स्वामी विवेकानंद की आज 113वीं पुण्यतिथि है। स्वामी जी ने
शिकागो की धर्म संसद में भाषण देकर दुनिया को ये एहसास कराया कि भारत विश्व
गुरु है। अमेरिका जाने से पहले स्वामी विवेकानंद जयपुर के एक महाराजा के
महल में रुके थे। यहां एक वेश्या ने उन्हें एहसास कराया कि वह एक संन्यासी
हैं।
स्वामी के स्वागत को बुलाई गई थी वेश्या
राजा विवेकानंद और रामकृष्ण परमहंस का भक्त था। विवेकानंद के स्वागत
के लिए राजा ने एक भव्य आयोजन किया। इसमें वेश्याओं को भी बुलाया गया। शायद
राजा यह भूल गया कि वेश्याओं के जरिए एक संन्यासी का स्वागत करना ठीक नहीं
है। विवेकानंद उस वक्त अपरिपक्व थे। वे अभी पूरे संन्यासी नहीं बने थे।
वह अपनी कामवासना और हर चीज दबा रहे थे। जब उन्होंने वेश्याओं को देखा तो
अपना कमरा बंद कर लिया। जब महाराजा को गलती का अहसास हुआ तो उन्होंने
विवेकानंद से माफी मांगी।
कमरे में बंद हो गए थे स्वामी जी
महाराजा ने कहा कि उन्होंने वेश्या को इसके पैसे दे दिए हैं, लेकिन ये
देश की सबसे बड़ी वेश्या है, अगर इसे ऐसे चले जाने को कहेंगे तो उसका
अपमान होगा। आप कृपा करके बाहर आएं। विवेकानंद कमरे से बाहर आने में डर रहे
थे। इतने में वेश्या ने गाना गाना शुरू किया, फिर उसने एक सन्यासी गीत
गाया। गीत बहुत सुंदर था। गीत का अर्थ था- ''मुझे मालूम है कि मैं
तुम्हारे योग्य नहीं, तो भी तुम तो जरा ज्यादा करूणामय हो सकते थे। मैं
राह की धूल सही, यह मालूम मुझे। लेकिन तुम्हें तो मेरे प्रति इतना
विरोधात्मक नहीं होना चाहिए। मैं कुछ नहीं हूं। मैं कुछ नहीं हूं। मैं
अज्ञानी हूं। एक पापी हूं। पर तुम तो पवित्र आत्मा हो। तो क्यों मुझसे
भयभीत हो तुम?''
डायरी में लिखा था- मैं हार गया हूं
विवेकानंद ने अपने कमरे इस गीत को सुना, वेश्या रोते हुए गा रही थी।
उन्होंने उसकी स्थिति का अनुभव किया और सोचा कि वो क्या कर रहे हैं।
विवेकानंद से रहा नहीं गया और उन्होंने कमरे का गेट खोल दिया। विवेकानंद एक
वेश्या से पराजित हो गए। वो बाहर आकर बैठ गए। फिर उन्होंने डायरी में
लिखा, ''ईश्वर से एक नया प्रकाश मिला है मुझे। डरा हुआ था मैं। जरूर कोई
लालसा रही होगी मेरे भीतर। इसीलिए डर गया मैं। किंतु उस औरत ने मुझे पूरी
तरह हरा दिया। मैंने कभी नहीं देखी ऐसी विशुद्ध आत्मा।'' उस रात उन्होंने
अपनी डायरी में लिखा, ''अब मैं उस औरत के साथ बिस्तर में सो भी सकता था
और कोई डर नहीं होता।''
सीख- इस घटना से विवेकानंद को तटस्थ रहने का ज्ञान मिला, आपका मन दुर्बल और निसहाय है। इसलिए कोई दृष्टि कोण पहले से तय मत करो।
सत्य का साथ कभी मत छोड़ो
प्रसंग- स्वामी विवेकानंद एक मेधावी छात्र थे। उनके
सभी साथी स्वामी जी की पर्सनेलिटी के कायल थे। जब भी वह साथियों को कुछ
सुनाते, सब बड़े ध्यान से उन्हें सुनते थे। एक दिन स्कूल की क्लास में वह
साथियों को कहानी सुना रहे थे। तभी मास्टर जी क्लास में आ गए और किसी तो
पता भी नहीं चला। मास्टर जी गुस्से में आ गए और स्टूडेंट्स से सवाल करने
लगे। पूरी क्लास में सिर्फ विवेकानंद ने ही सवाल का सही उत्तर दिया। टीचर
ने स्वामी जी को छोड़कर बाकी स्टूडेंट्स को बेंच पर खड़ा कर दिया। स्वामी
जी जानते थे कि मेरे कारण ही साथियों को सजा मिल रही है। वह सही उत्तर देने
के बाद भी बेंच पर खड़े हो गए। उन्होंने टीचर से कहा, ''मैं खुद ही अपने
सभी साथियों को कहानी सुना रहा था। सजा मुझे भी मिलनी चाहिए।''
