम्हारा वध करेंगे और तुम्हारा कल्याण होगा। नारद मुनि के इन्हीं श्रापों के कारण उन शिव गणों ने रावण व कुंभकर्ण के रूप में जन्म लिया और श्रीराम के रूप में अवतार लेकर भगवान विष्णु को स्त्री वियोग सहना पड़ा।
नारद भगवान विष्णु के पास गए और कहा कि आप अपना सुंदर रूप मुझे दे दीजिए, जिससे कि वह राजकुमारी स्वयंवर में मेरा ही वरण करे। भगवान ने ऐसा ही किया, लेकिन जब नारद मुनि स्वयंवर में गए तो उनका मुख वानर के समान हो गया। उस स्वयंवर में भगवान शिव के दो गण भी थे, वे यह सभी बातें जानते थे और ब्राह्मण का वेष बनाकर यह सब देख रहे थे। जब राजकुमारी अपने वर का चयन करने स्वयंवर में आई तो वानर के मुख वाले नारदजी को देखकर वह बहुत क्रोधित हुई। उसी समय भगवान विष्णु एक राजा का रूप धारण कर वहां आ गए।
सुंदर रूप देखकर राजकुमारी ने उनका वरण कर लिया। यह देखकर शिवजी के गण वानर के समान मुख वाले नारदजी की हंसी उड़ाने लगे और कहा कि पहले अपना मुख दर्पण में देखिए। जब नारदजी ने अपने चेहरा वानर के समान देखा तो वह बहुत क्रोधित हुए। नारद मुनि उसी समय उन शिवगणों को राक्षस योनी में जन्म लेने का श्राप दे दिया। शिवगणों को श्राप देने के बाद नारदजी भगवान विष्णु के पास गए और क्रोधित होकर उन्हें बहुत भला-बुरा कहने लगे। माया से मोहित होकर नारद मुनि ने श्रीहरि को श्राप दिया कि जिस तरह आज मैं स्त्री के लिए व्याकुल हो रहा हूं, उसी प्रकार मनुष्य जन्म लेकर आपको भी स्त्री वियोग सहना पड़ेगा।
उस समय वानर ही तुम्हारी सहायता करेंगे। भगवान विष्णु ने कहा- ऐसा ही हो और नारद मुनि को माया से मुक्त कर दिया। तब नारद मुनि को अपने कटु वचन और व्यवहार पर बहुत ग्लानि हुई और उन्होंने भगवान श्रीहरि से क्षमा मांगी। भगवान श्रीहरि ने कहा कि ये सब मेरी ही इच्छा से हुआ है अत: तुम शोक न करो। इस प्रकार नारद मुनि को ढाढ़स बंधा कर श्रीहरि वहां से चले गए। उसी समय वहां भगवान शिव के गण आए, जिन्हें नारद मुनि ने श्राप दिया था।
उन्होंने नारद मुनि ने क्षमा मांगी। तब नारद मुनि ने कहा कि तुम दोनों राक्षस योनी में जन्म लेकर सारे विश्व को जीत लोगे, तब भगवान विष्णु मनुष्य रूप में तुम्हारा वध करेंगे और तुम्हारा कल्याण होगा। नारद मुनि के इन्हीं श्रापों के कारण उन शिव गणों ने रावण व कुंभकर्ण के रूप में जन्म लिया और श्रीराम के रूप में अवतार लेकर भगवान विष्णु को स्त्री वियोग सहना पड़ा।
नारद मुनि ने ही बताया था कैसा होगा पार्वती का पति
सती के रूप में आत्मदाह करने के बाद माता शक्ति ने पर्वतराज हिमालय के
यहां पार्वती के रूप में जन्म लिया। जब से पार्वती हिमाचल के घर में
जन्मी, तब से उनके घर में सुख और सम्पतियां छा गई। पार्वती जी के आने से
पर्वत शोभायमान हो गया। जब नारदजी ने ये सब समाचार सुने तो वे हिमाचल
पहुंचे। वहां पहुंचकर वे हिमाचल से मिले और हंसकर बोले तुम्हारी कन्या
गुणों की खान है। यह स्वभाव से ही सुन्दर, सुशील और शांत है। परंतु इसका
पति गुणहीन, मानहीन, माता-पिता विहीन, उदासीन, लापरवाह, योगी, जटाधारी और
सांपों को गले में धारण करने वाला होगा। यह बात सुनकर पार्वती के माता-पिता
चिंतित हो गए। उन्होंने देवर्षि से इसका उपाय पूछा।
तब नारद जी बोले जो दोष मैंने बताए मेरे अनुमान से वे सभी शिव में है।
अगर शिवजी के साथ विवाह हो जाए तो ये दोष गुण के समान ही हो जाएंगे। यदि
तुम्हारी कन्या तप करे तो शिवजी ही इसकी किस्मत बदल सकते हैं। तब यह सुनकर
पार्वतीजी की मां विचलित हो गई। उन्होंने पार्वती के पिता से कहा आप अनुकूल
घर में ही अपनी पुत्री का विवाह कीजिएगा क्योंकि पार्वती मुझे प्राणों से
अधिक प्रिय है। पार्वती को देखकर मैना का गला भर आया। पार्वती ने अपनी मां
से कहा मां मुझे एक ब्राह्मण ने सपने में कहा है कि जो नारदजी ने कहा है तू
उसे सत्य समझकर जाकर तप कर। यह तप तेरे लिए दुखों का नाश करने वाला है।
उसके बाद माता-पिता को बड़ी खुशी से समझाकर पार्वती तप करने गई।