Saturday, 26 September 2015

महाराष्ट्र के 8 मंदिर, जहां गणेश की मूर्तियां खुद प्रकट हुईं

भगवान गणेश हिन्दू धर्म में प्रथम पूजनीय भगवान माने जाते हैं। भगवान गणेश को रिद्धि-सिद्धि और बुद्धि का देवता कहा जाता है। महाराष्ट्र के सबसे बड़े उत्सवों में गणेश उत्सव भी शामिल है। हर साल गणेश चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक यह उत्सव मनाया जाता है। महाराष्ट्र की संस्कृति में गणपति का विशेष स्थान है। इस राज्य में भगवान गणेश के कई प्रसिद्ध मंदिर हैं, जिनमें गणेशजी के अष्टविनायक मंदिर भी शामिल हैं। जिस प्रकार भगवान शिव के12 ज्योतिर्लिंगों का विशेष महत्व है, ठीक उसी प्रकार गणपति उपासना के लिए महाराष्ट्र के अष्टविनायक का विशेष महत्व है।
इन मंदिरों के संबंध में मान्याता है कि यहां विराजित गणेश प्रतिमाएं खुद प्रकट हुई हैं। ये मूर्तियां मानव निर्मित न होकर प्राकृतिक हैं। अष्टविनायक के ये सभी आठ मंदिर बहुत पुराने हैं। इन सभी मंदिरों का उल्लेख कई ग्रंथों में में भी मिलता है। इन आठ गणपति धामों की यात्रा अष्टविनायक तीर्थ यात्रा के नाम से जानी जाती है। इन प्रतिमाओं के प्राप्त होने के क्रम के अनुसार ही अष्टविनायक की यात्रा भी की जाती है। मान्यता है कि इन मंदिरों के दर्शन क्रम अनुसार करना चाहिए। जिन लोगों के लिए अष्टविनायक की यात्रा करना संभव नहीं है, वे इनके चित्रों के दर्शन करके भी पुण्य लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
1. श्री मयूरेश्वर मंदिर
अष्ट विनायक में पहला गणेश मंदिर है श्री मयूरेश्वर मंदिर। गणपतिजी का यह मंदिर पुणे से 80 किलोमीटर दूरी पर मोरगांव नाम की जगह पर है। मयूरेश्वर मंदिर के चारों कोनों में मीनारें हैं और लंबे पत्थरों की दीवारें हैं। यहां चार द्वार हैं। ये चारों दरवाजे चारों युग सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग के प्रतीक हैं। इस मंदिर के द्वार पर शिवजी के वाहन नंदी बैल की मूर्ति स्थापित है, इसका मुंह भगवान गणेश की मूर्ति की ओर है। नंदी की मूर्ति के संबंध में यह मान्यता प्रचलित है कि प्राचीन काल में शिवजी और नंदी इस मंदिर क्षेत्र में विश्राम के लिए रुके थे, लेकिन बाद में नंदी ने यहां से जाने के लिए मना कर दिया। तभी से नंदी यहीं पर हैं। नंदी और मूषक (चूहा) दोनों ही मंदिर के रक्षक के रूप में रहते हैं। मंदिर में गणेशजी बैठी मुद्रा में विराजमान हैं तथा उनकी सूंड बाएं हाथ की ओर है, उनकी चार भुजाएं और तीन नेत्र हैं।
2. सिद्धिविनायक मंदिर
अष्ट विनायक में दूसरा गणेश मंदिर है सिद्धिविनायक मंदिर। यह मंदिर पुणे से करीब 200 किमी दूरी पर है। इस मंदिर के पास ही भीम नदी है। यह मंदिर पुणे के सबसे पुराने मंदिरों में से एक माना जाता है। सिद्धटेक में सिद्धिविनायक मंदिर बहुत ही सिद्ध स्थान है। मान्यता है कि यहीं पर भगवान विष्णु ने सिद्धियां हासिल की थी। सिद्धिविनायक मंदिर एक पहाड़ की चोटी पर बना हुआ है। जिसका मुख्य द्वार उत्तर दिशा की ओर है। मंदिर की परिक्रमा के लिए पहाड़ी की यात्रा करनी होती है। यहां गणेशजी की मूर्ति 3 फीट ऊंची और ढाई फीट चौड़ी है। मूर्ति का मुंह उत्तर दिशा की ओर है। भगवान गणेश की सूंड सीधे हाथ की ओर है।
 