सीख- किसी भी स्थिति में सत्य का साथ नहीं छोड़ना चाहिए। सत्य में वह ताकत है जिससे किसी का भी दिल जीता जा सकता है
केवल लक्ष्य पर ध्यान लगाओ
प्रसंग- स्वामी विवेकानंद अमेरिका में एक पुल से
गुजर रहे थे। तभी उन्होंने देखा कि कुछ लड़के नदी में तैर रहे अंडे के
छिलकों पर बन्दूक से निशाना लगा रहे थे। किसी भी लड़के का एक भी निशाना सही
नहीं लग रहा था। स्वामी जी ने खुद बन्दूक संभाली और निशाना लगाने लगे।
उन्होंने एक के बाद एक 12 सटीक निशाने लगाए। सभी लड़के दंग रह गए और उनसे
पुछा- स्वामी जी, आप ये सब कैसे कर लेते हैं? इस पर स्वामी विवेकानंद ने
कहा, ''जो भी काम करो अपना पूरा ध्यान उसी में लगाओ।''
सीख- जो काम करो, उसी में अपना पूरा ध्यान लगाओ। लक्ष्य बनाओ और उन्हें पाने के लिए प्रयास करो। सफलता हमेशा तुम्हारे कदम चूमेगी।
मुसीबत से डर कर भागो मत, उसका सामना करो
प्रसंग- स्वामी विवेकनन्द एक बार बनारस में मां
दुर्गा के मंदिर से लौट रहे थे, तभी बंदरों के एक झुंड ने उन्हें घेर लिया।
बंदरों ने उनसे प्रसाद छिनने कोशिश की, स्वामी जी डर के मारे भागने लगे।
इसके बाद भी बंदरों ने उनका पीछा नहीं छोड़ा। तभी पास खड़े एक बुजुर्ग
सन्यासी ने विवेकानंद से कहा- रुको! डरो मत, उनका सामना करो और देखो क्या
होता है। संन्यासी की बात मानकर वह फौरन पलटे और बंदरों की तरफ बढ़ने लगे।
इसके बाद सभी बंदर एक-एक कर वहां से भाग निकले।
सीख- इस घटना से स्वामी जी को एक गंभीर सीख मिली। अगर तुम किसी चीज से डर गए हो, तो उससे भागो मत, पलटो और सामना करो।
हमेशा महिलाओं का सम्मान करें
प्रसंग- एक बार एक विदेशी महिला स्वामी विवेकानंद के
पास आकर बोली- मैं आपसे शादी करना चाहती हूं। विवेकानंद बोले- मुझसे ही
क्यों? क्या आप जानती नहीं कि मैं एक संन्यासी हूं? महिला ने कहा, ''मैं
आपके जैसा गौरवशाली, सुशील और तेजस्वी बेटा चाहती हूं और यह तभी संभव होगा।
जब आप मुझसे शादी करें।'' स्वामी जी ने महिला से कहा, ''हमारी शादी तो
संभव नहीं है, लेकिन एक उपाय जरूर है। मैं ही आपका पुत्र बन जाता हूं। आज
से आप मेरी मां बन जाओ। आपको मेरे जैसा ही एक बेटा मिल जाएगा।'' इतना सुनते
ही महिला स्वामी जी के पैरों में गिर गई और मांफी मांगने लगी।
सीख- एक सच्चा पुरूष वह है जो हर महिला के लिए अपने अंदर मातृत्व की भावना पैदा कर सके और महिलाओं का सम्मान कर सके।
मां से बढ़कर कोई नहीं
प्रसंग- मां की महिमा जानने के लिए एक आदमी स्वामी
विवेकानंद के पास आया। इसके लिए स्वामी जी ने आदमी से कहा, ''5 किलो का एक
पत्थर कपड़े में लपेटकर पेट पर बांध लो और 24 घंटे बाद मेरे पास आना,
तुम्हारे हर सवाल का उत्तर दूंगा।'' दिनभर पत्थर बांधकर वह आदमी घूमता रहा,
थक-हारकर स्वामी जी के पास पंहुचा और बोला- मैं इस पत्थर का बोझ ज्यादा
देर तक सहन नहीं कर सकता हूं। स्वामी जी मुस्कुराते हुए बोले, ''पेट पर
बंधे इस पत्थर का बोझ तुमसे सहन नहीं होता। एक मां अपने पेट में पलने वाले
बच्चे को पूरे नौ महीने तक ढ़ोती है और घर का सारा काम भी करती है। दूसरी
घटना में स्वामी जी शिकागो धर्म संसद से लौटे तो जहाज से उतरते ही रेत से
लिपटकर रोने गले थे। वह भारत की धरती को अपनी मां समझते थे और लिपटकर खूब
रोए थे।
सीख- संसार में मां के सिवा कोई इतना धैर्यवान और सहनशील नहीं है। इसलिए मां से बढ़ कर इस दुनिया में कोई और नहीं है।
No comments:
Post a Comment