3. श्री बल्लालेश्वर मंदिर
अष्टविनायक में तीसरा मंदिर श्री बल्लालेश्वर मंदिर है। यह मंदिर मुंबई-पुणे हाइवे पर पाली से टोयन में और गोवा राजमार्ग पर नागोथाने से पहले 11किलोमीटर दूरी पर है। इस मंदिर का नाम गणेशजी के भक्त बल्लाल के नाम पर पड़ा है। माना जाता है कि पुराने समय में बल्लाल नाम का एक लड़का था, जो गणेशजी का परमभक्त था। एक दिन उसने पाली गांव में विशेष पूजा का आयोजन किया। पूजन कई दिनों तक चल रहा था, पूजा में शामिल कई बच्चे घर लौटकर नहीं गए और वहीं बैठे रहे। इस कारण उन बच्चों के माता-पिता ने बल्लाल को पीटा और गणेशजी की प्रतिमा के साथ उसे भी जंगल में फेंक दिया। गंभीर हालत में भी बल्लाल गणेशजी के मंत्रों का जप करता रहा। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर गणेशजी ने उसे दर्शन दिए। तब बल्लाल ने गणेशजी से वरदान मांगा कि अब वे इसी स्थान पर निवास करें। गणपति ने उसकी प्रार्थना सुन ली। तभी से गणेशजी बल्लालेश्वर नाम से यहां विराजित हो गए।
4. श्री वरदविनायक मंदिर
अष्ट विनायक में चौथा मंदिर है श्री वरदविनायक मंदिर। यह मंदिर महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के कोल्हापुर क्षेत्र में है। महाड़ नाम के एक सुन्दर पर्वतीय गांव में श्री वरदविनायक मंदिर है। यहां प्रचलित मान्यता के अनुसार वरदविनायक भक्तों की सभी कामनाओं को पूरा करते है। इस मंदिर में नंददीप नाम का एक दीपक है, जो कई वर्षों में जल रहा है। कहा जाता है कि वरदविनायक का नाम लेने मात्र से ही सभी मनोकामनां पूर्ण हो सकती हैं।
5. चिंतामणि गणपति मंदिर
अष्टविनायक में पांचवां मंदिर है चिंतामणि गणपति। यह मंदिर पुणे जिले के हवेली क्षेत्र में है। मंदिर के पास ही तीन नदियों भीम, मुला और मुथा का संगम है। इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि यदि किसी भक्त का मन बहुत विचलित है और जीवन में दुखों का सामना करना पड़ रहा है तो इस मंदिर में आने पर उसकी सभी समस्याएं दूर हो सकती हैं। ब्रहमाजी ने अपने विचलित मन को वश में करने के लिए इसी स्थान पर तपस्या की थी।
6. श्री गिरजात्मज गणपति मंदिर
अष्टविनायक मंदिरों में छठा मंदिर है श्री गिरजात्मज। यह मंदिर पुणे-नासिक राजमार्ग पर पुणे से करीब 90 किलोमीटर दूरी पर है। क्षेत्र के नारायणगांव से इस मंदिर की दूरी 12 किलोमीटर है। गिरजात्मज का अर्थ है गिरिजा यानी माता पार्वती के पुत्र गणेश। यह मंदिर एक पहाड़ पर बौद्ध गुफाओं के स्थान पर बनाया गया है। यहां लेनयादरी पहाड़ पर 18 बौद्ध गुफाएं हैं और इनमें से 8वीं गुफा में गिरजात्मज विनायक मंदिर है। इन गुफाओं को गणेश गुफा भी कहा जाता है। मंदिर तक पहुंचने के लिए करीब 300 सीढ़ियां चढ़नी होती हैं। यह पूरा मंदिर ही एक बड़े पत्थर को काटकर बनाया गया है।
7. विघ्नेश्वर गणपति मंदिर
अष्टविनायक में सातवें स्थान पर है विघ्नेश्वर गणपति। यह मंदिर पुणे के ओझर जिले में जूनर क्षेत्र में है। यह पुणे-नासिक रोड पर नारायणगावं से जूनर या ओजर होकर करीब 85 किलोमीटर दूरी पर है। कथाओं के अनुसार विघनासुर नामक एक असुर था जो संतों को परेशान करता रहता था। भगवान गणेश ने इसी क्षेत्र में उस असुर का वध किया और सभी को कष्टों से मुक्ति दिलाई थी। तभी से यह मंदिर विघ्नेश्वर, विघ्नहर्ता और विघ्नहार के रूप में जाना जाता है।
8. महागणपति मंदिर
अष्टविनायक मंदिर में आठवां गणेश मंदिर है महागणपति मंदिर। यह मंदिर पुणे के राजणगांव में है। यह पुणे-अहमदनगर राजमार्ग पर 50 किलोमीटर की दूरी पर है। इस मंदिर का इतिहास 9-10वीं सदी के बीच माना जाता है। मंदिर का प्रवेश द्वार पूर्व दिशा की ओर है जो कि बहुत विशाल और सुन्दर है। भगवान गणपति की मूर्ति को माहोतक नाम से भी जाना जाता है। मान्यता के अनुसार, मंदिर की मूल मूर्ति तहखाने की छिपी हुई है। पुराने समय में जब विदेशियों ने यहां आक्रमण किया था तो उनसे मूर्ति बचाने के लिए मूर्ति को तहखाने में छिपा दिया गया था।

No comments:

Post a Comment